....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आज के युग-द्वन्द्व
के कारण का निवारण---कुछ समाधानात्मक
विचार ..
विश्व-विद्यालयीय शिक्षा..कैसी हो………..एक कुलपति की व्याख्यात्मक प्रस्तुति व
एक नौकरशाह के……. तत्सम्बंधी….विचार….. ऊपर चित्र पर क्लिक करें.....
कुछ विचारणीय विचार
बिन्दु……
१—बिना दार्शनिक सोच
विकसित किये क्या कोई व्यक्ति अच्छा सामाजिक जीवन व्यतीत कर सकता है ।
२- दर्शन, इतिहास एवम
साहित्य का कम से कम एक वर्ष का अध्ययन किसी भी प्रोफ़ेशनल डिग्री प्राप्त करने के लिये
आवश्यक होना चाहिये।
----------चित्र में दिये
इसी आलेख से……
३- आज चारों ओर सभी वर्गों में अन्तर्द्वन्द्व व
असन्तुष्टि का यही तो कारण है कि उत्तम साहित्य के पठन-पाठन का मार्ग अवरुद्ध होगया
है।साहित्य ही धर्म, इतिहास, सन्स्क्रिति आ प्रतिपादन करता है। इसी ग्यान के न होने
से आज का युवा व प्रौढ वर्ग् सामाजिक-मानवीय ग्यान से अछूता रहता है, केवल प्रोफ़ेशनल-कार्यात्मक
ग्यान व दैनिक व्यवहारिक ग्यान को ही ग्यन मानकर सब्कुछ जानने का भ्रम पाले रहता है
व जीवन का मूल उद्देश्य व दिशा न पाकर विभिन्न अन्तर्द्वन्द्वों में घिरा रहता है य
पलायन वादी..अति-भौतिकतावादी बन जाता है।
-----------डा श्याम गुप्त के
इन्द्रधनुष उपन्यास से…
४- भूल हमारी ही है
शायद केजी !….उन्नतिे, विकास, भौतिकता की चकाचौंध व शीघ्रातिशीघ्र फ़ल प्राप्ति की दौड में एवं अन्धाधुन्ध पाश्चात्य नकल करके बराबरी
की होड में सदियों की दासता से अपना गौरव, सन्स्क्रिति, इतिहास भूले हुए हम लोग अपनी स्वयं की अस्मिता,भाव, भाषा,
सन्स्कार, साहित्य को संभाल कर नहीं रखपाये और आने वाली पीढी के लिये अनुकरण-अनुसरन
के लिये आदर्श व उदाहरण प्रस्तुत करने में असफ़ल रहे। ….….बिना इतिहास, शास्त्र…सत्साहित्य
के कोई भी समाज –राष्ट्र कब उन्नत हुआ है…..।
-------- इन्द्रधनुष उपन्यास
में डा श्याम गुप्त…