....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
बात अन्न जल त्यागने की संथारा की है तो आत्मा के रूप में शरीर में ब्रह्म के उपस्थिति मानी जाती है , शरीर को स्वयं पिंड अर्थात ब्रह्माण्ड का ही रूप माना जाता है | कोई भी ज्ञानी से ज्ञानी नहीं जानता कि मृत्यु कब निश्चित है , अतः अन्न जल छोड़कर तिल तिल कर शरीर को मारना एवं आत्मा को कष्ट देना एवं शरीर को जान बूझकर अक्षम बनाते जाना , अकर्मण्यता, कायरता, कर्म से दूर भागने का चिन्ह है , वीरों का कृत्य नहीं | वीरों का कृत्य तो स्वस्थ्य शरीर के होते हुए तुरंत जल समाधि लेलेना या भूमि समाधि लेना है |
अतः हाईकोर्ट का निर्णय उचित ही है | राजनीतिक या जन दबाव में अथवा उच्चतम न्यायालय से कुछ भी निर्णय हो, परन्तु संथारा निश्चय ही अमानवीय, कायरतापूर्ण कृत्य है, आत्महत्या है | जैन समाज आत्ममंथन करे , यह उचित अवसर है अपने पंथ को नवीनता देने का || घिसे पिटे तथ्यों परम्पराओं पर घिसटकर न चलता रहे |
बात अन्न जल त्यागने की संथारा की है तो आत्मा के रूप में शरीर में ब्रह्म के उपस्थिति मानी जाती है , शरीर को स्वयं पिंड अर्थात ब्रह्माण्ड का ही रूप माना जाता है | कोई भी ज्ञानी से ज्ञानी नहीं जानता कि मृत्यु कब निश्चित है , अतः अन्न जल छोड़कर तिल तिल कर शरीर को मारना एवं आत्मा को कष्ट देना एवं शरीर को जान बूझकर अक्षम बनाते जाना , अकर्मण्यता, कायरता, कर्म से दूर भागने का चिन्ह है , वीरों का कृत्य नहीं | वीरों का कृत्य तो स्वस्थ्य शरीर के होते हुए तुरंत जल समाधि लेलेना या भूमि समाधि लेना है |
अतः हाईकोर्ट का निर्णय उचित ही है | राजनीतिक या जन दबाव में अथवा उच्चतम न्यायालय से कुछ भी निर्णय हो, परन्तु संथारा निश्चय ही अमानवीय, कायरतापूर्ण कृत्य है, आत्महत्या है | जैन समाज आत्ममंथन करे , यह उचित अवसर है अपने पंथ को नवीनता देने का || घिसे पिटे तथ्यों परम्पराओं पर घिसटकर न चलता रहे |