भाई और बहन का प्यार कैसे भूल जाएँ ,
बहन ही तो भाई का प्रथम सखा होती है।
भाई ही तो बहन का होता है प्रथम मित्र ,
बचपन की यादें कैसी मन को भिगोती हैं।
बहना दिलाती याद,ममता की, माँ की छवि,
भाई में बहन छवि,पिता की संजोती है।
बचपन महकता ही रहे सदा यूंही श्याम,
बहन को भाई उन्हें बहनें प्रिय होती हैं॥
भाई औ बहन का प्यार,दुनिया में बेमिसाल ,
यही प्यार बैरी को भी राखी भिजवाता है।
दूर देश बसे हों, परदेश या विदेश में हों,
भाइयों को यही प्यार खींच खींच लाता है।
एक एक धागे में बंधा असीम प्रेम बंधन,
राखी की त्यौहार 'रक्षाबंधन' बताता है।
निश्छल अमिट बंधन,'श्याम धरा-चाँद जैसा,
चाँद इसीलिये, चन्दा मामा कहलाता है।।
रंग बिरंगी सजी राखियाँ कलाइयों पै ,
देख -देख भाई , हरषाते इठलाते हैं ।
बहन है जो लाती मिठाई भरी प्रेम रस,
एक दूसरे को बड़े प्रेम से खिलाते हैं।
दूर देश बसे जिन्हें राखी मिली डाक से,
बहन की ही छवि देख देख मुस्काते हैं।
अमित अटूट बंधन है ये प्रेम रीति का,
सदा बना रहे 'श्याम' मन से मनाते हैं॥
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
बेंगलूरू में हिन्दी---एक अवलोकन----
२६ जुलाई २००१० को मैं लखनऊ से बंगलौर पहुंचा | अगीत विधा के संस्थापक , अ भा अगीत प , लखनऊ के संस्थापक अध्यक्ष डा रंग नाथ मिश्र 'सत्य' जी के सन्दर्भ से मैंने डा ललितम्बा , अव प्राप्त प्रोफ़ व हेड, हिन्दी विभाग मैसूर वि वि से फोन पर सम्पर्क किया। सुखद आश्चर्य हुआ कर्नाटक में हिन्दी प्रदेश के व हिन्दी के व्यक्तियों से लोग बडे आदर व प्रेम से मिलते हैं; जब ललितम्बा जी ने दूसरे दिन ही मुझे स्वयं फ़ोन करके - कर्नाटक में हिन्दी के पुरोधा व संस्थापक स्व नागराज नागप्पा, जिन्हें कर्नाटक में " हिन्दी नागप्पा" के नाम से जाना जाता है- की प्रथम बरसी पर आयोजित समारोह में आने का आमंत्रण बडे आग्रह के साथ दिया, रास्ते का विवरण दिया एवं कई बार फ़ोन करके कहां हैं,पूछा भी जब तक मैं वहां पहुंच नहीं गया। आयोजन के पश्चात वहां अन्य हिन्दी के विद्वानों से मुलाकात वडे सौहार्दपूर्ण माहोल में हुई, कुछ अन्य विद्वान व साहित्यकार अन्य प्रदेशों से भी आये थे।
कर्नाटक में हिन्दी की स्थिति जानने की इच्छा से और अधिक जानकारी प्राप्त करने पर मुझे यह समझ में आया कि कर्नाटक में हिन्दी के प्रचार व प्रसार का कार्य मूलतः हमारे हिन्दी भाषी प्रान्तों की अपेक्षा अधिक होरहा है, हों सकता है यह स्वाभाविक आवश्यकता के कारण हो, परन्तु श्लाघ्य है ।कुछ असंतोष की भावनायें भी प्रतीत हुईं कि हिन्दी प्रदेश व केन्द्र हिन्दी की ओर अधिक ध्यान नहीं दे रहे एवम हिन्दी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं बन पारही, तथा हिन्दी साहित्य में गिरावट व पढ़ने वालों की कमी के प्रति चिंता भी हैं |
मुख्यत: बन्गलोर में तीन संस्थाए हिन्दी के प्रचार प्रसार में संलग्न हैं---
१.मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद एवं अखिल कर्नाटक हिन्दी साहित्य एकेडेमी, राजाजी नगर--जिसके कर्ता धर्ता श्री राम संजीवैया जी बडे मिलन सार सह्रिदयी व्यक्ति हैं। वे मासिक हिन्दी पत्रिकाभी निकालते हैं जो हिन्दी भाषा व साहित्य के उत्थान से ओत प्रोत उच्चकोटि के साहित्यिक आलेखों व साहित्य से परिपूर्ण होती है। इसके साथ ही हिन्दी की विभिन्न परीक्षाएं, एवं शोध कार्य भी किये जाते हैं।
२.कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति , जय नगर--के कर्ता धर्ता श्री वी रा देवगिरि जी भी बडे प्रेम-भाव से मिले एवं अपना संस्थान दिखाया। यह संस्थान भी 'भाषा-पीयूष' नाम से एक हिन्दी त्रैमासिक प्रकाशित करता हैं |हिन्दी प्रचार -प्रसार के लिए परीक्षाएं वे शोध कार्य भी ।
३।कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, चामराज पेट--- पूर्णतया महिलाओं द्वारा संचालित यह संस्था शायद भारत में एकमात्र ऐसी संस्था हैं जो महिलाओं में हिन्दी के प्रचार/ प्रसार के लिए कटिबद्ध हैं। संस्था की संस्थापिका सदस्य व प्रधान सुश्री शांता बाई एक कर्मठ व योग्य महिला हैं जिन्होंने बड़े प्रेम से सारा संस्थान दिखाया| संस्थान का अपना स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस भी हैं जो महिला कर्मियों द्वारा ही संचालित हैं | यह संस्थान हिन्दी की परीक्षाएं , शोध, एम् फिल, पी एच डी भी कराती हैं एवं स्वायत्तशासी संस्था हैं |संस्थान 'हिन्दी प्रचार वाणी ' नामक हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करता हैं।
हम उत्तर भारतीय समझते हैं कि दक्षिण में हिन्दी बोली व भाषा की स्थिति अधिक अच्छी नहीं हैं, परन्तु मुझे एसा महसूस हुआ कि यहाँ हिन्दी अधिक शुद्ध व परिष्कृत बोली जाती हैं एवं सभी पत्रिकाओं में विशुद्ध हिन्दी में व उच्च कोटि के साहित्यिक व हिन्दी के समर्थन में विद्वतापूर्ण आलेख प्रस्तुत होते हैं। शायद अभी हिन्दी वेल्ट उत्तर भारत की भांति बाज़ार वाद का अधिक प्रभाव नहीं हैं।
कर्नाटक में हिन्दी की स्थिति जानने की इच्छा से और अधिक जानकारी प्राप्त करने पर मुझे यह समझ में आया कि कर्नाटक में हिन्दी के प्रचार व प्रसार का कार्य मूलतः हमारे हिन्दी भाषी प्रान्तों की अपेक्षा अधिक होरहा है, हों सकता है यह स्वाभाविक आवश्यकता के कारण हो, परन्तु श्लाघ्य है ।कुछ असंतोष की भावनायें भी प्रतीत हुईं कि हिन्दी प्रदेश व केन्द्र हिन्दी की ओर अधिक ध्यान नहीं दे रहे एवम हिन्दी राष्ट्र भाषा क्यों नहीं बन पारही, तथा हिन्दी साहित्य में गिरावट व पढ़ने वालों की कमी के प्रति चिंता भी हैं |
मुख्यत: बन्गलोर में तीन संस्थाए हिन्दी के प्रचार प्रसार में संलग्न हैं---
१.मैसूर हिन्दी प्रचार परिषद एवं अखिल कर्नाटक हिन्दी साहित्य एकेडेमी, राजाजी नगर--जिसके कर्ता धर्ता श्री राम संजीवैया जी बडे मिलन सार सह्रिदयी व्यक्ति हैं। वे मासिक हिन्दी पत्रिकाभी निकालते हैं जो हिन्दी भाषा व साहित्य के उत्थान से ओत प्रोत उच्चकोटि के साहित्यिक आलेखों व साहित्य से परिपूर्ण होती है। इसके साथ ही हिन्दी की विभिन्न परीक्षाएं, एवं शोध कार्य भी किये जाते हैं।
२.कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति , जय नगर--के कर्ता धर्ता श्री वी रा देवगिरि जी भी बडे प्रेम-भाव से मिले एवं अपना संस्थान दिखाया। यह संस्थान भी 'भाषा-पीयूष' नाम से एक हिन्दी त्रैमासिक प्रकाशित करता हैं |हिन्दी प्रचार -प्रसार के लिए परीक्षाएं वे शोध कार्य भी ।
३।कर्नाटक महिला हिन्दी सेवा समिति, चामराज पेट--- पूर्णतया महिलाओं द्वारा संचालित यह संस्था शायद भारत में एकमात्र ऐसी संस्था हैं जो महिलाओं में हिन्दी के प्रचार/ प्रसार के लिए कटिबद्ध हैं। संस्था की संस्थापिका सदस्य व प्रधान सुश्री शांता बाई एक कर्मठ व योग्य महिला हैं जिन्होंने बड़े प्रेम से सारा संस्थान दिखाया| संस्थान का अपना स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस भी हैं जो महिला कर्मियों द्वारा ही संचालित हैं | यह संस्थान हिन्दी की परीक्षाएं , शोध, एम् फिल, पी एच डी भी कराती हैं एवं स्वायत्तशासी संस्था हैं |संस्थान 'हिन्दी प्रचार वाणी ' नामक हिन्दी मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी करता हैं।
हम उत्तर भारतीय समझते हैं कि दक्षिण में हिन्दी बोली व भाषा की स्थिति अधिक अच्छी नहीं हैं, परन्तु मुझे एसा महसूस हुआ कि यहाँ हिन्दी अधिक शुद्ध व परिष्कृत बोली जाती हैं एवं सभी पत्रिकाओं में विशुद्ध हिन्दी में व उच्च कोटि के साहित्यिक व हिन्दी के समर्थन में विद्वतापूर्ण आलेख प्रस्तुत होते हैं। शायद अभी हिन्दी वेल्ट उत्तर भारत की भांति बाज़ार वाद का अधिक प्रभाव नहीं हैं।
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