....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कविता का क ख ग घ ...क्रमिक आलेख
२. कविता का ख....
*** कविता लेखन ....मूल प्रारंभिक रूप-भाव......
----- ब्लॉग जगत में स्वतंत्र अभिव्यक्ति हेतु मुफ्त लेखन की
सुविधा होने से अनेकानेक ब्लॉग आरहे हैं एवं नए नए व युवा कवि अपने आप
को प्रस्तुत कर रहे हैं ....हिन्दी व भाषा एवं समाज के लिए गौरव और
प्रगति-प्रवाह की बात है ......परन्तु इसके साथ ही यह भी प्रदर्शित होरहा
है कि .....कविता में लय, गति, लिंगभेद, विषय भाव का गठन, तार्किकता,
देश-काल, एतिहासिक तथ्यों की अनदेखी आदि की जारही है | जिसके जो मन में
आरहा है तुकबंदी किये जारहा है | जो काव्य-कला में गिरावट का कारण बन सकता
है|
-------यद्यपि कविता ह्रदय की भावाव्यक्ति है उसे
सिखाया नहीं जा सकता ..परन्तु भाषा एवं व्याकरण व सम्बंधित विषय का उचित
ज्ञान काव्य-कला को सम्पूर्णता प्रदान करता है | शास्त्रीय-छांदस कविता
में सभी छंदों के विशिष्ट नियम होते हैं अतः वह तो काफी बाद की व अनुभव
-ज्ञान की बात है परन्तु प्रत्येक नव व युवा कवि को कविता के बारे में कुछ
सामान्य ज्ञान की छोटी छोटी मूल बातें तो आनी ही चाहिए | कुछ सहज
सामान्य प्रारंभिक बिंदु नीचे दिए जा रहे हैं, शायद नवान्तुकों व अन्य
जिज्ञासुओं के लिए सार्थक हो सकें ....
-----क.कलापक्ष ----
**(अ) -अतुकांत कविता में-**----- यद्यपि तुकांत या
अन्त्यानुप्रास नहीं होता परन्तु उचित गति, यति व लय अवश्य होना
चाहिए...यूंही कहानी या कथा की भांति नहीं होना चाहिए......यथा ..निरालाजी
की प्रसिद्ध कविता.....
"अबे सुन बे गुलाव ,
भूल मत गर पाई, खुशबू रंगो-आब;
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा -
कैपीटलिस्ट ||"
*
मानव व पशु मॆं यही है अन्तर,
पशु नहीं करता ,
छ्ल-छन्द और जन्तर- मन्तर।
शॆतान ने पशु को,
माया सन्सार कब दिखाया था;
ज्ञान का फ़ल तो ,
सिर्फ़ आदम ने ही खाया था। –डा. श्याम गु्प्त
*
"देव नागरी को अपनाएं
हिन्दी है जन जन की भाषा ,
भारत माता की अभिलाषा |
बने राष्ट्रभाषा अब हिन्दी,
सब बहनों की बड़ी बहन है
हिन्दी सबका मान बढाती ,
हिन्दी का अभियान चलायें|" -- डा रंगनाथ मिश्र सत्य
*
श्रेष्ठ कला का जो मन्दिर था,
तेरे गीत सजा मेरा मन,
प्रियतम तेरी विरह पीर में;
पतझर सा वीरान होगया ।
जैसे धुन्धलाये शब्दों की ,
धुन्धले अर्ध मिटे चित्रों की,
कला बीथिका एक पुरानी । ----डा. श्याम गु्प्त (लयबद्ध अगीत )
*
प्रीति–प्यार में नया नहीं कुछ,
वही पुराना किस्सा यारो ;
लगता शाश्वत नया-नया सा । ----डा. श्याम गु्प्त (त्रिपदा अगीत )
**(ब )- तुकांत कविता / गीत आदि में**----जिनके अंत में
प्रत्येक पंक्ति या पंक्ति युगल आदि में (छंदीय गति के अनुसार) तुक या
अन्त्यानुप्रास समान होता है...
१-- मात्रा --
------तुकांत
कविता की प्रत्येक पंक्ति में समान मात्राएँ ( सामान्यत: लघु वर्ण की एक
मात्रा दीर्घ की दो मात्रा, संयुक्त शब्द से पहले अक्षर की दो मात्रा,
स्वयं संयुक्त शब्द की मात्रा के अनुसार लघु व दीर्घ ) होनी चाहिए मुख्य
प्रारंभिक वाक्यांश, प्रथम पंक्ति ( मुखडा ) की मात्राएँ गिन कर उतनी ही
समान मात्राएँ प्रत्येक पंक्ति में रखी जानी चाहिए...बस आप मस्त होकर गाइए,
गुनगुनाइए, तमाम गीत, कोइ न कोइ छंद आदि अपने आप बनते चले जायेंगे, आपको
छंद शास्त्री होने की कोई आवश्यकता नहीं है ....यथा ..
"कर्म प्रधान जगत में जग में, =१६ मात्राएँ
(२+१ , १+२+१ , १+१+१ , २ , १+१ , २ =१६)
प्रथम पूज्य हे सिद्धि विनायक | = १६.
(१+१+१, २+१, २ , २+१ , १+२+१+१ =१६ )
कृपा करो हे बुद्धि विधाता , = १६
(१+२ , १+२ , २ , २+१ १ +२ +२ =१६ )
रिद्धि सिद्धि दाता गणनायक || = १६
(२+१, २+१ , २+२ , १+१+२+१+१ =१६ )
हिन्दी की ये रेल न जाने,
(२ +२ , २, २, २+१, १, २+२ ) =१६
चलते चलते क्यों रुक जाती |
१+१+२ १+१+२ २ १+१ २+२ ) = १६
जैसे ही रफ़्तार पकडती,
(२+२ , २, २+२+१ १+१+१+२ ) =१६
जाने क्यूं धीमी होजाती |
(२+२, २, २+२, २+२+२ )=१६
२ -लिंग ( स्त्रीलिंग-पुल्लिंग )
------कर्ता व कर्मानुसार.....उसके अनुसार उसी लिंग का प्रयोग हो, यथा ....
"जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होती है " ----यहाँ क्रिया-लिए
..कर्ता – जीवन का व्यापार है..न कि छड़ी का... जो समझ कर 'होती है '
लिखा गया ----अतः या तो ....जीवन हर वक्त लिए एक छड़ी होता है ....होना
चाहिए ...या ..जिंदगी हर वक्त लिए एक छड़ी होती है ...होना चाहिए |
३.बचन –
----बहुत से शब्दों का बहु वचन नहीं होता –वे नपुंसक लिंग होते हैं---यथा
चाहत को चाहतों लिखा जाता है जो त्रुटिपूर्ण है, इसी प्रकार मुहब्बतों
आदि...यथा –‘कंक्रीटों की दीवारें’ त्रुटिपूर्ण है = कंक्रीट की दीवारें
...
४- इसी प्रकार ..काव्य- विषय का --काल-कथानक का समय (टेंस
).... विषय-भाव ( सब्जेक्ट-थीम ),......भाव (सब्सटेंस),..... व विषय
क्रमिकता,.... तार्किकता, एतिहासिक प्राकृतिक व सिद्ध वैज्ञानिक तथ्यों की
सत्यता, ..... विश्व-मान्य सत्यों-तथ्यों-कथ्यों ( यूनीवर्सल ट्रुथ).....
का ध्यान रखा जाना चाहिए....बस .....|
५-- लंबी कविता में ...मूल
कथानक, विषय-उद्देश्य, तथ्य व देश-काल ....एक ही रहने चाहिए ..बदलने नहीं
चाहिए .....उसी मूल कथ्य व उद्देश्य को विभिन्न उदाहरणों व कथ्यों से
परिपुष्ट करना एक भिन्न बात है ...जो विषय को स्पष्टता प्रदान करते हैं
....
६.—हिन्दी में अल्पविराम आदि चिन्हों का अत्यधिक महत्त्व है
जिसके त्रुटिपूर्ण स्थान पर रखे जाने से वाक्य में अर्थ व भाव बदल जाते हैं
यथा – रेल को रोको, मत जाने दो एवं रेल को रोको मत, जाने दो....केवल एक
अल्प विराम के स्थान बदलने से एक ही वाक्य के दो विपरीत अर्थ होजाते हैं
७. हिन्दी में शब्दों की वाक्य में स्थिति व क्रम का अत्यंत महत्त्व होता
है, कविता में भी ...उचित संज्ञा सर्वनाम, क्रिया आदि उचित स्थान से हट
जाने पर अर्थ अनर्थ होजाता है | यथा—
नर्म होकर रुई सी लगी
वो जो लड़की थी सख्त वारिश में |
शायद कवि कहना चाहता है कि जो लड़की सख्त थी वो भी वारिश में भीग कर नर्म
होगई, परन्तु असम्बद्ध स्थान पर वारिश शब्द रखने से लगता है कि लड़की वारिश
में सख्त थी |
---- ख.भाव पक्ष ---
भावपक्ष में कविता के विषय व भाव व कथ्य पर थोड़ा विचार करें कि ----
---”आज सर्दी बहुत है”-”सूरज भी ठंड से कांप रहा है”- या फिर ”गर्मी ने
भीड़ को पसीना-पसीना कर दिया” या फिर ”बसन्त ऋतु आ गयी” (यह वैसी ही है,
जैसी हर वर्ष होती है) या फिर ”आषाढ़ के बादल घिर आये, धरती उठ कर आलिंगन कर
रही है”-
------तथा देश में व्यभिचार बढ़ रहा है... शासक अत्याचारी
हैं, जनता त्रस्त है....वलात्कार होरहे हैं, भ्रष्ट होगये हैं इत्यादि...
बिना कोई समाधान प्रस्तुत किये, समाचारों ( जो समाचारपत्र, टीवी, रेडियो,
इन्टरनेट पर पहले ही खूब मौजूद रहते हैं) से युक्त कविता से, इन सभी
सर्वज्ञात यथास्थितियों का वर्णन करके कविता आख़िर क्या संदेश देना चाहती
है। इस पर विचार अवश्य करना चाहिए|
---दूसरा विचारणीय तथ्य यह कि-
”मैं आज सुबह से उदास हूँ” या फिर -”रह रह कर भीतर से पीर उभरती है” या
फिर- ”खोया खोया खुश हुआ”- इत्यादि प्रसंगों पर रचना करने का दूरगामी
प्रभाव क्या हो सकता है। बहुत स्पष्ट है कि किसी एक व्यक्ति की एकान्तिक
अनुभूति में समग्र जन समुदाय को क्या रुचि हो सकती है| यदि वह निराला की
कविता एक तिनका – की भांति –‘ऐंठता तू है भला किसके लिए, एक तिनका है बहुत
तेरे लिए .. जैसे सरोकार/ समाधान से युक्त न हो |
-----और
अंत में ---आचार्य भामह के स्व-अनुभव के कथ्यांकन पर चलते हुए --सबसे बड़ा
नियम यह है कि ...स्थापित, वरिष्ठ, महान, प्रात:-स्मरणीय ...कवियों की
सेकडों रचनाएँ ..बार बार पढना, मनन करना व उनके कला व भाव का अनुसरण
करना | .......उनके अनुभव व रचना पर ही बाद में आगे शास्त्रीय नियम बनते
हैं......|
------ क्रमश –कविता का ग ...