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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

श्याम स्मृतियाँ--१ से ५ ----डा श्याम गुप्त --

                                  ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

 श्याम स्मृति-.यह भारत देश है मेरा ..
      यह भारतीय धरती वातावरण का ही प्रभाव है कि मुग़ल जो एक अनगढ़, अर्ध-सभ्यबर्बर घुडसवार आक्रमणकारियों की भांति यहाँ आये थे वे सभ्य, शालीन, विलासप्रिय, खिलंदड़े, सुसंस्कृत लखनवी -नजाकत वाले लखनऊआ नवाब बन गए | अक्खड-असभ्य जहाजी, सदा खड़े-खड़े, भागने को तैयार, तम्बुओं में खाने-रहने वाले अँगरेज़, महलों, सोफों, कुर्सियों को पहचानने लगे |
      यह वह देश है जहां प्रेम, सौंदर्य, नजाकत, शालीनता, इसकी  संस्कृति, में रचा-बसा है, इसके जल में घुला है, वायु में मिला है और खेतों में दानों के साथ बोया हुआ रहता हैप्रेम-प्रीति यहाँ की श्वांस है और यहाँ की हर श्वांस प्रेम है |
     यह पुरुरवा का, कृष्ण का, रांझे का, शाहजहां का और ताजमहल का देश है | जहां विश्व में मानव-सृष्टि के सर्वप्रथम काव्य में संदेषित है ---
"मा विदिष्वावहै"...किसी से भी विद्वेष न करें
          ..एवं
"समानी अकूती समानि हृदयानि वा
समामस्तु वो मनो यथा वै सुसहामती|" ........हम सबके मन, ह्रदय व कृतित्व सहमति व समानता से परिपूर्ण हों|

श्याम स्मृति-२.मानव मन, धर्म समाज ...
          जिस प्रकार मानव मन विभिन्न मानसिक ग्रंथियों का पुंज है, समाज भी व्यक्तियों का संगठन है|  मन बड़ा ही अस्थिर है,चलायमान है, वायवीय तत्व है | इस पर नियमन आवश्यक है |
          कानून मनुष्य ने बनाए हैं, उनमें छिद्र अवश्यम्भावी हैं, धर्म शाश्वत है, वही मन को स्थिरता दे सकता हैधर्महीन मानव, धर्महीन समाज, धर्महीन देश, स्थिरता तो क्या एक क्षण खडा भी नहीं रह सकता अपने पैरों परआज विश्व की अस्थिरता का कारण है धर्महीन समाज |  धर्म का अर्थ सम्प्रदाय नहीं है | आज के चर्चित "रिलीज़न" वास्तव में सम्प्रदाय ही हैं | धर्म और रिलीज़न दो भिन्न संस्थाएं हैंआज चर्चित भिन्न-भिन्न मत-मतान्तर, धार्मिक नियम, धर्म नहीं हैं | धर्म तो एक ही है और वह शाश्वत है | धर्म का अर्थ है, कर्तव्य का पालन, और धर्म का केवल एक ही सिद्धांत है, "कभी दूसरों को दुःख मत दो |"
"सर्वेन सुखिना सन्तु,सर्वे सन्तु निरामया |
सर्वे पश्यन्तु भद्राणि, मा कश्चिद दुखभाग्भवेत ||"

 श्याम स्मृति-३.खाली पेट नहीं रहा होगा ....
        मैं यह नहीं कहूँगा कि हमारे पुरखों ने वायुयान बना लिए थे, वे भी ऊपर के लोकों को जा चुके थे, आज के नवीन अस्त्र-शस्त्र भी उनके समय में थे | परन्तु पुष्पक विमान से उड़ने की कल्पना कर सकने वाला समाज निश्चय ही खाली पेट नहीं रहा होगा, रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या हल कर चुका होगा |

श्याम स्मृति-४.आज का युवा युग परिवर्तन....
    मैं यह स्पष्ट अनुभव कर रहा हूँ कि युग परिवर्तन होने वाला है, परिवर्तन होकर रहेगा| आज का सामान्य युवक प्रायः बुराई से, अन्याय से, असत्य से, भ्रष्टाचार से लडने की असफल, दिशाहीन कोशिश कर रहा है परन्तु कल का युवक, जो आज किशोर है, टीनेजर है, निश्चय ही बुराई से घृणा करता है | आज की नारी, स्त्री स्वतंत्रता की पक्षपाती तो है परन्तु उसके अंतर में अभी स्वयं प्रश्न वाचक चिन्ह है पर कल की नारी को निश्चय ही घर से बाहर सेवा, सर्विस नग्नता से एवं नारी की पुरुष से श्रेष्ठता के गान से घृणा होगी| यह होने वाला है, यदि कल नहीं तो परसों| यद्यपि जिस प्रकार अन्धकार शाश्वत है उसी प्रकार असत्य व अनय भी सम्पूर्ण विनष्ट नहीं होते कालचक्र की नियति तो वही जानता है|

श्याम स्मृति-५. वही जीता है ....     

           "जो अतीत की सुहानी गलियों की स्मृतियों के परमानंद, भविष्य की आशापूर्ण कल्पना की सुगंधि के आनंद एवं वर्तमान के सुख-दुःख-द्वंद्वों से जूझने के सुखानंद की साथ जीता है...वही जीता है |"

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