ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 23 जून 2020

काव्यनिर्झरिणी' की रचनाएँ ---रचना १७ - जब दिनकर छुपने लगता है ----व 18 --रात है ---डा श्याम गुप्त

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' 1960 से 2005 तक रचित तुकांत काव्य-रचनाओं का संग्रह है |---सुषमा प्रकाशन , आशियाना द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५ ..
—नराकास , राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---रचना १७ व१ 18 --


रचना १७ - जब दिनकर छुपने लगता है ----व 18 --रात है ---



 

सोमवार, 15 जून 2020

वरिष्ठ नागरिक समिति , प्रेस्टीज शान्तिनिकेतन , बेगलोर --प्रतिदिन प्रातः सम्मिलन ---डा श्याम गुप्त

                                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 


वरिष्ठ नागरिक समिति , प्रेस्टीज शान्तिनिकेतन , बेगलोर --प्रतिदिन प्रातः सम्मिलन




 

शनिवार, 13 जून 2020

काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ ---रचना १६--हरियाली रहे ---डा श्याम गुप्त

             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 


मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' 1960 से 2005 तक रचित तुकांत काव्य-रचनाओं का संग्रह है |---सुषमा प्रकाशन , आशियाना द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५ ..
—नराकास , राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---रचना

16.हरियाली रहे –

जबसे कदम पड़े हैं
मानव के चन्द्रमा पर |
कैसे बनी मानस में
 छवि वो निराली रहे |
ऊंची नीची सुनसान
मानव विहीन धरा |
कैसे छवि चरखा,
चलाती नानी, वाली रहे |

धुंआ धूल गर्द से,
बुझा बुझा क्लांत चाँद |
कैसे धवल चांदनी से,
धरा उजियाली रहे |

चहुँ ओर मची है ,
आपा धापी सत्ता की |
कैसे फिर घर और
देश में खुशहाली रहे |

बिल्डिंग और सडकों से
पट गयी सारी धरा |
कैसे बनी शस्य श्यामल,
धरती निराली रहे |

कहें श्याम, जहर-
उगलता है सारा शहर |
क्यों न हो प्रदूषण घोर,
कैसे हरियाली रहे ||

क्रमश रचना १७---

 

बुधवार, 10 जून 2020

काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ-----१५.कुदरत की नियामतें --डा श्याम गुप्त

                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...










काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ-----१५.कुदरत की नियामतें –
========

तरबूज की फांक सा,
खिड़की से झांकता |
नीले आकाश में
सारी रात जगता |

वो यात्री सा चाँद,
दिला जाता है याद |
खोल देता है मन में,
स्मृति के कपाट |

होता था कभी चाँद,
एक चांदनी की रात |
वो नानी की कहानी,
वो चांदी सी रात |

वो ऊपर की छत पर,
शीतल मंद समीर |
वो रात की परात में,
यूं बिखरी सी खीर |

खरबूज आम फालसे,
ककडी वो लज्ज़तदार |
तरबूज की तरावट,
खिरनी की वो बहार |

इक चाँद ही नहीं हम,
सूरज भी खोचुके |
उस नीम की बयार,
 से भी हाथ धो चुके |

पंखा है कूलर है ,
एसी का ही  राज है |
सिर दर्द को बढाने का ,
ये सारा ही साज है |

कुदरत की सब नियामतें ,
हम भूल चले हैं |
अपनी बनाई कैद में,
ही फूल चले हैं ||




 

मंगलवार, 9 जून 2020

काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ ---रचना १४-नीरवता की धड़कन....

                           ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...




मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' तुकांत काव्य-रचनाओं का संग्रह है ------सुषमा प्रकाशन , आशियाना द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५


नराकास, (नगर राजभाषा क्रियान्वन समिति, लखनऊ )  राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---


१४,नीरवता की धड़कन ---

जग की भीड़ भाड़ से होकर,
दूर अगर तू शान्ति चाहता |
जग की भीड़ भाड़ से होकर,
त्रस्त अगर विश्रांति चाहता |

आजाओ इस निर्ज़न  वन में,
नदी किनारे खुले गगन में |
नीरवता के मौन मुखर में,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी

चुप चुप इस निश्शब्द सघन में ,
तन मन की विश्रांति मिलेगी |

चुप चुप चन्दा चले ताल में,
नीरवमय आलोक बहाए |
चुप चुप चपल चांदनी चम् चम्,
नदिया के जल को महकाए |

पादप गण निश्शब्द खड़े हैं,
नीरवता हो स्वयं सो रही |
रह रह पवन बहे चुप सर सर ,
नीरवता हो सांस ले रही |

किसी रात्रिचर के चलने से,
पत्ता जब चुपचाप खड़कता |
मुझमें भी है जीवन, कहते
नीरवता का ह्रदय धड़कता |

सारस और बकों के जोड़े,
एक टांग पर खड़े सोरहे |
जैसे ध्यान धरे योगी जन,
आत्म ज्ञान में लीन होरहे |

इस नीरव निश्शब्द विजन में,
अपने अंतर में खोजायें |
आत्मलीन जब चित होजाए ,
मन के मौन मुखर होजाएं |

अनहद का संगीत बजे जब ,
कानों में बनकर शहनाई |
परम शान्ति का अनुभव होगा,
जैसे मिली मोक्ष सुखदायी |

नीरवता के मौन मुखर में,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |
चुप चुप इस निस्तब्ध विजन में,
तन मन को विश्रांति मिलेगी ||




 

रविवार, 7 जून 2020

काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ----रचना १२ -जिन्दगी --व-- १३ ..समर्पित जीवन---डा श्याम गुप्त

                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' तुकांत काव्य-रचनाओं का संग्रह है |---सुषमा प्रकाशन , आशियाना द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५

नराकास, (नगर राजभाषा क्रियान्वन समिति, लखनऊ )  राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---

काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ----रचना १२ व १३ ..


12. ज़िंदगी

जब थे हम छोटे बड़ी थी जिन्दगी
जिन्दगी सिमटी हुए जब हम बड़े |
सब थे खुश आये थे हम रोते हुए ,
खुश्नासीन हो चल पड़े सब रो पड़े |

मौत से है खेल सीखा ज़िंदगी का,
आंसुओं ने ही सिखाया गीत गाना |
जब पड़े गम और भी हम मुस्कुराए ,
सर्द आहों ने सिखाया गुन गुनाना |

थे अँधेरे किन्तु हम थे जगमगाए ,
दूरियां जब बढीं हम नज़दीक आये |
ज़ख्मे दिल से प्यार करना हमने सीखा,
पर न हम कुछ जिन्दगी से सीख पाए |

और अंधेरों ने हमें यह रोशनी दी
रोशनी में भी अँधेरे पल रहे हैं |
था बुझा तन और बुझा मन था हमारा,
पर खबर थी दिल में अरमां जल रहे हैं|

भाग्यशाली देख पाए स्वर्ग हैं,
मर मिटे जो देश के सम्मान पर |
पर न वो दीदार हैं हम कर सके ,
क्योंकि हम जीते रहे हैं उम्र भर ||


१३. समर्पित  जीवन—
कल कल मल मल बहती नदिया
अविरल गति से बहती है |
करते रहो निरंतर तप श्रम ,
बहते बहते कहती है |

जब हो यौवन और लड़कपन
चट्टानों से टकरा जाओ |
अनथक करो परिश्रम चिंतन,
पाषणों में राह बनाओ |

प्रौढ़ और ज्ञानी ध्यानी बन,
मंद मंद बहना सीखो |
मंथर मंथर बहते जग के,
सुख दुःख में रहना सीखो |

मंथर मंथर बहती नदिया ,
जब समतल में बहती है |
सब कुछ अपने अंतर में भर,
सुख दुःख सहती रहती है |


सागर तीरे जब आती है,
जीवन जग का भार लिए |
सब कुछ उसे सौंप देती है ,
परम समर्पण भाव किये |

श्रम तप ज्ञान सत्य से जग में,
निधियां जो अर्जित कर पाओ |
जग के हित में प्रभु चरणों में,
अर्पित सब करते जाओ |

जीवन सारा बहती नदिया,
सागर में मिल खोजाये |
जैसे कोई परम आत्मा,
स्वयं ब्रह्म ही होजाए ||

*************

 

शुक्रवार, 5 जून 2020

काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ--१०.आँसू हैं या पानी है -. व ११.-झर झर जीवन ----डा श्याम गुप्त

                 ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


काव्य निर्झरिणी की रचनाएँ--१०. व ११.----


१०.आँसू हैं या पानी है ----

दुःख में झरते सुख में झरते
नयनों के कष्टों में झरते ,
मन की वाणी मुखरित करते
झरना एक रवानी है |

कोइ कहता आंसूं हैं ये,
कोइ खारा  पानी है ||

प्रियतम की वाहों में झरते,
प्रियतम की यादों में झरते ,
भूल गए वादों में झरते,
सावन में भादों में झरते ,
एकाकी रातों में झरते,
मन की मौन कहानी है |

कोइ कहता आँसू हैं ये,
कोइ कहता पानी हैं ||

आता है जब सावन कोइ,
गाता है मन भावन कोइ |
विदा हुई जब प्यारी बेटी,
प्रिय को गले लगाकर झरते |
मन की कसक सुहानी है ,
मगन  ह्रदय की वाणी है |
कोइ कहता आंसूं हैं ये,
कोइ बहता पानी है ||

आंसूं है या खारा जल है ,
निर्मल मन का निर्मल बल है |
कुटिल बुद्धि का भी छल बल है ,
घडियाली आँसू जिस पल है |
मन की कुटिल कहानी है ,
एक अनूठी वाणी है |

कोइ कहता आंसूं हैं ये,
कोइ कहता पानी है ||

दुःख में झरते सुख में झरते,
अपनों के कष्टों में झरते |
मन वीणा को मुखरित करते
प्रतिपल नयी कहानी है |

कोइ कहता आंसूं हैं ये,
कोइ बहता पानी है ||

-----------------------


११. झर झर जीवन ---










क्रमश ----