चित्रकूट -राम कथा का ,रामायण कालीन एक महत्वपूर्ण घटना स्थल है ,जिसे आज पर्यटन की दृष्टि से अन्य हमारे पौराणिक स्थलों की भांतिभुला दिया गया है। यह वह स्थान है जहाँ से आगे ,दुर्गम वन प्रदेश एवं लंकापति रावण का अधिग्रहीत प्रदेश प्रारंभ होजाता था। आज भी वहाँ पर रामायण कालीन स्थल दिखाई देते हैं। ,सुरम्य वनस्थली ,मन्दाकिनी नदी के घाट व किनारे बसे सुरम्य स्थल , जग प्रसिद्द ,फटिक -शिला -जिस पर लेटे हुए राम -सीता की भ्रम व अंहकार मैं चूर , इन्द्र - पुत्र ,जयंत ने परिक्षा लेनी चाही और सीताजी के पैर मैं काग के रूप मैं चोंच मारकर घायल कर देने पर , राम ने दंड स्वरुप एक नेत्र से हीन कर दिया था । साथ ही लक्ष्मण -शिला व लक्षमण टीला जहाँ से लक्षमण वीरासन पर बैठ कर रात्रि को पहरा देते थे। ,महासती अनुसूया व महर्षि अत्री का जग प्रसिद्द आश्रम , जहाँ अनुसूया जी ने सीताजी को पतिव्रत धर्म का सर्वकालीन उपदेश दिया एवं कभी न गंदे व नष्ट होने वाले वस्त्र व आभूषण दिए थे भविष्य के संकेत के साथ। हनुमान धारा -जहाँ महावीर हनुमान ने लंका दहन के पश्चात अपनी दाह -पीडा को बुझाया था। भरत कुंड जिसमें समस्त नदियों का जल जिसे भरतजी राम को मनाकर उनका राज्याभिषेक करने लाये थे ,जिसे गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से एक कुंड में दाल दिया गया था। आज भी इस कुए का जल अत्यन्त शीतल व मीठा है। सारी थकान व प्यास मिट्जाती है। शायद भारत व विश्व भर मैं भरत व उनकी पत्नी मांडवी का यही एकमात्र मन्दिर है। इन्हीं स्थानों मैं देवताओं ने एकत्र होकर राम की प्रार्थना की प्रार्थना की थी , देवांगना -जयंत के राज्य का स्थान जो उसकी पत्नी देवांगना का तपस्या - स्थल है जहाँ उसने राम- सीता से जयंत का अपराध chhamaa करने और अगले जन्म मैं राम की पूर्ण भक्ति ,प्रेम व उन्हें पति रूप मैं पाने की इच्छा की थी, तथा अगले जन्म , कृष्णावतार मैं राधा का जन्म लिया।
पूरा प्रदेश बहुत ही सुहावना स्थल है। अत्री आश्रम के आगे आज भी अत्यन्त घना महाजंगल है। , सोचा जा सकता है की रामायण काल मैं यह प्रदेश कितना भयानक घना व विशाल एवं रमणीय रहा होगा।
चित्रकूट के लोग आज भी संतों के समान स्वयं मैं मस्त , कम आय मैं ही जो मिले उस मैं संतुष्ट ,अधिकांस नगरों व बड़े तीर्थों की तरह आपाधापी ,यात्रियों को लूटने की बजाय सेवा भाव से रहते हैं ,भोले-भाले , निर्विकार व संतोषी जीव हैं।
हाँ मन्दाकिनी नदी का जल कम होरहा है उसके साथ सौन्दर्य भी। डाकुओं की शरण स्थली भी बँटा जारहा है। घने जंगल के कारण।
और हाँ -गुप्त गोदावरी व प्राचीन गुफाएं भी दर्शनीय हैं। अवश्य जाएँ , यदि आप अपने इतिहास व वास्तविक प्रकृति से रूबरू होना चाहें तो। बहुत आधुनिक सुविधा भोगी एवं आधुनिक पर्यटन के लोभीको वहाँ वह सब नहीं मिलेगा।
एक बार जाकर तो देखें ।
ब्लॉग आर्काइव
- ► 2013 (137)
- ► 2012 (183)
- ► 2011 (176)
- ► 2010 (176)
- ▼ 2009 (191)
डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
बुधवार, 4 मार्च 2009
सदस्यता लें
संदेश (Atom)