....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
संघात्मक समीक्षा.... पुस्तक ---अगीतमाला
पुस्तक नाम—अगीत-माला (अगीत काव्य संग्रह), लेखक – श्री पार्थो सेन, मूल्य – १००/- रुपये
प्रकाशक –अखिल भारतीय अगीत परिषद् , ई -३८८५, राजाजी पुरम,लखनऊ, दू भा.-०५२२-२४१४८१७
प्रकाशन वर्ष – २०१३ ई., पृष्ठ संख्या -४८ ...आवरण -डा योगेश गुप्त, समीक्षक –डा श्याम गुप्त |
संस्कृत साहित्य की तादाम्यता में जब निराला जी ने जब कविता को तुकान्तबद्धता की अनिवार्यता से मुक्त किया तो विधिवत मुक्त-छंद अतुकांत कविता की स्थापना हुई | यद्यपि तत्कालीन कवि -महाकवि मुक्तछंद कविता की ओर कदम बढा चुके थे | मैथिलीशरण गुप्त जी का ‘सिद्धराज’ इसका उदाहरण है| निराला युग में अतुकांत कवितायें लम्बी-लम्बी व वर्णनात्मक होती थीं | उनके छंदों को रबरछंद, केंचुआछंद आदि कहा गया| बढ़ती हुई आधुनिकता, भौतिकता, यांत्रिकता के काल में लम्बी-लम्बी कविता के पठन-पाठन व समझने का समय जनसाधारण के पास नहीं रहा अतः संक्षिप्तता, अभिधेयता व स्पष्ट भाव-सम्प्रेषणता कविता की आवश्यकता बनी| छंदीय-काव्य में भी मुक्तकों आदि का अधिकाधिक चलन होने लगा| इसी आधुनिक आवश्यकता को अतुकांत कविता में ग्रहण करते हुए डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ ने १९६६ में ‘अगीत’ को जन्म दिया जो ५-से १० पंक्तियों का अतुकांत मुक्त-छंद है | जिसे अनेक अगीतकर कवियों द्वारा अनेक रचनाओं द्वारा एवं श्री जगतनारायण पांडे व डा श्याम गुप्त द्वारा खंड-काव्य व महाकाव्यों की रचना द्वारा समृद्ध किया गया| डा श्याम गुप्त द्वारा अगीत छंद विधान ‘अगीत साहित्य दर्पण’ लिख कर अगीत-विधा के शास्त्रीय पक्ष को बल प्रदान किया गया|
समीक्ष्य पुस्तक ‘अगीतमाला’ के रचनाकार, अगीतकार व समीक्षक पार्थोसेन का अगीत की स्थापना व अग्रगामिता में विशिष्ट सहयोग है| डा सत्य के प्रमुख सहयोगियों में से एक, अगीत गोष्ठियों के संयोजक व संघात्मक-समीक्षा पद्धति के समीक्षक के रूप में उनका कृतित्व किसी से छिपा नहीं है | वे क्रांतिकारी तारकनाथ के भतीजे हैं अतः साहित्य व कविता में क्रांतिकारी, प्रगतिवादी व सामयिक सामजिक परिप्रेक्ष्य से सम्बंधित विचार उनकी कविता के मूल में हैं एवं वही विचार व भाव प्रस्तुत कृति ‘अगीतमाला’ में भी मुखर हुए हैं| जो प्रथम मुख पृष्ठ पर ही आव्हान उद्बोधन से प्रकट होता है ---
‘अगीत ,
गीतों का पहला मीत
शुरू हुई जहां से
रचनाओं की रीत
आओ रचें
आज एक अगीत ‘
समर्पण में अतुकांत कविता के प्रणेता महाप्राण निरालाजी एवं अपने काव्यगुरु व ‘अगीत’ के संस्थापक डा रंगनाथ मिश्र सत्य के चित्र एवं ‘नमन है..’ शीर्षक से अगीत-विधा में प्रथम खंड-काव्य के रचयिता स्व.जगत नारायण पांडे एवं प्रथम अगीत छंद विधान के रचयिता डा श्याम गुप्त के चित्र दिए गए हैं जो रचयिता के अगीत के प्रति निष्ठा, लगन, श्रृद्धा व समर्पण के परिचायक हैं| डा उषा गुप्ता पूर्व रीडर हिन्दी विभाग, ल.वि.वि द्वारा लिखी गयी भूमिका में स्पष्ट कथन है कि “ प्रयोगवाद के उपरांत हिन्दी कविता में ...अगीत ने एक जोरदार धमाके के साथ एक प्रवाह, एक आन्दोलन के रूप में अपनी पहचान बनाई है |” डा रंगनाथ मिश्र का कथन है कि ..” मैं उनके अगीतों से पूरी तरह संतुष्ट हूँ ...” संतुलित समीक्षा पद्धति पर अपनी पुस्तक ‘गुण-दोष ‘ व कहानी संग्रह ‘ कमली’ के रचनाकार पार्थोसेन का प्रस्तुत रचना में ‘अपनी बात में ‘ विचार है कि .....’हमारे वेदों में ऋचाएं अतुकांत ही हैं |‘
अगीतमाला में लगभग १०८ अगीत रचनाएँ हैं जो पारंपरिक अगीत-छंद व नवीन-सृजित नव-अगीत छंदों में हैं एवं जीवन की विभिन्न सामाजिक गतिविधियों के रंगों से उत्कीर्ण किये गए हैं जिनमें उनकी अपनी स्वानुभूति की अभिव्यक्ति व अभिव्यंजना है| उनमें समस्याओं के समाधान की दिशा भी प्रस्तुत की गयी है जो अगीत का एक प्रमुख गुण है |
“ व्यवहार,
कभी न चूकने वाला अस्त्र
मानव समाज में |”
बंगला-भाषी होते हुए भी आपकी हिन्दी मंजी हुई है, उर्दू के शब्द भी प्रयुक्त हुए हैं| मूलतः बोलचाल की सामान्य व सरल भाषा का प्रयोग है जो विषयानुसार कथ्य व कविता को गति व उचित भाव सम्प्रेषण प्रदान करती है| नए शब्द, नए अर्थ व नवीन भाव भे परिलक्षित होते हैं| दूरस्थ भाव को भी देखिये कितनी स्पष्टता व सक्षमता से कहा गया है ---
‘निहारूंगा
मैं तुझे अपलक,
जैसे एक अबोध तकता है
इन्द्रधनुष एकटक |”
विभिन्न विषयों पर रचे गए अगीत उनकी दार्शनिक मान्यताओं को भी प्रदर्शित करते हैं ..
“रूप,
पड़ा हुआ केले का छिलका
जिसका पाँव पड़ा
वह फिसला |”
बहुत से क्रांतिकारी विचार व समाज व व्यक्ति के अंतर्संबंधों व नैतिकता को कितनी सहज़ता से कहा गया है...जो अगेत की विशेषता व कृतिकार की सफलता है...
“समाज
दीमक लगी लकड़ी
मनुष्य
घुना गेहूं |”
नव-प्रगति, नवोन्नति पर स्पष्ट व्यंजना है कि ....
तिमिर का शिविर
अब यहाँ नहीं लगता
क्योंकि ,
अब भोर होगई है|”
शक्ति व ज्ञान, बुद्धिजीवी लोग,शासन-जनता, राजा-प्रजा के अमंवय से ही उचित समाधान होगा----“ कलम,
यदि माँ सरस्वती का वरदान है, तो
तलवार
माँ दुर्गा की आन है;
दोनों का मिलाप ही
महायज्ञ है |”
कवि की स्थापना है कि आतंकवाद के चक्रीय दुश्चक्र है, इसे तोड़ना ही होगा, एक ही पक्ष दोषी नहीं, सामाजिक अन्याय व विषमता भी दोषी हैं ....
“आतंक से
आतंकवादी
फिर आतंकबादी से
आतंक |”
भाषा अभिधात्मक होते हुए भी अर्थ लक्षणा व अर्थ-व्यंजना का यथास्थान प्रयोग हुआ है जो कथ्य व अर्थप्रतीति की स्पष्टता प्रदान करती है | यथास्थान भाषालन्कारों का भी प्रयोग हुआ है| अनावश्यक ठूंसे हुए अलंकारों, व्यंजनाओं का प्रयोग नहीं है जो विषयगत दुरूहता व अस्पष्टता को प्रश्रय देते हैं| पुस्तक की छपाई, कम्पोजिंग एवं उत्तम श्रीवास्तव द्वारा शब्द-संयोजन, डा योगेश द्वारा मुख-पृष्ट चित्रांकन प्रभावी है | लेखक के सम्मान से सम्बंधित चित्र भी स्पष्ट व समीचीन हैं| पीछे के पृष्ठ पर सूर्यप्रसाद मिश्र ‘हरिजन’ द्वारा कृतिकार का विवेचनपूर्ण परिचय भी उल्लेखनीय है |
विषय वैविध्य से परिपूर्ण, कला व भाव पख की आवश्यकतानुसार प्रस्तुति व अगीत की विशिष्टताओं से परिपूर्ण यह कृति “अगीतमाला” एक सुन्दर व प्रभावशाली व सार्थक कृति है आशा है हिन्दी जगत में इसका स्वागत होगा |
–डा श्याम गुप्त
सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना, लखनऊ-२२६०१२