....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
विजानाति-विजानाति-----मनन...
छान्दोग्य उपनिषद में कथन है---
""यदा वै मनुत, अथ विजानाति। नामत्वा विजानाति। मत्वैव विजानाति । मतिस त्येव विजिग्यासितव्येति ।मतिं भगवो विजिग्यासे इति॥""
---व्यक्ति जब मनन करता है तभी ( किसी वस्तु-भाव का) ग्यान होता है ; मनन किये विना नहीं जान सकता। अत: मनन को जानने की इच्छा करें कि भगवन, मैं मनन को जानना चाहता हूं ।
---किसी वस्तु की वास्तविकता व गहराई जानने हेतु उसमें डुबकी लगाना आवश्यक होता है। मनन क्या है यह भी ठीक प्रकार से जानना चाहिये।
----मनन --मानव का विशिष्ट गुण है इसीलिये वह मानव कहलाता है ।