ब्लॉग आर्काइव

डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

मेरी फ़ोटो
Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 22 सितंबर 2012

श्याम स्मृति.....मानव मन, धर्म व समाज ...डा श्याम गुप्त...

                             ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

श्याम  स्मृति.....मानव मन, धर्म व समाज ...

                    जिस प्रकार मानव मन विभिन्न मानसिक ग्रंथियों का पुंज है, समाज भी व्यक्तियों का संगठन है| मन बड़ा ही अस्थिर है, चलायमान है, वायवीय तत्व है | इस पर नियमन आवश्यक है |
                   कानून मनुष्य ने बनाए हैं , उनमें छिद्र अवश्यम्भावी  हैं , धर्म शाश्वत है, वही मन को स्थिरता दे सकता है |  धर्महीन मानव, धर्महीन समाज, धर्महीन देश ...स्थिरता तो क्या एक क्षण खडा भी नहीं रह सकता .... अपने पैरों पर |  आज विश्व की अस्थिरता का कारण है धर्महीन समाज |
                     धर्म का अर्थ सम्प्रदाय नहीं है |आज के चर्चित "रिलीज़न" वास्तव में सम्प्रदाय ही हैं | धर्म और रिलीज़न दो भिन्न संस्थाएं हैं|  आज चर्चित भिन्न-भिन्न  मत-मतान्तर , धार्मिक नियम ..धर्म नहीं हैं | धर्म तो एक ही है और वह शाश्वत है | धर्म का अर्थ है ...कर्तव्य का पालन,,,,,| और धर्म का केवल एक ही सिद्धांत है..."कभी दूसरों को दुःख मत दो |".......

" सर्वें सुखिना सन्तु 
सर्वे सन्तु निरामया |
सर्वे पश्यन्तु भद्राणि,
मा कश्चिद दुखभाग्भवेत ||"