....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
त्रिभुवन गुरु और जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष प्रमाण |
जन्म मरण से मुक्ति दे , ईश्वर करूँ प्रणाम ||
यद्किंचित भी ज्ञान जो हम को देय बताय |
ज्ञानी उसको मान कर फिर गुरु लेय बनाय ||
दावानल संसार में, दारुण दुःख अनंत,|
श्याम करे गुरु वन्दना, सब दुखों का अंत ||
गु अक्षर का अर्थ है, अंधकार अज्ञान |
रु से उसको रोकता, सो है गुरू महान |
आलोकित हो श्याम का, मन रूपी आकाश |
सूरज बन् कर ज्ञान का, जब गुरु करे प्रकाश ||
इस संसार अपार को, किसी विधि कीजै पार |
श्याम गुरु कृपा पाइए, सब विधि हो उद्धार ||
जब तक मन स्थिर नहीं,मन नहीं शास्त्र विचार |
गुरु की कृपा न प्राप्त हो, मिले न तत्व विचार ||
त्रिभुवन गुरु और जगत गुरु, जो प्रत्यक्ष प्रमाण |
जन्म मरण से मुक्ति दे , ईश्वर करूँ प्रणाम ||
यद्किंचित भी ज्ञान जो हम को देय बताय |
ज्ञानी उसको मान कर फिर गुरु लेय बनाय ||
दावानल संसार में, दारुण दुःख अनंत,|
श्याम करे गुरु वन्दना, सब दुखों का अंत ||
गु अक्षर का अर्थ है, अंधकार अज्ञान |
रु से उसको रोकता, सो है गुरू महान |
आलोकित हो श्याम का, मन रूपी आकाश |
सूरज बन् कर ज्ञान का, जब गुरु करे प्रकाश ||
इस संसार अपार को, किसी विधि कीजै पार |
श्याम गुरु कृपा पाइए, सब विधि हो उद्धार ||
जब तक मन स्थिर नहीं,मन नहीं शास्त्र विचार |
गुरु की कृपा न प्राप्त हो, मिले न तत्व विचार ||