....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
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होटल सूदू अरालिया में नाश्ता |
होटल सूदू अरालिया, पोलोनरूवा में रात्रि विश्राम के उपरांत प्रातः
२६-१२-१२ को हम लोग
दम्बूला के लिए चल दिए | दम्बूला अपने
प्री -हिस्टोरिकल गुफा-मंदिरों के लिए विख्यात है | यह नगर जो
एक समय श्रीलंका की राजधानी भी
रही है एक महत्वपूर्ण सांकृतिक त्रिकोणीय जंक्शन पर है जहां चारों ओर से
कोलम्बो, त्रिंकोमाली ,केंडी व अनुराधापुर की सड़कें मिलती हैं|
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दम्बूला पर्वत व वन-क्षेत्र |
दम्बूला क्षेत्र में प्रारम्भिक लोह-युग
मानव के लगभग ८० गुफा -निवास के खंडहर प्राप्त होचुके हैं (जो सातवीं
शताब्दी बीसी से प्रथम शताब्दी बीसी ) जिनमे से दक्षिणी भाग स्थित तमाम
गुफाएं बाद में बौद्ध -मठों - मंदिरों में परिवर्तित कर दिए गए, जो
दम्बूला गोल्डन रोक केव- टेम्पल के नाम से विश्व-प्रसिद्द हैं |
गुफाओं के वन क्षेत्र में लगभग तीन किलोमीटर में
प्राक -एतिहासिक युग के लौह-मानव के शव-गृह -(कब्रों )के अवशेष फैले हुए हैं जिसे
इब्बाना कटुवा कहते
हैं| ये निवासी ( ७५० बीसी )अपने शवों को शिलाओं के बने कब्रगाह में
दफनाया करते थे जिनके साथ उनकी व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुए ..मनके, वर्तन
आदि रख दिए जाते थे | इनमें कंकालों के साथ कीमती रत्न भी पाए गए हैं जो
शायद अमीर लोगों की कब्र होंगीं |
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आदि-मानव की कब्रों के अवशेष |
श्री लंका के
कीमती लकड़ी आयरन वुड , एबोनाईट एवं
एशिया की सबसे बड़ी गुलाबी क्वार्टज़ की पर्वत सीरीज यहीं है| दम्बूला पूरे
श्रीलंका का शाक-भाजी प्रदायक क्षेत्र भी है| १०वीं शताब्दी में चोल राजा राज राजे राजेन्द्र के शासन के समय में दम्बूला का नाम
धम्बल्लई था |
गिरिताले-मिनीरिया के झीलों -पर्वतों के वन-क्षेत्र होते हुए हम लोग लगभग एक बजे
दम्बूला पहुंचे | मार्ग में
'अत्रेया हर्बल सेंटर ' में हर्बल औषधियां एवं कोस्मेटिक्स के उद्यान व शोरूम को भी देखा |
अत्रेया से महान भारतीय आयुर्वेदाचार्य चिकित्सक अत्रि मुनि एवं उनके पुत्र आत्रेय का नाम देख कर आश्चर्य भी हुआ और भारत-श्रीलंका आदि कालीन संबंधों पर विश्वास भी|
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मुखौटे आदि |
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विष्णु, कार्तिकेय, श्रीकृष्ण |
आगे एक बड़े
वुडन-शोरूम में एबोनाईट, रबर-वुड आदि की विभिन्न
श्री लंका कला की काष्ठ-कलाकृतियों का कारखाना व भंडार था,
जहां कलाकृतियों के निर्माण की प्रक्रिया एवं उन्हें रंगने हेतुविभिन्न
रंगों के निर्माण की प्रक्रिया भी बताई गयी| विभिन्न प्राचीन,
प्री-हिस्टोरिक मुखौटे, दैनिक कार्यरत स्त्री-पुरुष , वनांचल की क्रियाएं ,
वन्य-जीव एवं महात्मा बुध की विभिन्न मुद्राओं की काष्ठ-मूर्तिया,
कीमती फर्नीचर व अन्य कलाकृतियों के साथ-साथ
सरस्वती,
गणेश, कार्तिकेय, श्रीकृष्ण, राधाकृष्ण , शिव, राम-लक्ष्मण -सीता, हनुमान
, नटराज , विष्णु , कुबेर अदि देवी-देवताओं की सुन्दर वेश-कीमती काष्ठ
मूर्तियाँ भी थीं | ९० हज़ार डालर कीमत का
एक विशालकाय हाथी भी निर्माण प्रकिया में था|
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काष्ठ मूर्तियों का कारखाना |
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नटराज |
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विशालकाय हाथी |
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राम, लक्ष्मण सीता व हनुमान |
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गणेश व विभिन्न अन्य मूर्तियाँ |
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बुद्ध मूर्तियाँ |
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सरस्वती |
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टॉड पर आसीन आराध्य - |
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मूसक सवार गणेश |
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हनुमान |
आराध्य और सिंह |
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गोल्डन बुद्धा |
गोल्डन बुद्धा - रोक केव टेम्पल के प्रवेश द्वार पर ही तीन मंजिला बुद्धा-म्यूज़ियम है जिसके ऊपर ही ध्यानस्थ बैठे हुए
महात्मा बुद्ध की विश्व में सबसे बड़ी स्वर्णिम मूर्ति है |
दम्बूला रौक -केव टेम्पल्स - एशिया की सबसे अधिक संरक्षित व शानदार विश्व-प्रसिद्द गुफा-मंदिर
हैं| ये गुफाये जमीन से लगभग १६० मीटर ऊंचाई पर एवं समुद्र से १११८ फीट
की ऊंचाई पर स्थित एक बहुत बड़ी ग्रेनाईट की एक ही महा -शिला पर काट कर
निर्मित किये गए हैं जो ६०० फीट ऊंची व २००० फीट लम्बी है, इसे स्थानीय
सिंहली लोग
दम्बूला-गाला ( दम्बूला पर्वत ) कहते थे और गुफाओं को
रणगिरी दम्बूला विहार | ये गुफाये लगभग
प्रथम शताब्दी बी सी की हैं जो
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केव टेम्पल का द्वार |
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गुफाओं के लिए पहाडी चढ़ाई |
प्री-हिस्टोरिक काल में आदि-कालीन मानवों (
सात से प्रथम शताब्दी बीसी ) द्वारा प्रयोग होती थीं बाद में बौद्ध पूजा
स्थलों में परिवर्तित की गयीं |यह मूल में एक ही बहुत बड़ी गुफा
थी जो बाद में तमिल व सिंहल शासकों ने पांच भागों में विभाजित करके बौद्ध
मंदिर स्थापित कर दिए गए| इसी प्रकार की तामाम गुफाये पर्वत-शिला पर हैं
जिनमें
मानव के निवास में प्रयोग आने के चिन्ह मिलते हैं |
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कमल का तालाब |
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\केव-टेम्पल्स पर रीना जी |
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दम्बूला पहाडी पर |
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गुफा द्वार पर सिंहली आर्ट |
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गुफा भित्ति चित्र उपदेश देते हुए बुद्ध |
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गुफा के अन्दर लेटे हुए बुद्ध व दीवार पर चित्रकारी |
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बुद्ध व भित्ति चित्र ईवा स्तूप जिसमें राजा बलागाम्बा का खजाना छिपाया गया |
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मकराकृति गुफा द्वार |
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भित्ति चित्र -ध्यानावस्थित बुध र व मार दैत्य की सेना |
भारतीय शासकों के आक्रमण से
अनुराधापुरा छोड़कर १४ वर्ष तक जंगल में आश्रय लिए हुए राजा बलागाम्बा ( राजा वातगामनी अभय ) को इन्हीं गुफाओं में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं ने आश्रय दिया था | उस समय
दम्बूला को ही राजधानी बनाया गया
था | प्रथम शताब्दी बीसी में पुनः अनुराधापुर के सिंहासन पर आसीन होने पर
आभार स्वरुप उसने इन गुफाओं को शानदार गुफा मंदिरों में निर्मित किया तीन
गुफाओं का नवीनीकरण व निर्माण किया |
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मुकुलिंडा किंग कोबरा छात्र छाया करते हुए |
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गरुड़ पर विष्णु -चित्र वरांडे स्थित अस्थायी मंदिर में |
पांच गुफाओं में लगभग
१९० चित्र व मूर्तियाँ हैं
जो दो शताब्दी बीसी में किंग बलागाम्बा द्वारा निर्मित हैं उसके पश्चात
....बाद में १२वी शताब्दी में राजा विजयबाहू द्वारा पोलोनारूवा को राजधानी
बनाने पर पुनः पुनर्निर्माण , गोल्ड प्लाटिंग एवं बहुत सी बुद्ध-मूर्तियों
व चित्रों आदि से १७ - १८ वीं शताव्दी तक निसान्कमला ,पराक्रम बाहू, व
भारतीय चोल शासक आदि विभिन्न शासकों द्वारा किये गए पुनर्निर्माण से
गुजरती रहीं |
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गॉड विष्णु व सामन गॉड व बुद्ध |
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बुद्ध व महाथेर आनंद |
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चतुर्थ गुफा के सम्मुख चित्र--गरुड़ पर विष्णु |
महा अलूत विहार,
पश्चिम विहार,
देवेलीन विहार एवं
महाराजाधिराजलीन विहार एवं चौथी गुफा बंद की हुई है आदि पांच गुफाओं में ,
महात्मा बुद्ध के विभिन्न मुद्राओं के व निर्वाण के समय मुद्रा, लेटे हुए व बैठे हुए बुद्ध , में
लगभग ७२ मूर्तियों के
अतिरिक्त महामाया द्वारा दिया गया स्वप्न, मार-नामक दैत्य द्वारा विविध
वेश धारी भयंकर दैत्य सेना द्वारा उन्हें ध्यान से हटाने का आयोजन व उनकी
हार , उपदेश , बुधत्व प्राप्ति , बोध-बृक्ष , विविध बुद्ध आदि के
शानदार गोल्डन पेंटेड भित्ति-चित्र समस्त भित्तियों व छतों पर निर्मित हैं एवं भयानक आंधी से बचाते हुए
नागराजा मुकलिंद द्वारा छत्रछाया
( शायद नाग राजाओं ने ही -- नागराजा टिस्सा के समय बौध धर्म श्रीलंका में
फैला-- बौद्ध धर्म को प्रश्रय दिया ) आदि मूर्तियाँ हैं | इसके साथ ही
ध्यानस्थ बुद्ध के साथ आनंद ( उनके पट्ट-शिष्य जो उनके बाद धम्म के संचालक बने ),
गौड सामन [
श्री लंका के आदिवासियों --यक्का-वेददा कबीले के आदि-देव जो एडम्स-पर्वत (त्रिकूट पर्वत) पर निबास करता है ]
व गॉड विष्णु व गॉड उपुलवन (
शायद उपेन्द्र --विष्णु का प्राचीन नाम )की साथ-साथ मूर्तियाँ , बंद गुफा के सामने मंदिर पर
गरुड़ पर आरूढ़ विष्णु के चित्र ,
मकर तोरण के दरवाजे आदि हिन्दू -कालीन प्रभाव को दर्शाते हैं|