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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
कैसे कम होगा कार्बन उत्सर्जन ----
कार्बन उत्सर्जन कैसे कम होगा ,हमे इसकी चिंता तो हैक्योंकि ये सब विकाश शील देशों के लिए हैं , पर कैसे रुके , इसका क्या ?क्या विक्सित देश अपनी सुख -सुविधा बंद करने को राजी हैं या होंगे ? जो दुनिया का अधिकतम मात्रा में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं |
ऊपर के समाचार में आप कार्बन कम करने के विभिन्न उपाय देख रहे हैं , अब हम इन उपायों पर अलग-अलग चर्चा करें---
१. व २.सौर ऊर्जा। --- पवन चक्किय्याँ ---अच्छी बात है , परन्तु ये आधिनिक पवन चक्कियां ,सोलर पेनल , बैटरियां , बनाने के लिए भी तो वही सब साजो-सामान -आयातित -आवश्यक होगा जो स्वयं प्रदूषण उत्पन्न करता है व हमारा मुद्रा भण्डार का दोहन करता है|यदि सामान्य (बगैर इलेक्ट्रोनिक /मेकेनिकल ) चक्कियां आदि प्रयोग हों तो बात बने |
३.पन बिजली योजनाओं के लिए भी हमें विदेशी तकनीक, व तमाम गेजेट्स चाहिए ,जो हम नहीं बनाते , यदि स्वदेशी सामान से छोटे-छोटे पन बिजली घर-बाँध आदि बनें तब यह उद्देश्य पूरा हो|
४। बायोमास ---सदियों से हिन्दुस्तान में घर-घर में कागज़ का कूड़ा, मूंगफली छिलके, भूसा, गन्ने की खोई,गोबर के कंडेऊर्जा के रोप में स्तेमाल होरहे हैं ( आज भी ) | पहले तो इन्हें धुंआ से प्रदूषण कारक कहकर नकारा गया ,कि नए-नए हीटर-गीज़र खरीदो( जब हम इन्हें नहीं बनाते थे ) |जबकि सदियों से कोई प्रदूषण नहीं हुआ| अब पावर-प्लांट लगाकर क्या कुछ मशीनी करण नही चाहिए होगा ( शायद वह भी बाहर से आयेंगे -जैसे गेंहू -दाल )|
५.परमाणु ऊर्जा--क्या उसके संयंत्रों के लिए वही सब नहीं करना होगा जो प्रदूषण कारक क्रियाएं व साजो-सामान हैं परमाणु -प्रदूषण की घटनाएं आए रोज़ होरहीं हैं ,उनका क्या रोक-थाम-निराकरण है|
६। अन्य--सी ऍफ़ एल -एलईडी-आदि बनाने के लिए क्या वही तकनीक नहीं स्तेमाल होंगीं जो प्रदूषण करतीं हैं?
----मूलतः भारत तो यह करने को तैयार है ही,पर क्या हमें/दुनिया को यह नहीं सोचना है कि यदि विक्सित देश अपनी विलासिता ,आसमान में उड़ने की भ्रमित इच्छा छोड़ा दें तो यह स्थिति उत्पन्न ही न हो |
----इसे कहते हैं पहले कुआ खोदो फ़िर उसे पार करने को पुल बनाओ और फ़िर...... शुरू दुश्चक्र |
राजधानी की पहचान-सत्य से या सिर्फ़ सुन्दरता से ---
राकेश कुमार यादव जी के इस आलेख से लगता है कि हमें व सरकार को जनता के सुख-सुविधाओं को द्वितीय स्थान पर (या बिल्कुल नहीं ) रखना चाहिए |भारतीय शास्त्रों में प्रत्येक कार्य के लिए एक विशिष्ट संदेश है , जो दूर दर्शन ने भी अपना लोगो बनाया है --सत्यं शिवं सुन्दरं --अर्थात सत्य सबसे पहले व सुंदर सबसे बाद में | क्या आलेख लेखक व सरकार को यह सत्य नहीं दिखाई देता कि नगर की अधिकाँश सड़कें, गलियाँ,नालियां टूटी पडीं हैं; सडकों -गलियों में सीवर का पानी बह कर जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है, करप्सन हर जगह खुले आम हो रहा है, रोजाना लूट, ह्त्या, की वारदातें होरही हैं| कोई नगर या राजधानी , नागरिक सुविधाओं से नगर कहलाने योग्य,मुस्कुराने योग्य होता है यूंही नहीं | पहले वह कर दिखाइये ,फ़िर सौन्दर्यीकरण हो ,किसे आपत्ति होगी ? कूड़े के ढेर पर बैठे शहर को कौन प्रशंसा करे , कुछ स्वार्थी तत्व?
----" सुबरन कलश सुरा भरा, साधू निंदा सोय"
आज आगरा,हेदराबाद , दिल्ली --ताज , क़ुतुब व चार मीनार से नहीं -गन्दगी, जल की कमी ,अपराधों के कारण नामी हैं | ताज, मीनार। क़ुतुब तो बस कमाई व विदेशी लोगों को बहलाने के साधन हैं |
----" सुबरन कलश सुरा भरा, साधू निंदा सोय"
आज आगरा,हेदराबाद , दिल्ली --ताज , क़ुतुब व चार मीनार से नहीं -गन्दगी, जल की कमी ,अपराधों के कारण नामी हैं | ताज, मीनार। क़ुतुब तो बस कमाई व विदेशी लोगों को बहलाने के साधन हैं |
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