....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
******गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार*****
------प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुई | गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, डा श्याम गुप्त, श्री बसंत राम दीक्षित, कौशल किशोर, श्रीमती विजय लक्ष्मी महक, मंजू सिंह, अनिल किशोर शुक्ल निडर, अशोक विश्वकर्मा, गुंजन, श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं श्री विनोद कुमार सिन्हा ने काव्यपाठ में भाग लिया |
---काव्य-गोष्ठी के प्रारम्भ से पहले अनौपचारिक वार्ता में श्री विनोद कुमार सिन्हा के उठाये विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है‘ पर विवेचना की गयी, सभी उपस्थित साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये |
------ गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए डा श्यामगुप्त ने सरस्वती वन्दना में कहा ..
" माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो. नाम मुझे ही देदेती हो |
आप लिखातीं सारे जग से,लिखा श्याम ने कहा देती हो |..."
श्रीमती विजय लक्ष्मी महक एवं अनिल किशोर शुक्ल द्वारा भी माँ की वन्दना की गयी |
------श्री अशोक विश्वकर्मा ‘गुंजन’ के अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा-
"आयेंगे याद हम तुम्हें एक बार फिरसे,
जब तेरे अपने फैसले तुझे सताने लगेंगे |"
-------अनिल किशोर शुक्ल निडर ने भारत के सपूतों को ललकारा—
‘"भारत माँ के अमर सपूतो,
आगे बढाकर आना होगा |"
------- कवयित्री श्रीमती विजय लक्ष्मी ने ज़िंदगी से शिकवा करते हुए कहा...
"काश ए ज़िंदगी ! हम भी तेरी निगाहों में चढ़े होते |
नामचीनों की कतार में हम भी खड़े होते |"
-------श्रीमती मंजू सिंह ने भोले शंकर की अभ्यर्थना करते हुए इच्छा प्रकट की----
"मेरे भोले भाले शंकर को , किसी की नज़र न लगे |’
-------- श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने एक सुन्दर जीवन गीत प्रस्तुत किया ---
“तुम ही मेरे अंग संग हो,तुम ही तो रस रीति रंग हो |
उपमा रूपक उत्प्रेक्षाएं भी तुझको कब पा सकती हैं |
तुम श्लेष माधुर्य ओज हो, भाव व्यंजनायें तुम ही हो |"
एवं सावन के ऋतु के अनुरंजन में ब्रजभाषा में एक मल्हार भी गीत प्रस्तुत किया...
"आई सावन की बहार,
बदरिया घिर घिर आवै | "
------- श्री कौशल किशोर ने शिवकी अर्चना करते हुए कहा-
"दुनिया में देव हज़ारों हैं महादेव की महिमा क्या कहने |
सबको प्यारे, तनुधारी भूत पिशाच भी हैं इनके |"
-------श्री विनोद कुमार सिन्हा ने सावन में प्रिय से वार्तालाप करते हुए सुन्दर गीत प्रस्तुत किया –
‘सावन को प्रिय आजाने दो ,
मधुमय नभ रस बरसेंगे |"
------- कविवर बसंत राम दीक्षित ने श्रृगार गीत प्रस्तुत करते हुए कहा—
"रूपसी बोली नयन से, देखलो भरपूर मुझको ,
और अपनी प्यास को चहक कर बुझालो |"
------ डा श्याम गुप्त ने एक कवित्त द्वारा इसे घनाक्षरी क्यों कहते हैं इस छंद की परिभाषा प्रस्तुत की....
" घनन घनन घन घन के समान करें,
श्रोता को भावें करें घन जैसी गर्जना |" .... तथा
---कुछ देव घनाक्षरी छंद प्रस्तुत किये ---
“मन बाढ़े प्रीती ऐसी तन में अगन श्याम,
साजन बजावै द्वार-खिड़की खनन खनन |’
------विवेचित विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है’ को संदर्भित करते हुए डा श्याम गुप्त ने गीत प्रस्तुत किया –
“बीज कविता का सदा मन में बसा होता है,
कोइ सींचे तो ये अंकुर हरा होता है |’
---------समापन व्याख्या व विवेचना करते हुए साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने आतंकवाद पर चोट करते हुए एक प्रस्तुत किया –
सीमा पार से आते हैं आतंकी सदा,
इसलिए मित्र की मिताई में न रहिये |
तथा यादों के घन से संदर्भित करते हुए सुन्दर गीत सुनाया –
मचल रहे गरज गरज यादों के घन.....
.यादों के घन |
---- इस अवसर पर श्रीमती सुषमा गुप्ता व विजय लक्ष्मी जी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सन्दर्भ में प्रभावी व उल्लेखनीय सेवा का प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया ...
------अंत में जलपान के पश्चात डा श्यामगुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता ने सभी उपस्थित विद्वानों का आभार व्यक्त किया |
चित्र में ---१.श्री अनिल किशोर शुक्ल निडर का काव्यपाठ...२.सुषमा गुप्ता
द्वारा प्रस्तुत एक गीत ...३.वयोवृद्ध कवि कौशल किशोर की भोले
वन्दना...४.विनोद कुमार सिन्हा काव्यापाठ करते हुए ...५.बसंत राम दीक्षित
का गीत....६.डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ....७.श्रीमती विजय लक्ष्मी डा
रंगनाथ मिश्र को अपनी पुस्तकें भेंट करती हुईं ....८.सुषमाजी व विजय
लक्ष्मी जी का सम्मान ९. डा सत्य का काव्य पाठ ....
------प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीय गोष्ठी दि.४-८-१६ वृहस्पतिवार को डा श्याम गुप्त के आवास के-३४८, आशियाना, लखनऊ पर संपन्न हुई | गोष्ठी में साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य, डा श्याम गुप्त, श्री बसंत राम दीक्षित, कौशल किशोर, श्रीमती विजय लक्ष्मी महक, मंजू सिंह, अनिल किशोर शुक्ल निडर, अशोक विश्वकर्मा, गुंजन, श्रीमती सुषमा गुप्ता एवं श्री विनोद कुमार सिन्हा ने काव्यपाठ में भाग लिया |
---काव्य-गोष्ठी के प्रारम्भ से पहले अनौपचारिक वार्ता में श्री विनोद कुमार सिन्हा के उठाये विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है‘ पर विवेचना की गयी, सभी उपस्थित साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये |
------ गोष्ठी का प्रारम्भ करते हुए डा श्यामगुप्त ने सरस्वती वन्दना में कहा ..
" माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो. नाम मुझे ही देदेती हो |
आप लिखातीं सारे जग से,लिखा श्याम ने कहा देती हो |..."
श्रीमती विजय लक्ष्मी महक एवं अनिल किशोर शुक्ल द्वारा भी माँ की वन्दना की गयी |
------श्री अशोक विश्वकर्मा ‘गुंजन’ के अपनी रचना प्रस्तुत करते हुए कहा-
"आयेंगे याद हम तुम्हें एक बार फिरसे,
जब तेरे अपने फैसले तुझे सताने लगेंगे |"
-------अनिल किशोर शुक्ल निडर ने भारत के सपूतों को ललकारा—
‘"भारत माँ के अमर सपूतो,
आगे बढाकर आना होगा |"
------- कवयित्री श्रीमती विजय लक्ष्मी ने ज़िंदगी से शिकवा करते हुए कहा...
"काश ए ज़िंदगी ! हम भी तेरी निगाहों में चढ़े होते |
नामचीनों की कतार में हम भी खड़े होते |"
-------श्रीमती मंजू सिंह ने भोले शंकर की अभ्यर्थना करते हुए इच्छा प्रकट की----
"मेरे भोले भाले शंकर को , किसी की नज़र न लगे |’
-------- श्रीमती सुषमा गुप्ता जी ने एक सुन्दर जीवन गीत प्रस्तुत किया ---
“तुम ही मेरे अंग संग हो,तुम ही तो रस रीति रंग हो |
उपमा रूपक उत्प्रेक्षाएं भी तुझको कब पा सकती हैं |
तुम श्लेष माधुर्य ओज हो, भाव व्यंजनायें तुम ही हो |"
एवं सावन के ऋतु के अनुरंजन में ब्रजभाषा में एक मल्हार भी गीत प्रस्तुत किया...
"आई सावन की बहार,
बदरिया घिर घिर आवै | "
------- श्री कौशल किशोर ने शिवकी अर्चना करते हुए कहा-
"दुनिया में देव हज़ारों हैं महादेव की महिमा क्या कहने |
सबको प्यारे, तनुधारी भूत पिशाच भी हैं इनके |"
-------श्री विनोद कुमार सिन्हा ने सावन में प्रिय से वार्तालाप करते हुए सुन्दर गीत प्रस्तुत किया –
‘सावन को प्रिय आजाने दो ,
मधुमय नभ रस बरसेंगे |"
------- कविवर बसंत राम दीक्षित ने श्रृगार गीत प्रस्तुत करते हुए कहा—
"रूपसी बोली नयन से, देखलो भरपूर मुझको ,
और अपनी प्यास को चहक कर बुझालो |"
------ डा श्याम गुप्त ने एक कवित्त द्वारा इसे घनाक्षरी क्यों कहते हैं इस छंद की परिभाषा प्रस्तुत की....
" घनन घनन घन घन के समान करें,
श्रोता को भावें करें घन जैसी गर्जना |" .... तथा
---कुछ देव घनाक्षरी छंद प्रस्तुत किये ---
“मन बाढ़े प्रीती ऐसी तन में अगन श्याम,
साजन बजावै द्वार-खिड़की खनन खनन |’
------विवेचित विषय ‘कविता बनती है या बनाई जाती है’ को संदर्भित करते हुए डा श्याम गुप्त ने गीत प्रस्तुत किया –
“बीज कविता का सदा मन में बसा होता है,
कोइ सींचे तो ये अंकुर हरा होता है |’
---------समापन व्याख्या व विवेचना करते हुए साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने आतंकवाद पर चोट करते हुए एक प्रस्तुत किया –
सीमा पार से आते हैं आतंकी सदा,
इसलिए मित्र की मिताई में न रहिये |
तथा यादों के घन से संदर्भित करते हुए सुन्दर गीत सुनाया –
मचल रहे गरज गरज यादों के घन.....
.यादों के घन |
---- इस अवसर पर श्रीमती सुषमा गुप्ता व विजय लक्ष्मी जी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सन्दर्भ में प्रभावी व उल्लेखनीय सेवा का प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया ...
------अंत में जलपान के पश्चात डा श्यामगुप्त व श्रीमती सुषमा गुप्ता ने सभी उपस्थित विद्वानों का आभार व्यक्त किया |
अनिल किशोर शुक्ल निडर का काव्यपाठ |
सुषमा गुप्ता द्वारा प्रस्तुत एक गीत |
डा श्याम गुप्त का काव्य पाठ |
श्रीमती विजय लक्ष्मी डा रंगनाथ मिश्र को अपनी पुस्तकें भेंट करती हुईंसाथ में कवि अशोक विश्वकर्मा गुंजन एवं सुषमा गुप्ता व् मंजू सिंह |
.सुषमाजी व विजय लक्ष्मी जी का सम्मान |
डा सत्य का काव्य पाठ ... |
कवि कौशल किशोर की भोले वन्दना |
विनोद कुमार सिन्हा काव्यापाठ करते हुए |