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-इस आलेख में लेखक का कथन कि---- १-गाँव का भारत /शहर का भारत; बन्चितों का भारत/शाइनिंग भारत आपस में लड़ रहे हैं , इस टकराव से इनकार नहीं किया जासकता ।
---क्यों भाई आखिर आप इसे टकराव मानते ही क्यों हैं , नासमझी का खेल है, पुराने व नए में समन्वय क्यों नहीं कर /कह सकते ? टकराव तो वहां होता है जहां अहं होता है और नए का पुराने से अहं कैसा व क्यों ? सीख व समझ क्यों नहीं?
२-जिन हाथों में खेलहै वे पुराने भारत का प्रतिनिधित्व करते है, जो भ्रष्ट ,आलसी,अक्षम, अराजक.....पूरा मन्त्रि मन्डल’ सब चलता है’ का रवैयावालों से भरा है...
-----क्यों भाई, क्या मन्त्री, मुख्य मन्त्री,प्रधान मन्त्री -कल्माडी, चिदम्बरम( आधुनिक शिक्षा प्राप्त-कान्वेन्ट व विदेश में), सभी मन्त्री-मंडल( जिसमें युवाओं की भी भागी दारी है) सभी कामचोर ,भ्रष्ट,अक्षम आदि हैं-तो फ़िर क्यों आपने उन्हें देश चलाने के लिये चुना?---क्या आधुनिक युवा जो चोरी, लूट,बे ईमानी , डकैती, वलात्कार, हत्या, गिर्ल फ़्रेन्ड को लूट के माल से घुमाते हुए व महाभ्रष्टाचार में पकडे जारहे है वे नया भारत हैं, सक्षम हैं।------क्या चंद अन्ग्रेज़ी दां, ऊल-जुलूल घ्रणित खेल खेलते हुए, सट्टेबाज़ी से लिप्त, पैसे के लिये कुछ भी विग्यापन करते हुए, सारी विदेशी बस्तुएओं का ही भरपूर उपभोग करते हुए- युवा , नया भारत है ??
३-दुनिया भारत को दोस्त बनाने व निवेश करने को आतुर है.....
------क्या आप /दुनिया नहीं जानती एसा क्यों है--अपना बाज़ार बनाने के लिये अपनी सन्श्क्रिति आदि के गुप्त अजेन्डे को उतारने के लिये --कोई आपको मुफ़्त में दोस्त व निवेश भागीदार नहीं बनाता । आप स्वयं क्यों नही अपना बाज़ार/अर्थशास्त्र बनाते, अपनी संस्क्रित के अनुसार , बाहर का निवेश क्यों चाहिये। कमीशन के लिये?
----नसमझी के इन बिन्दुओं,विचारों,आलेखों से युवा , बच्चों व सामान्य जन में गलत संदेश जाता है कि पुराने व पुराने पीढी के लोगों को दूर करना चाहिये , वे नासमझ व असक्षम हैं। आखिर कब तक हम विदेशों के धन, विदेशी संस्क्रिति( नहीं कल्चर) पर आत्म मुग्धता व स्व-संस्क्रिति की अग्यानता के कारण, आत्म-कुन्ठा, स्व संस्क्रिति-दोषान्वेषण की घातक प्रव्रत्ति, पराभूत भाव दर्शाने से बाज़ आयेंगे।