....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
बस में न हो अंतः तो बसंत छाता है,
बस रहे जो अन्तःमें बसंत कहाता है।
बस रहे वो अन्तः में तो बसंत भाता है,
बस अन्त हो शीत का बसंत आता है ॥प्रेमी युगल वन्दना
बन्दों प्रिय नर नारि ,रति अनंग सम रूप धरि |
जासु कृपा संसार , चलै सकल कारन-करन ||
राधे मोहन रूप,या, पति-पत्नी के तत्व |
माया ब्रह्म स्वरुप,जग में प्रेमी प्रेमिका ||
अमर प्रेमिका रूप,अमर प्रेम प्रेमी अमर |
प्रेमी अमर अरूप, कालिका औ प्रेमी भ्रमर ||
प्रेमी युगल प्रतीति,श्याम ह्रदय रस रंग नित |
वीणा-सारंग प्रीति, दीपक जरै पतंग जस ||
स्वाति बूँद के हेतु,सब दुःख सहे सहेज जो |
प्रेम परिक्षा देखि, पपीहा श्याम' सराहिये || राग कामोदी
अमर तत्व पाजाहिं, सच्चे प्रेमी प्रेमिका ||
इक दूजे के अंग,सुख-दुःख खो जो रमि रहे |
सो पावें रस रंग, सोई प्रेमी प्रेमिका ||
मन प्रेमी होजाय, युगल-रूप प्रिय चित धरे |
नलिनी खिलि खिलि जाय,ध्यान धरे शशि-चंद्रिका || राग बासन्ती
मन पंकज खिल जाय ,जैसे देखे रवि-प्रभा ||