....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
जब आये ऋतुराज बसंत ||
आशा तृष्णा प्यार जगाए ,
विह्वल मन में उठे तरंग |
मन में फूले प्यार की सरसों,
अंग अंग भर उठे उमंग |
जब आये ऋतुराज बसंत ||
अंग अंग में रस भर जाए,
तन मन में जादू कर जाए |
भोली, सरल गाँव की गोरी,
प्रेम मगन राधा बन जाए |
कण कण में ऋतुराज समाये ,
हर प्रेमी कान्हा बन जाए,
ऋषि मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे रंग रस रूप अनंत |
जब आये ऋतुराज बसंत ||
जब आये ऋतुराज बसंत ||
आशा तृष्णा प्यार जगाए ,
विह्वल मन में उठे तरंग |
मन में फूले प्यार की सरसों,
अंग अंग भर उठे उमंग |
जब आये ऋतुराज बसंत ||
अंग अंग में रस भर जाए,
तन मन में जादू कर जाए |
भोली, सरल गाँव की गोरी,
प्रेम मगन राधा बन जाए |
कण कण में ऋतुराज समाये ,
हर प्रेमी कान्हा बन जाए,
ऋषि मुनि मन भी डोल उठें, जब-
बरसे रंग रस रूप अनंत |
जब आये ऋतुराज बसंत ||