....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अगीत साहित्य दर्पण( क्रमश:) अध्याय-५ ..भाग दो...
अगीत की भाव संपदा ( भाग दो )--पिछली पोस्ट से आगे ...
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
" रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य | " -------स्नेह प्रभा
" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी | " ----- राम कृपाल 'ज्योति'
" सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | " ------ विनय शंकर दीक्षित
" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | " ---- डा श्याम गुप्त
नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
" पुरुष ने नारीको,
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम | " -------मंजू सक्सेना 'विनोद'
" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी | " ----- सुषमा गुप्ता
" नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | " ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को | " ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | " ---- डा सत्य
" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ | " ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा
" नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है | " ----- सुभाष हुडदंगी
" तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी| " ---डा श्याम गुप्त
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,.... मानवता, शोषण ,साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है | " ----- धन सिंह मेहता
" मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | " ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | " ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )
" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | " --- डा श्याम गुप्त
" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता | " ----- पार्थो सेन
" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | " -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद
" जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी | " --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | " ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )
" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी | " ---- विजय कुमारी मौर्या
अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव भी खूब प्रदर्शित हुए हैं ------
" असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ | " ----डा योगेश गुप्त
" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर | " ----गीता आकांक्षा
" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | " ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"
" यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? " ---- डा श्याम गुप्त
अतः निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |
अध्याय -५ समाप्त......
क्रमश: अगीत साहित्य दर्पण -अध्याय -६ अगले पोस्ट में ....
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है | अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है | यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
" रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य | " -------स्नेह प्रभा
" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी | " ----- राम कृपाल 'ज्योति'
" सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी | " ------ विनय शंकर दीक्षित
" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित | " ---- डा श्याम गुप्त
नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है | सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है | नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
" पुरुष ने नारीको,
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम | " -------मंजू सक्सेना 'विनोद'
" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी | " ----- सुषमा गुप्ता
" नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की |
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी |
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे | " ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की |
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम |
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को | " ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ |
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ | " ---- डा सत्य
" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है |
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ | " ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा
" नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है | " ----- सुभाष हुडदंगी
" तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी| " ---डा श्याम गुप्त
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,.... मानवता, शोषण ,साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है | " ----- धन सिंह मेहता
" मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है |
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा | " ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें | " ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )
" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित | " --- डा श्याम गुप्त
" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता | " ----- पार्थो सेन
" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक | " -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद
" जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी | " --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे | " ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )
" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी | " ---- विजय कुमारी मौर्या
अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव भी खूब प्रदर्शित हुए हैं ------
" असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ | " ----डा योगेश गुप्त
" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर | " ----गीता आकांक्षा
" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था | " ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"
" यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? " ---- डा श्याम गुप्त
अतः निश्चय ही अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है | अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं |
अध्याय -५ समाप्त......
क्रमश: अगीत साहित्य दर्पण -अध्याय -६ अगले पोस्ट में ....