ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 12 मई 2009

ग़ज़ल की गज़लें

१. ग़ज़ल होती है --
शेर मतले का रहे ,तो ग़ज़ल होती है ।
शेर मक्ते का रहे तो ग़ज़ल होती है ।

रदीफ़ और काफिया रहे ,तो ग़ज़ल होती है ,
बहर हो सुर ताल लयहो ,वो ग़ज़ल होती है।

पाँच से ज्यादा हों शेर ,तो ग़ज़ल होती है ,
बात खाशो -आम की हो ,वो ग़ज़ल होती है।

ग़ज़ल की क्या बात यारो ,वो तो ग़ज़ल होती है ,
ग़ज़ल की हो बात जिसमें ,वो ग़ज़ल होती है।

ग़ज़ल कहने का भी इक अंदाजे ख़ास होता है,
कहने का अंदाज़ जुदा हो तो ग़ज़ल होती है।

ग़ज़ल तो बस इक अंदाजे -बयाँ है श्याम ,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है॥

२-कैसी --कैसी गज़लें ---

शेर मतले का न हो ,तो कुंवारी ग़ज़ल होती है।

हो काफिया ही जो नहीं ,बेचारी ग़ज़ल होती है।

और भी मतले हों ,हुस्ने तारी ग़ज़ल होती है ,

हर शेर ही मतला हो ,हुस्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।

हो रदीफ़ काफिया नहीं ,नाकारी ग़ज़ल होती है,

मकता बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।

मतला भी ,मक्ता भी ,रदीफ़ काफिया भी हो ,

सोची ,समझ के ,लिख के ,सुधारी ग़ज़ल होती है ।

हो बहर में ,सुर ताल लय में ,प्यारी ग़ज़ल होती है ,

सब कुछ हो कायदे में ,वो संवारी ग़ज़ल होती है।

हर शेर एक भाव हो, वो जारी ग़ज़ल होती है,

हर शेर नया अंदाज़ हो ,वो भारी ग़ज़ल होती है।

मस्ती में कहदें झूम के ,गुदाज्कारी ग़ज़ल होती है,

उनसे तो जो कुछ भी कहें ,मनोहारी ग़ज़ल होती है।

जो वार दूर तक करे , करारी ग़ज़ल होती है,

छलनी हो दिले- आशिक ,वो शिकारी ग़ज़ल होती है।

हो दर्दे-दिल की बात ,दिलदारी ग़ज़ल होती है,

मिलने का करें वायदा ,मुतदारी ग़ज़ल होती है।

तू गाता चल ऐ यार ! कोई कायदा न देख ,

कुछ अपना ही अंदाज़ हो ,खुद्दारी ग़ज़ल होती है ।

जो उस की राह में कहो ,इकरारी ग़ज़ल होती है,

अंदाजे-बयाँ हो श्याम का ,वो न्यारी ग़ज़ल होती है॥