....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो, प्रीति के दीप जलाओ...
. पुस्तक समीक्षा ......कृति -'अगीत साहित्य दर्पण' ( अगीत काव्य एवं अगीत छंद विधान )...... रचनाकार-- डा श्याम गुप्त...... प्रकाशक--अखिल भारतीय परिषद, लखनऊ एवं सुषमा प्रकाशन, लखनऊ...
समीक्षक -रवीन्द्र कुमार राजेश ,
अगीत साहित्य दर्पण – एक उत्कृष्ट शोध कृति – रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’
मृदुल मधर
मुस्कान, मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण व्यवहार, अनवरत स्वाध्याय एवं लेखन को
समर्पित हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं के सिद्ध-समर्थ रचनाकार डा श्याम गुप्त
की अगीत-काव्य व अगीत संरचना के छंद- विधान को समर्पित कृति का अवगाहन कर अत्यधिक
आत्मसंतोष की अनुभूति हुई |किसी विधा विशेष पर ऐसी अधिकृत एवं अनुकरणीय कृतियाँ
बहुत कम लिखी जा रही हैं |कृति में अगीत के सृजन के विषय में ही नहीं अपितु देश
में अगीत्कारों के संक्षिप्त परिचय एवं उनके अगीतों के उद्धरण देकर इस कृति की उपादेयता
में और भी अभिवृद्धि कर दी है | अगीत के नवोदित रचनाकारों के लिए ‘अगीत साहित्य
दर्पण’ कृति एक मार्गदर्शिका सिद्ध होगी एसा मेरा विशवास है | समीक्ष्य कृति ‘अगीत
साहित्य दर्पण’ में छः अध्याय हैं जो इस प्रकार हैं :
प्रथम
अध्याय ‘अगीत विधा की एतिहासिक पृष्ठभूमि एवं परिदृश्य, द्वितीय उसकी उपादेयता एवं
उपयोगिता, तृतीय-अगीत के वर्त्तमान सदर्भों तथा भविष्य की संभावनाएं, चतुर्थ- अगीत
का छंद-विधान, पंचम अगीत का भाव- पक्ष एवं षष्ठ अगीत का कला-पक्ष |
डा श्याम गुप्त
ने अपने एवं अपनी पत्नी श्रीमती सुषमा गुप्ता के कुछ गीत बानगी स्वरूप प्रस्तुत किये
हैं जो सचमुच बड़े भावपूर्ण बन पड़े हैं | डा श्याम गुप्त का यह अगीत कैसा मनमोहक
है-----
“यह कंचन सा रूप
तुम्हारा-
निखर उठा सुरसरि धारा
में,
जैसे सोनपरी सी कोई-
हुई अवतरित सहसा जल
में;
अथवा पदवन्दन को उतरा,
स्वयं इंदु ही
गंगाजल में | “ --पृष्ठ ६२ ..
डा श्याम गुप्त की यह प्रस्तुति वर्त्तमान की
विवशता को दर्शाने में सचमुच ही देखते बनती है-----
“आँख मूँद कर हुक्म
बजाना,
सच की बात न मुंह पर
लाना;
पड जायेगा कष्ट
उठाना | “ पृष्ठ ६५ ...
वैराग्य को दर्शाती यह प्रस्तुति कैसी भावपूर्ण
है---------
“मरणोपरांत जीव
यद्यपि मुक्त होजाता
है
संसार से, पर-
कैद रहता है वह मन
में
आत्मीयों के याद
रूपी बंधन में,
और, होजाता है अमर |” --पृष्ठ ५८...
उपर्युक्त के अतिरिक्त और भी अगीत
प्रस्तुतियां इस विधा पर डा श्याम गुप्त की मज़बूत पकड़ को सिद्ध करती हैं| नारी-जागरण
को लक्ष्य करती श्रीमती सुषमा गुप्ता की यह प्रस्तुति निश्चय ही बड़ी उत्प्रेरक
है---
“अज्ञान तमिस्रा को
मिटाकर
आर्थिक रूप से
समृद्ध होगी,
सुबुद्ध होगी,
नारी तू तभी
स्वतंत्र होगी ,
प्रबुद्ध होगी |”
---पृष्ठ-४९
नारी चेतना की संवाहक स्वरुप यह
प्रस्तुति भी बड़ी ओजस्वी है –----
“ बेड़ियाँ तोड़ो
ज्ञान-दीप जलाओ,
नारी ! अब-
तुम ही राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो |” ---पृष्ठ -३८.
‘अगीत साहित्य दर्पण ‘ में डा
श्याम गुप्त ने अगीत-विधा के जनक डा रंगनाथ मिश्र ‘सत्य’ की भी अनेक प्रस्तुतियां
उद्धृत की हैं| इसके अतिरिक्त देश के अनेक अगीत्कारों एवं उनकी कृतियों तथा उद्धरण
स्वरुप उनके अगीत देकर सचमुच बड़ा प्रशंसनीय कार्य किया है|
अगीत की एतिहासिक पृष्ठभूमि में निराला,
हरिऔध, मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानंदन पन्त आदि
के उद्धरण भी बड़े प्रेरणास्पद हैं |
कृति में सर्वश्री कवि पाण्डेय
रामेन्द्र, पं. जगतनारायण पांडे, स्नेहप्रभा, धनसिंह मेहता अनजान, सुरेन्द्रकुमार
वर्मा, रामगुलाम रावत, धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया’प्रभंजन’, बक्शीस कौर संधू,
कैलाशनाथ तिवारी, सुरेश चंद्र शुक्ल, सोहनलाल सुबुद्ध, पार्थोसेन, अनिल किशोर
शुक्ल ‘निडर’, डा मंजू सक्सेना, सुभाष हुड़दंगी, तेज नारायण राही, इन्दुबाला गहलौत,
वीरेन्द्र निझावन, डा योगेश गुप्त, मंजूलता तिवारी, श्रृद्धा विजयलक्ष्मी,
क्षमापूर्णा पाठक, विजयकुमारी मौर्या, रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’, देवेश द्विवेदी ’देवेश’,
चंद्रपाल सिंह, वाहिद अली वाहिद, बुद्धिराम विमल, नंदकुमार मनोचा, श्रीमती गीता
आकांक्षा, अमरनाथ, विनय सक्सेना आदि कितने ही अगीतकारों को उदधृत किया गया है |
अगीत विधा पर शोध करने वाले
शोधार्थियों के लिए एवं पुस्तकालयों व वाचनालयों में सन्दर्भ के रूप में डा श्याम
गुप्त की यह कृति विशिष्ट स्थान प्राप्त करेगी | इस उत्कृष्ट कृति के लिए डा श्याम
गुप्त को कोटिश: साधुवाद |
दि. जुलाई,५, २०१३.ई.
पद्मा कुटीर, ---------- रवीन्द्र
कुमार ‘राजेश’
सी -२७, बसंत विहार कवि,
लेखक एवं समीक्षक
अलीगंज हाउसिंग स्कीम, लखनऊ -२२६०२४
फोन
-०५२२-२३२२१५४
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