....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
बूँद बूँद करि संचि लेउ, धन औ धरम व ज्ञान ।
बूंदन बूंदन घट भरे, संचय मरम महान ।
छंद लिखौ जो आपनौ, माला निज गुंथि पाय ।
चन्दन जो निज कर घिसौ, सो अति सोभा पाय ।
राह देखि कें पगु धरें, जल लें छानि- सुधार ।
सास्त्र बचन बोलें, करें, कारजु सोचि विचारि ।
भूमि, त्रिया, कटु बोलिबौ, जाति द्वेष अपराध ।
श्याम सदा इन पांच ते , बाढहि बैर अपार ।
चित ही तौ संसार है, रखि चित सुघर सजाय ।
जाकौ जैसो चित रहै, तैसी ही गति पाय ।
जैसें मथि कें दूध कौं, माखन मिलै अपार ।
मन के मथिवे ते जथा,परगट सुघर विचार ।
जावै मन कौ मैल धुलि, श्याम सोइ असनान ।
इन्द्रिय सब बस में रहें , सोई सुचिता जान ।
माया बस जो जीव है, पडौ अंध के कूप ।
ज्ञानी करम न जो करै, गयौ कूप में डूब ।
दोहे राम-रहीम के, याद किये का होय ।
सीख मानिहै यदि नहीं, बनै चतुर नहिं कोय ।
श्याम कपट कौ तेल भरि, भव-सुख दीप बराय ।
माया -गुन बाती जरै, काजर ही तौ पाय ।
दुरमति सुमति सुनै नहीं, विनय न मानहि नीचु ।
केरा काटे ही फरै, चाहे जेतौ सींचु ।