....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...आवाहन
आवाहन
( कुन्डली –छन्द )
१.
पवन तनय सन्कट- हरण,मारुति सुत अभिराम,
अन्जनि पुत्र सदा रहें, स्थित हर घर –ग्राम ।
स्थित हर घर- ग्राम, दिया वर सीता मां ने ,
होंय असम्भव काम ,जो नर तुमको सम्माने ।
राम दूत ,बल धाम ,श्याम, जो मन से ध्यावे,
हों प्रसन्न हनुमान, क्रिपा रघुपति की पावे ॥
२.
निश्चयात्मक बुद्धि, मन प्रेम प्रीति सम्मान,
विनय करें तिनके सकल,कष्ट हरें हनुमान ।
कष्ट हरें हनुमान, पवन सुत अति बलशाली,
जिनके सम्मुख टिकै न कोई दुष्ट कुचाली ।
रामानुज के सखा ,दूत,प्रिय भक्त ,राम के ,
बिगडे काम बनायं,पवन-सुत,सभी श्याम के ॥
प्रार्थना
(मनहरण कवित्त-३१ वर्ण,१६-१५ ,अन्त गुरु )
१.
दुर्गम जगत के हों, कारज सुगम सभी ,
बस, हनुमत गुण-गान, नित करिये ।
सिन्धु पार करि,सिय-सुधि लाये लंक-जारि,
ऐसे बजरन्ग बली का ही, ध्यान धरिए ।
करें परमार्थ, सत कारज, निकाम भाव ,
ऐसे उपकारी पुरुषोत्तम को, भजिये ।
रोग-दोष,दुख-शोक,सब का ही दूर करें,
श्याम के, हे राम दूत! अवगुन हरिये ॥
२.
(जल हरण घनाक्षरी-,३२ वर्ण,१६-१६ ,अन्त-दो लघु)
विना हनुमत कृपा, मिलें नहीं राम जी,
राम भक्त हनुमान चरणों में ध्यान धर ।
रिद्धि–सिद्धि दाता,नव-निधि के प्रदाता प्रभु,
मातु जानकी से मिले ऐसे वरदानी वर ।
राम औ लखन से मिलाये सुग्रीव तुम ,
दौनों पक्ष के ही दिये सन्कट उबार कर।
सन्कटहरण हरें, सन्कट सकल जग,
श्याम अरदास करें,कर दोऊ जोरि कर ॥
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