यद्यपि लेखिका सुनीता नारायण का पहले ही वाक्यों में कहना है कि यह सूअर खाने से नहीं फ़ैलता,पर उनके लेख से पता चलता है कि यह वाइरस,मेक्सिको की पोर्क खाद्य बनाने वाली फ़ेक्टरी से फ़ैला जो अपना कचरा जल,नदी,आदि में फ़ैंक कर प्रदूषण फ़ैला ते हैं। लोकल जनता के प्रदर्शनों का भी आर्थिक लाबी के कार कोई असर नहीं हुआ। इन कम्पनियों ने विश्व स्वास्थ्य सन्गठन पर दवाब डाला कि पोर्क खाना बन्द न किया जाय।यही हाल,बर्ड-फ़्लूव अन्य मांस -भोजन के साथ है. पता चलता है कि अमेरिका में सारा कचरा नदियों ,समुद्र में बहाया जाता है जो प्रदूषण का कारण बनरहा है।
अब आप ही समझिये -जन्नत की हकीकत--,व क्यों मांस खाना ही निसिद्ध है,और भ्रष्टाचार, प्रदूषण,राज्नीति की गन्दगी,साफ़-सफ़ाई, नदियों का प्रदूषण आदि--भारत व अमरीका में कहां, कितना अन्तर है। अभी जुम्मा-जुम्मा ४०० साल की उम्र है,ये हाल!, ४०००० हज़ार साल उम्र होगी तो क्या होगा???