....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
महिला दिवस पर प्रस्तुति....एक गीत
जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे,
तुम यूंही गीत मेरे जो गाते रहो,
जब से तुम मेरे गीतों को गाने लगे,
मेरे मन के सुमन मुस्कुराने लगे |
दिल के दुनिया में इक रोशनी सी हुई,
नित नए भाव मन को सजाने लगे ||
मैं ये चाहूँ कि तुम कोइ कविता लिखो,
भाव बनके मैं उनमें समाता रहूँ |
तुम रचो गीत मैं उनको गाता रहूँ,
तेरा बासंती मन महमहाने लगे || ----मेरे मन के सुमन.....
जब नए रंग की कोई कविता लिखो,
मैं नए रंग उनमें सजाता रहूँ |
सोया सोया सा मन गुनुगुनाने लगे,
अपने मन का कुसुम खिलखिलाने लगे || --मेरे मन के....
तुम लिखो कोई कविता नए रंग की,
प्रीति की रीति के कुछ नए ढंग की |
तेरी रचना को पढ़कर रचयिता स्वयं ,
साथ वाणी के वीणा बजाने लगे || ---मेरे मन के....
तुम यूंही गीत मेरे जो गाते रहो,
बन के संगीत मन में समाते रहो|
एक सरगम सजे प्रीति-रसधार की ,
लो फिजाओं के स्वर चहचहाने लगे || ---मेरे मन की सुमन.....