सीता का निर्वासन....
रात सपने में श्री राम आये,
अपनी मोहक मुद्रा में मुस्कुराए;बोले-
वत्स प्रसन्ना हूँ वर मांगो।
मैंने कहा,'प्रभु, कलयुगी तार्किक भक्त हूँ,
शंका रूपी एक गुत्थी सुलाझादों। '
राम, तुम्हीं थे, जिसने--
समाज द्वारा ठुकराई हुई ,
छले जाने पर किंकर्तव्य विमूढ़ ,
ठुकराए जाने पर-
संवेदन हीन,साधन हीन ,परित्यक्ता,
पत्थर की शिला की तरह ,
कठोर,क्रियाहीन, निश्चेष्ट, कर्तव्यच्युत,
समाज विरोधी, एकाकी,जड़ ,
अहल्या को--
चरण कमलों में स्थान देकर ,
समाज सेवा का पाठ पढ़ाकर,
मुख्यधारा में प्रतिष्ठापित किया था।
शवरी के बेर प्रेम भाव से खाकर,
नारी व शूद्र उत्थान के पुरोधा बनकर,
तत्कालीन समाज में, उनके-
नए आयामों को परिभाषित किया था।।
फिर क्या हुआ, हे राम, कि-
सिर्फ शंका मात्र से ही तुमने,
सीता का निर्वासन कर दिया?
राम बोले ,'वत्स, अच्छा प्रश्न उठाया है,
सदियों से शंकाओं की शूली पर टंगा हुआ था,
आज उतरने का अवसर आया है। '
आखिर शंका ने ही तो,
तुम्हें समाधान को उकसाया है।
तुमने भी तो शंका का समाधान ही चाहा है।
शंका उठी है तो ,
समाधान होना ही चाहिए।
समाधान के लिए सिर्फ बातें नहीं,
उदाहरण भी चाहिए॥
अहल्या व शबरी,
सारे समाज की आशंकाएं हैं ;
जबकि, सीता, राम की व्यक्तिगत शंका है ।
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है,
इसीलिये तो सीता का निर्वासन होता है।
स्वयं पुरुष का निर्वासन,
कर्तव्य विमुखता व कायरता कहाता है;
अतः, कायर की पत्नी ,
कहलाने की बजाय,
सीता को निर्वासन ही भाता है॥
रात सपने में श्री राम आये,
अपनी मोहक मुद्रा में मुस्कुराए;बोले-
वत्स प्रसन्ना हूँ वर मांगो।
मैंने कहा,'प्रभु, कलयुगी तार्किक भक्त हूँ,
शंका रूपी एक गुत्थी सुलाझादों। '
राम, तुम्हीं थे, जिसने--
समाज द्वारा ठुकराई हुई ,
छले जाने पर किंकर्तव्य विमूढ़ ,
ठुकराए जाने पर-
संवेदन हीन,साधन हीन ,परित्यक्ता,
पत्थर की शिला की तरह ,
कठोर,क्रियाहीन, निश्चेष्ट, कर्तव्यच्युत,
समाज विरोधी, एकाकी,जड़ ,
अहल्या को--
चरण कमलों में स्थान देकर ,
समाज सेवा का पाठ पढ़ाकर,
मुख्यधारा में प्रतिष्ठापित किया था।
शवरी के बेर प्रेम भाव से खाकर,
नारी व शूद्र उत्थान के पुरोधा बनकर,
तत्कालीन समाज में, उनके-
नए आयामों को परिभाषित किया था।।
फिर क्या हुआ, हे राम, कि-
सिर्फ शंका मात्र से ही तुमने,
सीता का निर्वासन कर दिया?
राम बोले ,'वत्स, अच्छा प्रश्न उठाया है,
सदियों से शंकाओं की शूली पर टंगा हुआ था,
आज उतरने का अवसर आया है। '
आखिर शंका ने ही तो,
तुम्हें समाधान को उकसाया है।
तुमने भी तो शंका का समाधान ही चाहा है।
शंका उठी है तो ,
समाधान होना ही चाहिए।
समाधान के लिए सिर्फ बातें नहीं,
उदाहरण भी चाहिए॥
अहल्या व शबरी,
सारे समाज की आशंकाएं हैं ;
जबकि, सीता, राम की व्यक्तिगत शंका है ।
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है,
इसीलिये तो सीता का निर्वासन होता है।
स्वयं पुरुष का निर्वासन,
कर्तव्य विमुखता व कायरता कहाता है;
अतः, कायर की पत्नी ,
कहलाने की बजाय,
सीता को निर्वासन ही भाता है॥