....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
राम ...राम क्यों हैं..........रामलीलाओं के मंचन के समारोहों .... दीप-पर्व....के उपलक्ष ....पर विशेष .....
राम, राम क्यों हैं ? वे क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जबकि उनके ऊपर विभिन्न आरोप लगते रहे हैं ....नारी विरोधी अर्थात सीता की अग्नि परीक्षा का, शूद्र शम्बूक वध रूपी शूद्र विरोधी का, ताड़का वध व शूर्पणखा नासा भंग प्रकरण में स्त्री-ह्त्या व प्रतारणा का, बाली वध के अन्याय व कदाचरण का .......
समस्त वीरोचित गुण, शक्ति, तप, भक्ति, ज्ञान तो विश्व-विजेता रावण में भी था...उसने तो वेद की संहिता की भी रचना की है, शिव स्त्रोत की भी, रावण वीणा वाद्य यंत्र की भी .......राम ने तो कोई ऐसी शास्त्र रचना नहीं की, न कृतित्व ...... पर रावण ..रावण है ...राम..... मर्यादा पुरुषोत्ताम राम....| वस्तुतः समस्त ज्ञान, शौर्य व कर्म के पश्चात भी महत्त्व इसका है कि व्यक्ति के .....कृतित्व का भाव क्या है ...आत्म-भाव या परमार्थ भाव .....यही तथ्य सामयिक व कालजयी महत्ता स्थापित करता हैकि वह राम है या रावण |
राम युग प्रवर्तक हैं, नयी नयी युग-प्रवर्तक मर्यादाओं, कर्म व आचरण नियमों के संस्थापक, वे स्वयं ज्ञान के भण्डार हैं, वे कर्म ज्ञानी हैं ,उन्होंने ग्रन्थ भले ही न लिखे हों परन्तु वैदिक रीतियों-नियमों -आचरणों को स्वयं कर्मों में समाहित किया एवं उदाहरण रखा .....साथ ही साथ कुछ पुरातन अनावश्यक परम्पराओं के परिवर्धन के साथ नवीन शोधन भी किया, सबकुछ परमार्थ हित...आत्म-हितार्थ नहीं ...इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं|
उनपर लगे ये आरोप भी यदि व्याख्यायित किये जायं तो युगप्रवर्तक कार्य हैं| राम का अवतरण सतयुग एवं त्रेता युग के संधि-काल में हुआ ...जहां प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप ....वैदिक युग की सत्याचरण व शुचिता की पश्च-वैदिक काल मेंह्रास होने लगा थी | अतः सामाजिक, राजनैतिक एवं मानव आचरण सुधार अपेक्षित थे ...इसीलिये तो अवतार होते हैं |
अग्नि परीक्षा...वैदिक युग में नारी पूर्ण रूप से स्वतंत्र थी ....अपनी मर्जी से पुरुष चुनने, अपनी मर्जी से कभी तक भी किसी के भी साथ रहने किसी भी ज्ञानी, महान पुरुष से सम्भोग या संतान उत्पन्न करने के लिए स्वतंत्र थी.....सरस्वती, गंगा, उर्वशी-पुरुरवा , गुरुपत्नी तारा व चन्द्रमा विवाद, अनुसूया -त्रिदेव प्रकरण ... को सामान्य घटनाओं की भाँति लेना उस समय की समाज की स्वतन्त्रता की पराकाष्ठा थी...... वह आत्म-शुचिता, सत्यवादिता, सत्याचरण का युग था ......पश्च वैदिक युग में प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप सत्याचरण व शुचिता के ह्रास के कारण इस स्वतन्त्रता व खुलेपन के सामाजिक, मानवीय एवं चारित्रिक दुष्परिणाम थे आने लगे अतः नारी शुचिता एवं एक पत्नीत्व ---स्त्री-पुरुषों के लिए नवीन युग मर्यादाएं राम द्वारा स्थापित की गयीं |
शम्बूक बध .....सतयुग के अंत में व त्रेता के प्रारम्भ में शास्त्रों व ज्ञान की मर्यादाएं भी भंग होने लगीं थीं......जिसका प्रमाण राजा भानुप्रताप की रसोई में धोखे से मानव-मांस का मिला देना, रावण जैसे विद्वान् का शास्त्र विरुद्ध कर्मों में लिप्त होजाना आदि.....अतः अनाधिकारी को विशिष्ट ज्ञान न मिल पाए ..यह युग मर्यादा आवश्यक थी जो राजा का कर्त्तव्य होता है ...जिसका पालन राजा राम ने किया ...|
स्त्री ह्त्या ( ताड़का वध )...व शूर्पणखा नासिका हरण ......वैदिक काल सत्य युग में स्त्रियाँ अवध्य थीं एवं उनकी इच्छा सर्वोपरि ...जिसका पश्च वैदिक काल में दुरुपयोग होने लगा था ....मेनका-विश्वामित्र .....सुमाली-कैकसी -विश्रवा-रावण प्रकरण .....जिसका प्रमुख उदाहरण है ......| राजा के रूप में राम ने नवीन युगधर्म की स्थापना की....... स्त्री-पुरुष दोनों समान हैं....समान अपराध के लिए दंड भी मिलना ही चाहिए ....यदि स्त्री अपराध में संलिप्त है तो वह भी दंडनीय है |
बालि बध के अन्यायपूर्ण कृत्य ..... चाहे कोइ कितना भी महान हो, बलशाली हो .परन्तु अन्याय का दंड उसे भुगतना ही चाहिए .....देश के सबसे बड़े चक्रवर्ती साम्राज्य के अधिकारी राम का यह नैतिक दायित्व था कि बालि को दण्डित होना ही चाहिए ....'शठे शाठ्यं समाचरेत '....यह राज्य का धर्म है.......यदि किसी ने अनुपयुक्त शक्ति प्राप्त की है एवं वह उसका दुरुपयोग कर रहा है तो स्वयं को सुरक्षित रखकर उसे दंड देना राज्य का कार्य है |
राजा रामचंद्र ....राम ......इसी लिए श्रीराम हैं ....मर्यादा पुरुषोत्तम राम.....भगवान श्री राम ......भारत के राम........विश्वात्मा राम .....|
..... चित्र ....गूगल साभार
राम ...राम क्यों हैं..........रामलीलाओं के मंचन के समारोहों .... दीप-पर्व....के उपलक्ष ....पर विशेष .....
राम, राम क्यों हैं ? वे क्यों मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जबकि उनके ऊपर विभिन्न आरोप लगते रहे हैं ....नारी विरोधी अर्थात सीता की अग्नि परीक्षा का, शूद्र शम्बूक वध रूपी शूद्र विरोधी का, ताड़का वध व शूर्पणखा नासा भंग प्रकरण में स्त्री-ह्त्या व प्रतारणा का, बाली वध के अन्याय व कदाचरण का .......
समस्त वीरोचित गुण, शक्ति, तप, भक्ति, ज्ञान तो विश्व-विजेता रावण में भी था...उसने तो वेद की संहिता की भी रचना की है, शिव स्त्रोत की भी, रावण वीणा वाद्य यंत्र की भी .......राम ने तो कोई ऐसी शास्त्र रचना नहीं की, न कृतित्व ...... पर रावण ..रावण है ...राम..... मर्यादा पुरुषोत्ताम राम....| वस्तुतः समस्त ज्ञान, शौर्य व कर्म के पश्चात भी महत्त्व इसका है कि व्यक्ति के .....कृतित्व का भाव क्या है ...आत्म-भाव या परमार्थ भाव .....यही तथ्य सामयिक व कालजयी महत्ता स्थापित करता हैकि वह राम है या रावण |
राम युग प्रवर्तक हैं, नयी नयी युग-प्रवर्तक मर्यादाओं, कर्म व आचरण नियमों के संस्थापक, वे स्वयं ज्ञान के भण्डार हैं, वे कर्म ज्ञानी हैं ,उन्होंने ग्रन्थ भले ही न लिखे हों परन्तु वैदिक रीतियों-नियमों -आचरणों को स्वयं कर्मों में समाहित किया एवं उदाहरण रखा .....साथ ही साथ कुछ पुरातन अनावश्यक परम्पराओं के परिवर्धन के साथ नवीन शोधन भी किया, सबकुछ परमार्थ हित...आत्म-हितार्थ नहीं ...इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं|
उनपर लगे ये आरोप भी यदि व्याख्यायित किये जायं तो युगप्रवर्तक कार्य हैं| राम का अवतरण सतयुग एवं त्रेता युग के संधि-काल में हुआ ...जहां प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप ....वैदिक युग की सत्याचरण व शुचिता की पश्च-वैदिक काल मेंह्रास होने लगा थी | अतः सामाजिक, राजनैतिक एवं मानव आचरण सुधार अपेक्षित थे ...इसीलिये तो अवतार होते हैं |
अग्नि परीक्षा...वैदिक युग में नारी पूर्ण रूप से स्वतंत्र थी ....अपनी मर्जी से पुरुष चुनने, अपनी मर्जी से कभी तक भी किसी के भी साथ रहने किसी भी ज्ञानी, महान पुरुष से सम्भोग या संतान उत्पन्न करने के लिए स्वतंत्र थी.....सरस्वती, गंगा, उर्वशी-पुरुरवा , गुरुपत्नी तारा व चन्द्रमा विवाद, अनुसूया -त्रिदेव प्रकरण ... को सामान्य घटनाओं की भाँति लेना उस समय की समाज की स्वतन्त्रता की पराकाष्ठा थी...... वह आत्म-शुचिता, सत्यवादिता, सत्याचरण का युग था ......पश्च वैदिक युग में प्रगति, भौतिक उन्नति एवं जनसंख्या प्रगति के फलस्वरूप सत्याचरण व शुचिता के ह्रास के कारण इस स्वतन्त्रता व खुलेपन के सामाजिक, मानवीय एवं चारित्रिक दुष्परिणाम थे आने लगे अतः नारी शुचिता एवं एक पत्नीत्व ---स्त्री-पुरुषों के लिए नवीन युग मर्यादाएं राम द्वारा स्थापित की गयीं |
शम्बूक बध .....सतयुग के अंत में व त्रेता के प्रारम्भ में शास्त्रों व ज्ञान की मर्यादाएं भी भंग होने लगीं थीं......जिसका प्रमाण राजा भानुप्रताप की रसोई में धोखे से मानव-मांस का मिला देना, रावण जैसे विद्वान् का शास्त्र विरुद्ध कर्मों में लिप्त होजाना आदि.....अतः अनाधिकारी को विशिष्ट ज्ञान न मिल पाए ..यह युग मर्यादा आवश्यक थी जो राजा का कर्त्तव्य होता है ...जिसका पालन राजा राम ने किया ...|
स्त्री ह्त्या ( ताड़का वध )...व शूर्पणखा नासिका हरण ......वैदिक काल सत्य युग में स्त्रियाँ अवध्य थीं एवं उनकी इच्छा सर्वोपरि ...जिसका पश्च वैदिक काल में दुरुपयोग होने लगा था ....मेनका-विश्वामित्र .....सुमाली-कैकसी -विश्रवा-रावण प्रकरण .....जिसका प्रमुख उदाहरण है ......| राजा के रूप में राम ने नवीन युगधर्म की स्थापना की....... स्त्री-पुरुष दोनों समान हैं....समान अपराध के लिए दंड भी मिलना ही चाहिए ....यदि स्त्री अपराध में संलिप्त है तो वह भी दंडनीय है |
बालि बध के अन्यायपूर्ण कृत्य ..... चाहे कोइ कितना भी महान हो, बलशाली हो .परन्तु अन्याय का दंड उसे भुगतना ही चाहिए .....देश के सबसे बड़े चक्रवर्ती साम्राज्य के अधिकारी राम का यह नैतिक दायित्व था कि बालि को दण्डित होना ही चाहिए ....'शठे शाठ्यं समाचरेत '....यह राज्य का धर्म है.......यदि किसी ने अनुपयुक्त शक्ति प्राप्त की है एवं वह उसका दुरुपयोग कर रहा है तो स्वयं को सुरक्षित रखकर उसे दंड देना राज्य का कार्य है |
राजा रामचंद्र ....राम ......इसी लिए श्रीराम हैं ....मर्यादा पुरुषोत्तम राम.....भगवान श्री राम ......भारत के राम........विश्वात्मा राम .....|
..... चित्र ....गूगल साभार