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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

वेदों की पठशाला--एक आइ.ए.एस. का अभिनव प्रयोग

एक रिटायर्ड आइ.ए.एस. हैं,विधु त्रिवेदी- जिन्होंने अ्पने जीवन के निचोड से जाना कि बच्चों को वेद की शिक्षा आवश्यक है ओर जुट गये पढाने में,आधुनिक विग्यान व व्यवहार से अपने इतिहास, सन्स्कार,शास्त्रों की मर्यादा व ग्यान का क्यों व कैसे सामन्जस्य करना चाहिये ,सीखें।वे औरों को भी समेटने में लगे हैं। पढिये यह आलेख जो उन लोगों के मुंह पर तमाचा है जो वेदिक ग्यान को खन्डहर, कचरा आदि बताने में लगे हैं और अन्य देशों के पिछलग्गू होकर सिर्फ़ उनके गीत
गाने एवम उनकी पीठपर अपनी रोटी सेंकने व भोग-भोगने में लगे हें।
स्वयम ही पढें व समझें,सोचें

स्वाइन फ़्लू--तथ्य व भूमिका?, भारत व अमेरिका व विश्व के आचरण

यद्यपि लेखिका सुनीता नारायण का पहले ही वाक्यों में कहना है कि यह सूअर खाने से नहीं फ़ैलता,पर उनके लेख से पता चलता है कि यह वाइरस,मेक्सिको की पोर्क खाद्य बनाने वाली फ़ेक्टरी से फ़ैला जो अपना कचरा जल,नदी,आदि में फ़ैंक कर प्रदूषण फ़ैला ते हैं। लोकल जनता के प्रदर्शनों का भी आर्थिक लाबी के कार कोई असर नहीं हुआ। इन कम्पनियों ने विश्व स्वास्थ्य सन्गठन पर दवाब डाला कि पोर्क खाना बन्द न किया जाय।यही हाल,बर्ड-फ़्लूव अन्य मांस -भोजन के साथ है. पता चलता है कि अमेरिका में सारा कचरा नदियों ,समुद्र में बहाया जाता है जो प्रदूषण का कारण बनरहा है।
अब आप ही समझिये -जन्नत की हकीकत--,व क्यों मांस खाना ही निसिद्ध है,और भ्रष्टाचार, प्रदूषण,राज्नीति की गन्दगी,साफ़-सफ़ाई, नदियों का प्रदूषण आदि--भारत व अमरीका में कहां, कितना अन्तर है। अभी जुम्मा-जुम्मा ४०० साल की उम्र है,ये हाल!, ४०००० हज़ार साल उम्र होगी तो क्या होगा???