ब्लॉग आर्काइव
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 10 जनवरी 2010
पिकासो के चित्रों की वास्तविकता ----विकृत सोच का फल ...
आप ये चित्र देखिये , क्या चित्र है ? अब अखबार वाले चाहे जितना महान चित्रकार बताएं , चाहे जितना कला, मॉडर्न , मिनेटर को समकालीन अभिव्यक्ति,मिनेटोर ( आधा सांड आधा मानव )व युवा स्त्री के बीच द्वंद्व पूर्ण सम्बन्ध,युग की विभीषिका का चित्रण , अंतरजगत चित्रण कुछ भी बड़ी बड़ी बातें( सिर्फ मन को समझाने व विदेशियों को मनाने और खुद को कला मर्मग्य दिखाने का नाटक ) करें , पर बात साफ़ है कि यह स्त्री व सांड रूपी पुरुष के यौन सम्बन्ध का चित्र है जो चित्रकार के दूषित मन , अतृप्त आकांक्षा व विकृत सोच का दर्शन है, जो किसी कूड़े से कम नहीं हैं | जब ऐसे कलाकारों के पदचिन्हों पर हुसैन जैसे हिन्दुस्तानी सो काल्ड प्रगतिशील कलाकार चलेंगे तो नंगे चित्र नहीं बनायेंगे तो क्या करेंगे |आजकल नंगे चित्र , मूर्खतापूर्ण उलटे सीधे चित्रों को कला में प्रगतिशीलता के नाम पर ठेला जारहा है |एसे चित्रों को क्यों सार्वजनिक किया जाय , क्यों न कूड़े मैं फेंक दिया जाय | हमारे पत्रकारों अखवार नवींसों को क्या और उचित समाचार नहीं मिलते जो गन्दगी को फ़ैलाते रहते हैं , क्या सिर्फ़ अखवार बिके इसलिये ?
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