अभ्युदय में   क्षमा,   धैर्य है  धन   विपत्ति में,
वाक-चतुरता सभा मध्य,अभिरुचि धन यश में;
शूरवीरता-युद्ध,गहन रुचि शास्त्र-अध्ययन-
उत्तम जन में स्वतः भाव, होते हैं   ये गुण  ।।
कुन्डली (छह त्याग)-
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चाहत है  ऐश्वर्य की,  तो इन छह को त्याग ,
निद्रा, तन्द्रा ,क्रोध, भय,    आलस रूपी राग ।
आलस    रूपी राग,       कार्य  में देरी करना ,
सबको दीजे त्याग,लोक हित रत यदि रहना।
इन दोषों को त्याग,’श्याम,श्रुति सम्मत मत है,
रिद्दि, सिद्दि, श्री  की जीवन में  जो चाहत है ॥
कुन्डली (नीति-व्यवहार)--
चलें नीति व्यवहार पर, छह का करें न त्याग,
सत्य, दान, कर्मण्यता,   धैर्य-भाव अनुराग ।
धैर्य-भाव अनुराग,   गुणों में   दोष खोजना ,
क्षमा भाव अति सुखद,फ़लित हों सभी योजना।
ये छह गुण हों साथ,  श्याम, नित फ़ूलें,फ़लें,
चाहें सुख ओ शान्ति, नीति-व्यवहार पर चलें ॥
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
