. ...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कहानी ययाति की --
ययाति चन्द्रवंशी थे जो अपने आदि पुरुष के रूप में चन्द्रमा को मानते थे।
पुराणों के अनुसार ब्रह्माजी से अत्रि,
अत्रि से चन्द्रमा,
चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानंदन पुरुरवा का जन्म हुआ। पुरुरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष
से ययाति उत्पन्न हुए।
वेद-पुराणों में उल्लेखित ययाति के कुल-खानदान से ही एशिया
की जातियों का जन्म हुआ। ययाति से
ही आगे चंद्रवंश में पुरुओं, यदुओं, तुर्वसुओं, आनवों और
द्रुहुओं का वंश चला।
ययाति प्रजापति ब्रह्मा की पीढ़ी में हुए
थे। ययाति की 2 पत्नियां देवयानी
और शर्मिष्ठा (दासी के रूप में थी
देवयानी की ) थीं। देवयानी गुरु
शुक्राचार्य की पुत्री थी, तो शर्मिष्ठा दैत्यराज
वृषपर्वा की पुत्री थीं। पहली पत्नी देवयानी के यदु
और तुर्वसु नामक 2 पुत्र हुए और
दूसरी शर्मिष्ठा से द्रुहु,
पुरु तथा अनु हुए। ययाति की कुछ बेटियां भी थीं जिनमें से एक का नाम माधवी था। माधवी की कथा बहुत ही
व्यथापूर्ण है।
इस प्रकार ययाति के प्रमुख 5 पुत्र हुए - 1.पुरु, 2.यदु, 3.तुर्वस, 4.अनु और 5.द्रुहु। इन्हें वेदों में पंचनद कहा गया है।
7,200
ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों का संपूर्ण धरती पर.. राज था। पांचों पुत्रों ने अपने- अपने नाम से राजवंशों की स्थापना
की। यदु से यादव, तुर्वसु से यवन,
द्रुहु से भोज, अनु से मलेच्छ और पुरु
से पौरव वंश की स्थापना हुई। .
यदु ने पुरु पक्ष का समर्थन किया और स्वयं राज्य
लेने से इंकार कर दिया। इस पर ययाति ने पुरु को राजा घोषित किया और वह प्रतिष्ठान (प्रतिष्ठानपुर (इलाहाबाद में गंगा पार का (झूँसी क्षेत्र) की मुख्य शाखा का शासक हुआ। उसके वंशज पौरव कहलाए। अन्य चारों भाइयों को जो प्रदेशजो प्रदेश दिए गए, उनका विवरण इस प्रकार है-
---- यदु को चर्मरावती अथवा चर्मण्वती (चंबल), बेत्रवती (बेतवा) और शुक्तिमती (केन) का तटवर्ती प्रदेश
मिला।
-----तुर्वसु को प्रतिष्ठान के दक्षिण-पूर्व का भू-भाग मिला.
---द्रुहु को उत्तर-पश्चिम का। गंगा-यमुना दो-आब का उत्तरी भाग तथा
---- अनु को गंगा-यमुना दो-आब के पूर्व का कुछ प्रदेश
जिसकी सीमा अयोध्या राज्य से मिलती थी |
1. पुरु का वंश : पुरु वंश में कई प्रतापी राजा हुए उनमें
से एक थे भरत और सुदास। इसी वंश में शांतनु हुए जिनके पुत्र थे भीष्म। पुरु के वंश
में ही अर्जुन पुत्र अभिमन्यु हुए। इसी वंश में आगे चलकर परीक्षित... जिनके पुत्र
थे जन्मेजय।
------सरस्वती दृषद्वती एवं आपया नदी के किनारे भरत कबीले
के लोग बसते थे। सबसे महत्वपूर्ण कबीला भरत... का था। इसके शासक वर्ग का
नाम त्रित्सु था। संभवतः सृजन और क्रीवी कबीले भी उनसे संबद्ध थे।
2. यदु का वंश : यदु के कुल में भगवान कृष्ण
हुए।
3. तुर्वसु का वंश : तुर्वसु के वंश में भोज (यवन)
हुए। ययाति के पुत्र तुर्वसु का वह्नि, वह्नि का भर्ग, भर्ग का भानुमान, भानुमान का त्रिभानु, त्रिभानु का उदारबुद्धि करंधम और करंधम का पुत्र
हुआ मरूत। -----मरूत संतानहीन था इसलिए उसने पुरु
वंशी दुष्यंत को अपना पुत्र बनाकर रखा था, परंतु दुष्यंत राज्य की कामना से अपने ही वंश में लौट गए।
----- महाभारत के अनुसार ययाति
पुत्र तुर्वसु के वंशज यवन थे। पहले ये क्षत्रिय थे,
पर ब्राह्मणों से द्वेष रखने के कारण इनकी गिनती शूद्रों
में होने लगी। महाभारत युद्ध
में ये कौरवों के साथ थे। इससे पूर्व.. दिग्विजय के समय
नकुल और सहदेव ने इन्हें पराजित किया था।
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4. अनु का वंश : अनु को ऋग्वेद में कहीं-कहीं आनव भी कहा गया है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार
यह कबीला परुष्णि नदी (रावी नदी) क्षेत्र में बसा हुआ था। आगे चलकर सौवीर, कैकेय और मद्र कबीले इन्हीं आनवों से उत्पन्न हुए थे।
5. द्रुह्मु का वंश : द्रुह्मु के वंश में राजा गांधार हुए। ये आर्यावर्त के मध्य में
रहते थे। बाद में द्रुहुओं? को इक्ष्वाकु कुल के राजा मंधातरी ने मध्य एशिया की ओर खदेड़ दिया।
पुराणों में द्रुह्यु राजा प्रचेतस के
बाद द्रुह्युओं का कोई उल्लेख नहीं मिलता। द्रुह्यु
से बभ्रु का जन्म हुआ। बभ्रु का
सेतु, सेतु का आरब्ध, आरब्ध का गांधार, गांधार का धर्म, धर्म का धृत, धृत का दुर्मना और दुर्मना का पुत्र प्रचेता हुआ। प्रचेतस
के बारे में लिखा है कि उनके 100 बेटे
अफगानिस्तान से उत्तर जाकर बस गए और 'म्लेच्छ' कहलाए। म्लेच्छों
(अरबों) के राजा
हुए।
यदु और
तुर्वस को दास कहा जाता था।( देवयानी की दासी के रूप में रही शर्मिष्ठा
के पुत्र होने से ) तुर्वस और द्रुह्यु से
ही यवन और मलेच्छों का वंश चला।
-----इस तरह यह इतिहास
सिद्ध है कि ब्रह्मा के एक पुत्र अत्रि... के वंशजों ने ही यहुदी, यवनी और पारसी धर्म की स्थापना
की थी। इन्हीं में से ईसाई और इस्लाम धर्म का जन्म हुआ। यहुदियों के जो 12 कबीले
थे उनका संबंध द्रुह्मु से ही था।
ययाति---भोग व वैराग्य कथा
मृत्यु समय आने पर पुरु ने कहा अभी तो मेरा
भोगों से मन ही नहीं भरा | मृत्यु ने कहा यदि कोई पुत्र अपना यौवन तुम्हें दे तो
और समय मिल सकता है |
पुरु ने कहा कि पिताश्री, मैं अपनी उम्र आपको दे
देता हूं। जब आपका मन 100 साल भोगकर नहीं भरा, तब मेरा कहां भर पाएगा?
तुम मुझे आशीर्वाद दो। ययाति बहुत खुश हुआ और कहने लगा कि
तू ही मेरा असली बेटा है। ये सब तो स्वार्थी हैं। तुझे बहुत पुण्य लगेगा। तूने
अपने पिता को बचा लिया इसलिए तुझे स्वर्ग मिलेगा।
100 साल के बाद फिर मौत आई और बाप फिर गिड़गिडाने
लगा और उसने कहा कि अभी तो कुछ भी पूरा नहीं हुआ है। ये 100
साल ऐसे बीत गए कि पता ही
नहीं चला। पल में बीत गए। तब तक उसके 100 बेटे और पैदा हो चुके थे। नई-नई शादियां की थीं, मौत ने कहा, तो फिर किसी बेटे को भेज
दो।
और ऐसा चलता रहा। ऐसा कहते हैं कि ऐसा 10
बार हुआ। ययाति हजार साल का हो गया बूढ़ा, तब भी मौत आई और मौत ने कहा, अब क्या इरादे है? ययाति हंसने लगा। उसने कहा, अब मैं चलने को तैयार हूं। यह नहीं कि मेरी इच्छाएं
पूरी हो गईं, इच्छाएं वैसी की वैसी अधूरी हैं। मगर एक बात
साफ हो गई कि कोई इच्छा कभी पूरी हो नहीं सकती। मुझे ले चलो। मैं तैयार
हूँ ... ले चलो। मैं ऊब
गया।
यह भिक्षापात्र भरेगा नहीं। इसमें तलहटी
नहीं है। इसमें कुछ भी डालो, यह खाली का खाली रह जाता
है। राजा ययाति एक सहस्त्र वर्ष तक भोग
लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली। विषय वासना से तृप्ति न
मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्हों ने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर
वैराग्य धारण कर लिया ... |