....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
होली सब क्यों खेलते, अपने अपने धाम ,
साथ साथ खेलें अगर, होली सारा गाँव |
होली सारा गाँव,ख़त्म हो तना-तनी सब,
गली डगर चौपाल, हर जगह होली हो अब |
निकले राधा -श्याम, ग्वाल, गोपी मिल टोली ,
गली गली और गाँव गाँव में खेलें होली ||
होली की इस धूम में मचें विविधि हुड़दंग ,
केसर और अबीर संग,उडें चहुँ तरफ रंग |
उड़ें चहुँ तरफ रंग, मगन सब ही नर नारी ,
बढे एकता-भाव, वर्ग समरसता भारी |
बिनु खेले नहिं रहें, बनें सब ही हमजोली ,
जन जन प्रीति बढ़ाय, सभी मिलि खेलें होली ||