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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 1 जुलाई 2013

डाक्टर्स डे पर आलेख ....वैदिक युग में चिकित्सक-रोगी संबंध-- डा. श्याम गुप्त ...

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



                   वैज्ञानिक , सामाजिक, साहित्यिक, मनोवैज्ञानिक , प्रशासनिक चिकित्सा आदि समाज के लगभग सभी मन्चों सरकारों से विचार मन्थित यह विषय उतना ही प्राचीन है जितनी मानव सभ्यता। आज के आपाधापी के युग में मानव -मूल्यों की महान क्षति हुई है; भौतिकता की अन्धी दौढ से चिकित्सा -जगत भी अछूता नहीं रहा है। अतः यह विषय समाज चिकित्सा जगत के लिये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। आज जहां चिकित्सक वर्ग में व्यबसायीकरण समाज़ के अति-आर्थिकीकरण के कारण तमाम भ्रष्टाचरण कदाचरणों का दौर प्रारम्भ हुआ है वहीं समाज़ में भी मानव-मूल्यों के ह्रास के कारण सर्वदा सम्मानित वर्गों के प्रति ईर्ष्या, असम्मान, लापरवाही पैसे के बल पर खरीद लेने की प्रव्रत्ति बढी है जो समाज, मनुष्य, रोगी चिकित्सक के मधुर सम्बंधों में विष की भांति पैठ कर गई है। विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सकों की लापर्वाही, धन पद लिप्सा ,चिकित्सा का अधिक व्यवसायीकरण की घटनायें यत्र-तत्र समाचार बनतीं रहती हैं। वहीं चिकित्सकों के प्रति असम्मानजनक भाव, झूठे कदाचरण आरोप, मुकदमे आदि के समाचार भी कम नहीं हैं। यहां तक कि न्यायालयों को भी लापरवाही की व्याख्या करनी पढी।  अतःजहां चिकित्सक-रोगी सम्बन्धों की व्याख्या समाज़ चिकित्सक जगत के पारस्परिक तादाम्य, प्रत्येक युग की आवश्यकता है,साथ ही निरोगी जीवन स्वस्थ्य समाज की भी।  आज आवश्यकता इस बात की है कि चिकित्सक-जगत, समाज रोगी सम्बन्धों की पुनर्व्याख्या की जाय , इसमें तादाम्य बैठाकर इस पावन परम्परा को पुनर्जीवन दिया जाय ताकि समाज को गति के साथ-साथ द्रढता मधुरता मिले।
             संस्कृति  समाज़ में काल के प्रभावानुसार उत्पन्न जडता, गतिहीनता दिशाहीनता को मिटाने के लिये समय-समय पर इतिहास के काल-प्रमाणित महान विचारों, संरक्षित कलापों को वर्तमान से तादाम्य की आवश्यकता होती है। विश्व के प्राचीनतम सार्व-कालीन श्रेष्ठ साहित्य, वैदिक-साहित्य में रोगी -चिकित्सक सम्बन्धों का विशद वर्णन है  जिसका पुनःरीक्षण करके हम समाज़ को नई गति प्र्दान कर सकते हैं।
चिकित्सक की परिभाषा--ऋग्वेद(१०/५७/) मे क्थन है-- 
       "यस्तैषधीः सममत राजानाःसमिता विव  
        विप्र उच्यते भि्षगुक्षोहामीव चातनः "--जिसके समीप चारों ओर औषधिया ऐसे रहतीं हैं जैसे राजा के समीप जनता,विद्वान लोग उसे भैषजग्य या चिकित्सक कहते हैं।  वही रोगी रोग का उचित निदान कर सकता है। अर्थात एक चिकित्सक को चिकित्सा की प्रत्येक फ़ेकल्टी (विषय क्षेत्र), क्रिया-कलापों,व्यवहार मानवीय सरोकारों में निष्णात होना चाहिये। और समय -समय पर अपडेट भी |
रोगी समाज का चिकित्सकों के प्रति कर्तव्य--देव वैद्य अश्विनी कुमारों को ऋग्वेद में "धीजवना नासत्या" कहागया है, अर्थात जिसे अपनी स्वयम की बुद्धि सत्य की भांति देखना चाहिये। अतःरोगी समाज़ को चिकित्सक के परामर्श कथन को अपनी स्वयम की बुद्धि अन्तिम सत्य की तरह विश्वसनीय स्वीकार करना चाहिये।  ऋग्वेद के श्लोक १०/९७/ के अनुसार---
        "औषधीरिति मातरस्तद्वो देवी रूप ब्रुवे  
        सनेयाश्वं गां वास आत्मानाम तव पूरुष "--औषधियां माता की भंति अप्रतिम शक्ति से ओत-प्रोत होतीं हैं, हे चिकित्सक! हम आपको, गाय, घोडे, वस्त्र, ग्रह एवम स्वयम अपने आप को भी प्रदान करते हैं। अर्थात चिकित्सकीय सेवा का किसी भी मूल्य से नहीं चुकाया जा सकता। समाज व्यक्ति को उसका सदैव आभारी रहना चाहिये।
चिकित्सकों के कर्तव्य दायित्व---
. रोगी चिकित्सा आपात चिकित्सारिचा /२२/६५१२-ऋग्वेद के अनुसार-- 
       "साभिर्नो मक्षू तूयमश्विना गतं भिषज्यतं यदातुरं "-- अर्थात हे अश्विनी कुमारो!  (चिकित्सको) आप समाज़ की सुरक्षा, देख-रेख, पूर्ति, वितरण में जितने निष्णात हैं उसी कुशलता तीव्र गति से रोगी पीढित व्यक्ति को आपातस्थिति में सहायता करें। अर्थात चिकित्सा अन्य विभागीय कार्यों के साथ-साथ आपातस्थिति में रोगी की सहायता सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
. जन कल्याण- ऋचा /२२/६५०६ के अनुसार--
      " युवो रथस्य परि चक्रमीयत इमान्य द्वामिष्ण्यति  
     अस्मा अच्छा सुभतिर्वा शुभस्पती आधेनुरिव धावति "--हे अश्वनी कुमारो! आपके दिव्य रथ( स्वास्थ्य-सेवा चक्र) का एक पहिया आपके पास है एक संसार में। आपकी बुद्धि गाय की तरह है।....--चिकित्सक की बुद्धि मन्तव्य गाय की भांति जन कल्याण्कारी होना चाहिये।उसे समाज जन-जन की समस्याओं से भली-भांति अवगत रहना चाहिये एवम सदैव सेवा समादान हेतु तत्पर।
. रोगी के आवास पर परामर्श--ऋग्वेद-//६१००-कहता है- 
      "महिष्ठां वाजसात्मेष्यंता 
       शुभस्पती गन्तारा दाषुषो ग्रहम ||" --गणमान्य,शुभ,सुविग्य,योग्य एवम आवश्यकतानुसार आप( अश्वनी कुमार-चिकित्सक) स्वयं ही उनके यहां पहुंचकर उनका कल्याण करते हैं।
.-स्वयं सहायता( सेल्फ़ विजिट)--rचा /१५/६११७-में कहा है--"कदां वां तोग्रयो विधित्समुद्रो जहितो नरा। यद्वा रथो विभिथ्तात "--हे अश्विनी कुमारो! आपने समुद्र(रोग -शोक के ) में डूबते हुए भुज्यु( एक राजा) को स्वयं ही जाकर बचाया था, उसने आपको सहायता के लिये भी नहीं पुकारा था। अर्थत चिकित्सक को संकट ग्रस्त, रोग ग्रस्त स्थित ग्यात होने पर स्वयं ही ,विना बुलाये पीडित की सहायता करनी चाहिये।
यदि आज चिकित्सा जगत, रोगी ,तीमारदार,समाज सभी इन तथ्यों को आत्मसात करें,व्यवहार में लायें ,तो आज के दुष्कर युग में भी आपसी मधुरता युक्त-युक्त सम्बन्धों को जिया जासकता है, यह कोई कठिन कार्य नहीं, आवश्यकता है सभी को आत्म-मंथन करके तादाम्य स्थापित करने की।