....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' तुकांत
काव्य-रचनाओं का संग्रह है ------सुषमा प्रकाशन , आशियाना
द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५
—नराकास, (नगर राजभाषा क्रियान्वन समिति, लखनऊ ) राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---
१४,नीरवता की धड़कन ---
जग की भीड़ भाड़ से होकर,
दूर अगर तू शान्ति चाहता |
जग की भीड़ भाड़ से होकर,
त्रस्त अगर विश्रांति चाहता |
आजाओ इस निर्ज़न वन में,
नदी किनारे खुले गगन में |
नीरवता के मौन मुखर में,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी
चुप चुप इस निश्शब्द सघन में ,
तन मन की विश्रांति मिलेगी |
चुप चुप चन्दा चले ताल में,
नीरवमय आलोक बहाए |
चुप चुप चपल चांदनी चम् चम्,
नदिया के जल को महकाए |
पादप गण निश्शब्द खड़े हैं,
नीरवता हो स्वयं सो रही |
रह रह पवन बहे चुप सर सर ,
नीरवता हो सांस ले रही |
किसी रात्रिचर के चलने से,
पत्ता जब चुपचाप खड़कता |
मुझमें भी है जीवन, कहते
नीरवता का ह्रदय धड़कता |
सारस और बकों के जोड़े,
एक टांग पर खड़े सोरहे |
जैसे ध्यान धरे योगी जन,
आत्म ज्ञान में लीन होरहे |
इस नीरव निश्शब्द विजन में,
अपने अंतर में खोजायें |
आत्मलीन जब चित होजाए ,
मन के मौन मुखर होजाएं |
अनहद का संगीत बजे जब ,
कानों में बनकर शहनाई |
परम शान्ति का अनुभव होगा,
जैसे मिली मोक्ष सुखदायी |
नीरवता के मौन मुखर में,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |
चुप चुप इस निस्तब्ध विजन में,
तन मन को विश्रांति मिलेगी ||