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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

श्याम स्मृति- १७४.....पत्नी-सह-धर्मिणी..... डा श्याम गुप्त

                                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

श्याम स्मृति- १७४.....पत्नी-सह-धर्मिणी.....

               पत्नी को सहकर्मिणी नहीं कहा गया, क्यों? स्त्री, सखी, प्रेमिका, सहकर्मिणी हो सकती है, स्त्री माया रूप है, शक्ति-रूप, ऊर्जा-रूप वह अक्रिय-क्रियाशील ( सामान्य-पेसिव ) पात्र, रोल अदा करे तभी उन्नति होती है, जैसे वैदिक-पौराणिक काल में हुई |

------पत्नी सह-धर्मिणी है, केवल सहकर्मिणी नहीं | हाँ, पुरुष के कार्य में यथासमय, यथासंभव, यथाशक्ति सहकर्म-धर्म निभा सकती है | सह्कर्मिणी होने पर पुरुष भटकता है और सभ्यता अवनति की ओर | अतः पत्नी को सहकर्म नहीं सहजीवन व्यतीत करना है – सहधर्म |

------स्त्री-पुरुष के साथ-साथ काम करने से उच्च विचार प्रश्रय नहीं पाते, व्यक्ति स्वतंत्र नहीं सोच पाता, विचारों को केंद्रित नहीं कर पाता, हाँ भौतिक कर्मों व उनसे सम्बंधित विचारों की बात पृथक है| |

------ तभी तो पति-पत्नी सदा पृथक-पृथक शयन किया करते थे | राजा-रानियों के पृथक-पृथक महल व कक्ष हुआ करते थे | सिर्फ मिलने की इच्छा होने पर ही वे एक दूसरे के महल या कमरे में जाया करते थे | माया की नज़दीकी व्यक्ति को भरमाती है, उच्च विचारों से दूर करती है |

----- यूं तो कहा जाता है कि प्रत्येक सफल व्यक्ति के पीछे नारी होती है, पर ये क्यों नहीं कहा गया कि सफल नारी के पीछे पुरुष होता है |

------नारी की तपस्या, त्याग, प्रेम, धैर्य, धरित्री जैसे महान गुणों व व्यक्तित्व की महानता के कारण ही तो पुरुष महान बनते हैं, सदा बने हैं, जो नारी का भी समादर कर पाते हैं और दोनों के समन्वय से समाज व सभ्यता नित नए सोपान चढ़ती है|