....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
चलो रे मन ऐसे जग से दूर |
छीन झपट, आपा धापी और छल बल में जो चूर |
महल दुमहले राज भवन सब हलचल से परिपूर |
मन की शान्ति न मिले यहाँ पर जग दुखिया मज़बूर |
ऊंचे -ऊंचे मंदिर-मठ हैं, मिले न प्रभु का नूर |
भक्त-पुजारी, पण्डे-मूरत, ईश्वर से अति-दूर |
मन से प्रभु को 'श्याम, भजे तो आनंद सुख भरपूर ||