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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

कुछ मुक्त-छंद--

गुण -धर्म-धन--

अभ्युदय में क्षमा, धैर्य है धन विपत्ति में,
वाक-चतुरता सभा मध्य,अभिरुचि धन यश में;
शूरवीरता-युद्ध,गहन रुचि शास्त्र-अध्ययन-
उत्तम जन में स्वतः भाव, होते हैं ये गुण ।।

कुन्डली (छह त्याग)-
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चाहत है ऐश्वर्य की, तो इन छह को त्याग ,
निद्रा, तन्द्रा ,क्रोध, भय, आलस रूपी राग ।
आलस रूपी राग, कार्य में देरी करना ,
सबको दीजे त्याग,लोक हित रत यदि रहना।
इन दोषों को त्याग,’श्याम,श्रुति सम्मत मत है,
रिद्दि, सिद्दि, श्री की जीवन में जो चाहत है ॥

कुन्डली (नीति-व्यवहार)--

चलें नीति व्यवहार पर, छह का करें न त्याग,
सत्य, दान, कर्मण्यता, धैर्य-भाव अनुराग ।
धैर्य-भाव अनुराग, गुणों में दोष खोजना ,
क्षमा भाव अति सुखद,फ़लित हों सभी योजना।
ये छह गुण हों साथ, श्याम, नित फ़ूलें,फ़लें,
चाहें सुख ओ शान्ति, नीति-व्यवहार पर चलें ॥

सदा सौभाग्यवती रहो--का अर्थार्थ -------

आजकल नारी -विमर्श पर तमाम सीरिअल्स देख कर ,उसमें महिलाओं को बड़ी-बूड़ी औरतों द्वारा ' सुहाग अचल रहे ',अखंड सौभाग्य वती भवः ' सदा सुहागिन रहो ' के आर्शीवाद देख कर मेरे मन में एक विचित्र सा विचार आया की आख़िर इसका अर्थ क्या है ? ध्यान से विवेचना करने पर तो मुझे यह ,स्त्रियों के विरुद्ध ही लगा। इस का अर्थ निकलता है की-पति से पहले तुम्हारी मृत्यु हो । तभी तो सदा सुहागिन रहोगी । हालांकि भारतीय नारी सदा पति से पहले ही मृत्यु की कामना करतीं आईं हैं ,पर भला क्यों सदा नारी ही पहले म्रत्यु को वरणकरे ,ये कहाँ का न्याय है । पुरूष को भी तो आर्शीवाद दिया जा सकता है -'सदा सपत्नी जियो' ।
परन्तु इस पुरूष आर्शीवाद का यह भी अर्थ लगाया जासकता है कि- पुरूष एक पत्नी के मरते ही दूसरी ले आए ! अतः इसे संशोधित किया जाय 'सदा उसी पत्नी के साथ जियो 'एक पत्नी-व्रत होना भी पुरूष के लिए एक सत्कर्म कहा है जिसे बहुत से लोग जल्दी-जल्दी पत्नियां बदल कर सदा एक के ही साथ रहना चरितार्थ कर सकते हैं।
पुनः सदा सुहागिन पर आयें तो और आगे विचार करनेपर मुझे एक अन्य गहराई ज्ञात हुई ; स्त्री हो या पुरूष ,अकेले रहजाने के बाद बड़ी दुर्गति होती है , पहले म्रत्यु को प्राप्त होने वाला तो सुख से जाता है,खुशी-खुशी,पर बाद में जाने वाला -कोई अपना ख़ास रोने वाला भी नहीं,जीवनको चैन-सुख से बीतने की गारंटी भी नहीं । यद्यपि आजकल एसा नहीं है परन्तु पहले क्योंकि पुरूष ही धन कमाने का स्रोत होते थे अतः उनकी मृत्यु के बाद स्त्रियों को कठिन दौर से गुजरना पङता था।
एक अन्य विचार भी है कि स्त्री की मृत्यु पश्चात पुरूष तो पुनः विवाह को राजी होजाते हैं,परन्तु स्त्रियाँ अधिक भावुक होने के कारण तैयार नहीं होतीं ।
अतः अर्थार्थ के बाद मुझे लगा कि -वस्तुत आर्शीवाद उचित ही है । आपका क्या ख्याल है।