. ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
राजनीति व सत्ता का भ्रष्ट होना तो प्रसिद्ध है ही | अंग्रेज़ी कहावत है ..'पावर करप्ट्स" अर्थात सत्ता भ्रष्ट करती है ; जबकि भारतीय कहावत है ..'सत्ता पाहि क़ाहि मद नाहीं '....दोनों में क्या अंतर है...वही अंतर पश्चिम व भारतीय संस्कृति में है | पावर करप्ट्स का अर्थ है सत्ता सभी को करप्ट कर देती है अर्थात सत्ता है ही करप्शन का स्थान और ध्वनि निकलती है..मनुष्य का क्या दोष ?! जबकि भारतीय सन्दर्भ का अर्थ है कि सत्ता पाकर किसे मद नहीं होता (==सभी को नहीं होता) , अर्थात दोष उस मनुष्य का होता है जो प्रायः सत्ता पाकर भ्रष्ट होजाता है | अतः वही मूल मानवीय कदाचरण ही राजनीति व शासन में भी भ्रष्टाचार का दोषी है |
प्राचीन समय में प्रायः राजा ही शासक व न्यायाधीश दोनों हुआ करता था, वही प्रशासन व सेना का अध्यक्ष | अतः सुनवाई, न्याय व कार्यपालन त्वरित विना अवरोध के होता था | जो राजा स्वयं को जन-सेवक मान कर चलता था उसकी प्रजा संपन्न व राज्य और जन-जीवन सहज रूप से चलता था | जब राजा स्वयं अपने स्वार्थ में डूबता था ; जो सभी को दिखाई देता था क्योंकि सत्ता का केंद्र एक ही होता था, अतः ऐसे राजाओं के लिए कहावत बनी "राजा होय चोरी करे न्याय कौन पर जाय "और भ्रष्ट सिर्फ एक राजपरिवार ; तो प्रायः जन क्रान्ति से उसे हटा दिया जाता था |
आज प्रजातंत्र में सत्ता , प्रशासन, न्याय , सेना आदि सत्ता के विभिन्न केंद्र हैं ,सब कुछ गड्ड-मड्ड है| और न्याय, कार्य व उसके पालन के केंद्र अलग अलग होने से कार्य-पालन में त्वरितता नहीं आपाती और यदि सभी जन सहज आचरण वाले हैं तो सब ठीक है अन्यथा अनेकों भ्रष्टाचार के केंद्र होने से उसे रोकना एक टेडी-खीर साबित होता है, कौन किसे हटाये , अतः प्रत्येक जन को सदाचारी होना अत्यावश्यक है |
राजनीति के निर्णय दूरगामी व सर्वतोमुखी प्रभाव वाले होते हैं , अतः राजनेताओं के भ्रष्टाचार का प्रभाव शासन, प्रशासन, न्याय, सेना सभी पर पड़ता है , और जन जन भ्रष्टाचार में लिप्त होजाता है | अतः राजनेताओं को स्वयं व्यक्तिगत रूप से व राजनैतिक पार्टियों को भी समष्टिगत रूप से स्वच्छ व सदाचरण पूर्ण होना ही होगा |
आज राजनेताओं, मंत्रियों आदि में भ्रष्ट राजाओं की भाँति ( अफसरों, यहांतक कि न्यायविदों में भी-जिसका वर्णन वाद में अलग पोस्ट में किया जायगा ) स्वयं को जन सेवक की बजाय जनता के, देश के मालिक का भाव घर कर गया है , जो बदलना ही होगा | जिसका परिणाम --शासन , प्रशासन में चुपके चुपके ,छिपे तौर पर भ्रष्टाचार है तो ---राजनीति में ( विधायकों की खरीद-फरोख्त आदि ) व न्यायालयों में खुले आम | इसके चलते ही आज जन-लोकपाल बिल की आवाज़ उठी है | नेताओं को सुविधा,विशेष अधिकार, मासिक पे, निधि आदि सभी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कृत्य हैं |
क्या होना चाहिए ---
१- नेताओं व सांसदों , विधायकों को को पार्टी-हित से पहले देश हित की लिए कार्य करना चाहिए --पार्टी की मूल नीति यदि देश विरोधी है तो पार्लियामेंट स्वतंत्र वोटिंग करें |
२-सांसदों आदि का वेतन व पेंशन पर कोइ अधिकार नहीं है क्योंकि वे जन सेवक, समाज सेवक हैं सरकारी सेवक नहीं अतः बंद हो |
३-सांसद आदि के विशेष अधिकार व संसद-निधि का प्रावधान बंद कर देना चाहिए , नेता सिर्फ सिफारिस करें , स्वयं शासन का भाग न बनें|
४- नेता ,सांसद आदि किसी भी सरकारी , प्राइवेट दफ्तर अदि में अफसरों से मिलें नहीं, सरकारी कार्य का भाग न बनें , लोगों को लेकर काम कराने स्वयं न जायं , सिर्फ पत्र लिखें |
५- नेताओं, सांसदों आदि को अपने क्षेत्र से अन्यथा राजधानी में कोइ फ्लैट/ आवास न दिया जाय, सदा ही उसमें अवांछित गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है| सत्र के दौरान सम्मिलित -आवास होना चाहिए | सत्र के अलावा कोई नेता, सांसद आदि राजधानी न आये -जाए रेल व हवाई टिकट भी सिर्फ सत्र के लिए ही दिया जाय ६- वे बार बार कार्यालयों का दौरा न करें --मुख्य कार्यपालकों से ही रिपोर्ट लें , ट्रांसफर, पोस्टिंग , शासकीय आदेश पारित न करें | सिर्फ नीतिगत वक्तव्य ही दें |