....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
( सवैया छंद में ....)
( सवैया छंद में ....)
शीश वही जो झुके चरनन नित राधा-गोविन्द स्वरुप सदा जो |
कान वही जो सुनें धुनी मुरली बजावै धरे सिर मोर पखा जो |
तन तौ वही जो निछावर होय धरे हिय रूप वा ऊधो सखा को |
हाथ वही जो जुड़ें हर्षित मन देखि के लीला जो गौ दोहन की |
पैर वही, जो कोसचौरासी चले परिकम्मा में गिरि गोधन की |
ध्यान वही जो रमे नितप्रति मनमोहिनी वा छबि में सोहन की |
श्याम है मन तो वही,मन ही मन मुग्ध मुरलिया पे मनमोहन की |
गलियां वही वृज की गलियाँ जहां धूलि में लोटें कृष्ण मुरारी |
ताल वही जहां चीर हरे दई गोपिन को शुचि सीख सुखारी |
चीर वही जो बढाये सखा ,सखि द्रुपदि -सुता हो आर्त पुकारी |
बैन वही जो उचारे सदा वही गोविन्द नाम भजे जग सारो |
रसना वही रसधार बहाय , भजे जेहि गोविंद नाम पियारो |
भक्ति वही गजराज करी परे दुःख में गोबिंद काज संवारो |
श्याम,वही नर गोविन्द गोविन्द,गोविन्द गोविन्द नाम उचारो ||