....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सूनी सब गलिया पडीं,अब कित रंग तरंग |
बस कविता औ ब्लॉग पर, दिखते होली-रंग ||
बाट जोहता सुबह से, कोई तो आजाय |
होरी है कहता हुआ, मुख पे रंग लगाय |
नल में पानी है नहीं, कैसे रंग घुल पाय |
सूखे सूखे ही चलो अब रंग लेउ उड़ाय |
घर से निकले सोचते, लौटें भीगे अंग |
अपने अपने मस्त सब,लौटे हम बेरंग |
घूरत ही पूरे भये, तुरत बीस सेकिंड |
अब रंग कैसे डालते, कानूनी प्रतिबन्ध |
घूरन की का जरूरत, दो क्षण रंग उड़ाय |
हाथ जहां चाहे परे, बस रंग देऊ चढ़ाय |
सूनी सब गलिया पडीं,अब कित रंग तरंग |
बस कविता औ ब्लॉग पर, दिखते होली-रंग ||
बाट जोहता सुबह से, कोई तो आजाय |
होरी है कहता हुआ, मुख पे रंग लगाय |
नल में पानी है नहीं, कैसे रंग घुल पाय |
सूखे सूखे ही चलो अब रंग लेउ उड़ाय |
घर से निकले सोचते, लौटें भीगे अंग |
अपने अपने मस्त सब,लौटे हम बेरंग |
घूरत ही पूरे भये, तुरत बीस सेकिंड |
अब रंग कैसे डालते, कानूनी प्रतिबन्ध |
घूरन की का जरूरत, दो क्षण रंग उड़ाय |
हाथ जहां चाहे परे, बस रंग देऊ चढ़ाय |