....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मेरा द्वितीय काव्य संग्रह 'काव्यनिर्झरिणी' तुकांत
काव्य-रचनाओं का संग्रह है |---सुषमा प्रकाशन , आशियाना
द्वारा प्रकाशित , प्रकाशन वर्ष -२००५
—नराकास, (नगर राजभाषा क्रियान्वन समिति, लखनऊ ) राजभाषा विभाग, गृहमंत्रालय, उप्र से "राजभाषा सम्मान व पुरस्कार -२००५," प्राप्त---
काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ----रचना १२ व १३ ..
12. ज़िंदगी
जब थे हम छोटे बड़ी थी जिन्दगी
जिन्दगी सिमटी हुए जब हम बड़े |
सब थे खुश आये थे हम रोते हुए ,
खुश्नासीन हो चल पड़े सब रो पड़े |
मौत से है खेल सीखा ज़िंदगी का,
आंसुओं ने ही सिखाया गीत गाना |
जब पड़े गम और भी हम मुस्कुराए ,
सर्द आहों ने सिखाया गुन गुनाना |
थे अँधेरे किन्तु हम थे जगमगाए ,
दूरियां जब बढीं हम नज़दीक आये |
ज़ख्मे दिल से प्यार करना हमने सीखा,
पर न हम कुछ जिन्दगी से सीख पाए |
और अंधेरों ने हमें यह रोशनी दी
रोशनी में भी अँधेरे पल रहे हैं |
था बुझा तन और बुझा मन था हमारा,
पर खबर थी दिल में अरमां जल रहे हैं|
भाग्यशाली देख पाए स्वर्ग हैं,
मर मिटे जो देश के सम्मान पर |
पर न वो दीदार हैं हम कर सके ,
क्योंकि हम जीते रहे हैं उम्र भर ||
१३. समर्पित
जीवन—
कल कल मल मल बहती नदिया
अविरल गति से बहती है |
करते रहो निरंतर तप श्रम ,
बहते बहते कहती है |
जब हो यौवन और लड़कपन
चट्टानों से टकरा जाओ |
अनथक करो परिश्रम चिंतन,
पाषणों में राह बनाओ |
प्रौढ़ और ज्ञानी ध्यानी बन,
मंद मंद बहना सीखो |
मंथर मंथर बहते जग के,
सुख दुःख में रहना सीखो |
मंथर मंथर बहती नदिया ,
जब समतल में बहती है |
सब कुछ अपने अंतर में भर,
सुख दुःख सहती रहती है |
सागर तीरे जब आती है,
जीवन जग का भार लिए |
सब कुछ उसे सौंप देती है ,
परम समर्पण भाव किये |
श्रम तप ज्ञान सत्य से जग में,
निधियां जो अर्जित कर पाओ |
जग के हित में प्रभु चरणों में,
अर्पित सब करते जाओ |
जीवन सारा बहती नदिया,
सागर में मिल खोजाये |
जैसे कोई परम आत्मा,
स्वयं ब्रह्म ही होजाए ||
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