....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
श्याम स्मृति....अनावश्यक व्यर्थ के समाचार व टीवी चर्चाएँ ......
बहुत से समाचार सिर्फ़ तमाशे व चौकाने के लिए या सबसे पहले हम, या संवाददाता अपनी हनक के लिए देते हैं या फिर पैसा कमाने व वांटने का जरिया होगया है। सरकार के फैसले के -अंदरूनी बातों मैं सामान्य जनता को क्या मतलब हो सकता है? हमें केवल खेल होने से और देखने से मतलब है , होगा तो देखेंगे नहीं तो कुछ और देखेंगे, जो फैसला होगा, होने
दो
कौन
सा
बहुत
महत्वपूर्ण देश, समाज
का
मसला
है?--
क्रिकेट का खेल हुआ देखलिया, हार जीत जो हुआ ठीक है। अब उसका ये हुआ वो हुआ , यूँ
हुआ , व्यर्थ कहानी कहने दिखाने का क्या अर्थ है ?--कोई एक्सीडेंट हुआ समाचार देखा , सुना ठीक है ? अब ये होरहा है, गाडी, पटरी आदि का एनीमेशन दिखाकर क्या मिलेगा?---सब धंधेबाजों का व्यर्थ का तमाशा है। इन व्यर्थ के कार्यों मैं जो धन, समय, बर्वाद होता है उससे जाने कितने गरीब , भूखों
को
खाना
कपडा
मिल
सकता
है।
अब यदि आशाराम का केस
कोर्ट में है तो क्या टीवी पर बहस, चर्चाएँ, वार्ताएं आदि से कोर्ट की अवमानना
नहीं होती | ज़रा सा किसी नागरिक के कुछ कहने से तो कोर्ट की अवमानना होजाती है |
ये व्यर्थ के प्रोग्राम सिर्फ कुछ लोगों को पैसे बांटने के धंधे हैं ..बंद होने
चाहिए |
_ __-सोचिये । सोचिये --सोचिये
_ __-सोचिये । सोचिये --सोचिये