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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 28 जनवरी 2013

श्री लंका यात्रा वृत्त ..भाग छह ...दम्बूला .....

                          



                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...




होटल सूदू अरालिया में नाश्ता
                               

                             होटल सूदू अरालिया, पोलोनरूवा में रात्रि विश्राम के उपरांत  प्रातः २६-१२-१२ को हम लोग दम्बूला के लिए चल दिए | दम्बूला  अपने  प्री -हिस्टोरिकल गुफा-मंदिरों के लिए विख्यात है | यह नगर जो एक समय श्रीलंका की राजधानी भी रही है एक महत्वपूर्ण सांकृतिक  त्रिकोणीय जंक्शन पर है जहां  चारों ओर से कोलम्बो, त्रिंकोमाली ,केंडी व अनुराधापुर की सड़कें मिलती हैं|
दम्बूला पर्वत व वन-क्षेत्र
            दम्बूला  क्षेत्र में  प्रारम्भिक लोह-युग मानव के लगभग ८० गुफा -निवास  के खंडहर प्राप्त होचुके हैं (जो सातवीं  शताब्दी  बीसी  से प्रथम शताब्दी बीसी ) जिनमे से दक्षिणी भाग स्थित तमाम गुफाएं  बाद में  बौद्ध -मठों - मंदिरों में परिवर्तित कर दिए गए, जो दम्बूला गोल्डन रोक केव- टेम्पल के नाम से विश्व-प्रसिद्द हैं |
            गुफाओं के वन क्षेत्र में लगभग तीन किलोमीटर में प्राक -एतिहासिक युग के लौह-मानव के शव-गृह -(कब्रों )के अवशेष  फैले हुए हैं जिसे इब्बाना कटुवा कहते हैं| ये निवासी ( ७५० बीसी )अपने शवों को शिलाओं के बने कब्रगाह में दफनाया करते थे जिनके साथ उनकी व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुए ..मनके, वर्तन आदि रख दिए जाते थे | इनमें कंकालों के साथ कीमती रत्न भी पाए गए हैं जो शायद अमीर लोगों की कब्र होंगीं |
आदि-मानव की कब्रों के अवशेष
          श्री लंका के कीमती लकड़ी आयरन वुड , एबोनाईट एवं एशिया की सबसे बड़ी गुलाबी क्वार्टज़ की पर्वत सीरीज यहीं है| दम्बूला पूरे श्रीलंका का शाक-भाजी  प्रदायक क्षेत्र  भी है|    १०वीं  शताब्दी में चोल राजा राज राजे राजेन्द्र के शासन के  समय में   दम्बूला का नाम धम्बल्लई था |

         गिरिताले-मिनीरिया के झीलों -पर्वतों के  वन-क्षेत्र होते हुए हम लोग लगभग एक बजे दम्बूला पहुंचे | मार्ग में  'अत्रेया हर्बल सेंटर ' में हर्बल औषधियां एवं कोस्मेटिक्स के उद्यान व शोरूम को भी देखा | अत्रेया से महान भारतीय आयुर्वेदाचार्य चिकित्सक अत्रि  मुनि एवं उनके पुत्र आत्रेय का नाम देख कर आश्चर्य भी हुआ और भारत-श्रीलंका आदि कालीन संबंधों पर विश्वास भी|
मुखौटे आदि
विष्णु, कार्तिकेय, श्रीकृष्ण
                 आगे एक बड़े वुडन-शोरूम में एबोनाईट, रबर-वुड आदि  की विभिन्न श्री लंका कला की काष्ठ-कलाकृतियों का कारखाना व भंडार था, जहां कलाकृतियों के निर्माण की प्रक्रिया एवं उन्हें रंगने हेतुविभिन्न रंगों के निर्माण की प्रक्रिया भी बताई गयी| विभिन्न प्राचीन, प्री-हिस्टोरिक मुखौटे, दैनिक कार्यरत स्त्री-पुरुष , वनांचल की क्रियाएं , वन्य-जीव एवं महात्मा बुध की विभिन्न मुद्राओं की काष्ठ-मूर्तिया, कीमती फर्नीचर  व अन्य कलाकृतियों के साथ-साथ  सरस्वती, गणेश,  कार्तिकेय, श्रीकृष्ण, राधाकृष्ण , शिव, राम-लक्ष्मण -सीता, हनुमान , नटराज , विष्णु , कुबेर अदि देवी-देवताओं की  सुन्दर वेश-कीमती  काष्ठ मूर्तियाँ भी थीं | ९० हज़ार डालर कीमत का  एक विशालकाय हाथी  भी  निर्माण प्रकिया में  था|
                  
काष्ठ मूर्तियों का कारखाना
नटराज
विशालकाय हाथी
राम, लक्ष्मण सीता व हनुमान
गणेश व विभिन्न अन्य मूर्तियाँ
बुद्ध मूर्तियाँ
सरस्वती


टॉड पर आसीन आराध्य -
                     
मूसक सवार गणेश 

हनुमान
आराध्य और सिंह


                  


गोल्डन बुद्धा
गोल्डन बुद्धा  -  रोक केव टेम्पल के प्रवेश द्वार पर ही तीन मंजिला बुद्धा-म्यूज़ियम है जिसके ऊपर ही ध्यानस्थ बैठे हुए महात्मा बुद्ध की  विश्व में  सबसे बड़ी स्वर्णिम मूर्ति  है |
दम्बूला रौक -केव टेम्पल्स -     एशिया की सबसे अधिक संरक्षित  व शानदार विश्व-प्रसिद्द गुफा-मंदिर हैं| ये गुफाये जमीन से लगभग १६० मीटर ऊंचाई पर  एवं समुद्र से १११८ फीट की  ऊंचाई पर स्थित एक बहुत बड़ी ग्रेनाईट की  एक ही  महा -शिला पर काट कर निर्मित किये गए हैं जो ६०० फीट ऊंची व २००० फीट लम्बी है, इसे स्थानीय सिंहली लोग दम्बूला-गाला ( दम्बूला पर्वत )  कहते थे  और गुफाओं को रणगिरी दम्बूला विहार | ये गुफाये लगभग प्रथम शताब्दी बी सी की हैं जो
केव टेम्पल का द्वार
गुफाओं के लिए पहाडी चढ़ाई
प्री-हिस्टोरिक काल में आदि-कालीन मानवों ( सात से प्रथम शताब्दी बीसी )  द्वारा प्रयोग होती थीं बाद में बौद्ध पूजा स्थलों में परिवर्तित की गयीं |यह मूल में एक ही बहुत बड़ी गुफा थी जो बाद में तमिल व सिंहल शासकों ने पांच भागों में विभाजित करके बौद्ध  मंदिर स्थापित कर दिए गए|  इसी प्रकार की तामाम गुफाये पर्वत-शिला पर हैं  जिनमें  मानव के निवास में प्रयोग आने के चिन्ह मिलते हैं  |
कमल का तालाब
\केव-टेम्पल्स पर रीना जी
दम्बूला पहाडी पर

गुफा द्वार पर सिंहली आर्ट
गुफा भित्ति चित्र उपदेश देते हुए बुद्ध
गुफा के अन्दर लेटे  हुए बुद्ध व दीवार पर चित्रकारी
 बुद्ध व भित्ति चित्र  ईवा स्तूप जिसमें राजा बलागाम्बा का खजाना छिपाया गया
मकराकृति गुफा द्वार
भित्ति चित्र -ध्यानावस्थित बुध र व मार दैत्य  की सेना
                    भारतीय शासकों के आक्रमण से अनुराधापुरा छोड़कर १४ वर्ष तक जंगल में आश्रय लिए हुए राजा बलागाम्बा ( राजा वातगामनी  अभय ) को इन्हीं गुफाओं में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं ने आश्रय दिया था | उस समय  दम्बूला को ही राजधानी बनाया गया था |  प्रथम शताब्दी बीसी में पुनः अनुराधापुर के सिंहासन पर आसीन होने पर आभार स्वरुप उसने इन गुफाओं को शानदार गुफा मंदिरों में निर्मित किया तीन गुफाओं का नवीनीकरण व निर्माण किया |  
मुकुलिंडा किंग कोबरा छात्र छाया करते हुए
               
         
गरुड़ पर विष्णु -चित्र वरांडे स्थित अस्थायी मंदिर में
पांच गुफाओं में लगभग १९० चित्र व मूर्तियाँ हैं जो  दो शताब्दी बीसी में किंग बलागाम्बा द्वारा निर्मित हैं उसके पश्चात ....बाद में १२वी शताब्दी  में राजा विजयबाहू द्वारा पोलोनारूवा को राजधानी बनाने पर पुनः पुनर्निर्माण , गोल्ड प्लाटिंग एवं बहुत सी बुद्ध-मूर्तियों व चित्रों  आदि से १७ - १८ वीं शताव्दी तक  निसान्कमला ,पराक्रम बाहू,  व  भारतीय चोल शासक   आदि विभिन्न शासकों द्वारा किये गए  पुनर्निर्माण से गुजरती रहीं |
गॉड विष्णु व सामन गॉड व बुद्ध
बुद्ध व महाथेर आनंद
              
चतुर्थ गुफा के सम्मुख चित्र--गरुड़ पर विष्णु
  महा अलूत विहार, पश्चिम विहार, देवेलीन विहार एवं महाराजाधिराजलीन विहार एवं चौथी गुफा बंद की हुई है आदि पांच गुफाओं में ,महात्मा बुद्ध के विभिन्न मुद्राओं के व निर्वाण के समय  मुद्रा, लेटे  हुए व बैठे हुए बुद्ध , में लगभग ७२ मूर्तियों के अतिरिक्त महामाया द्वारा दिया गया स्वप्न, मार-नामक दैत्य द्वारा  विविध वेश धारी  भयंकर दैत्य सेना द्वारा उन्हें ध्यान से हटाने का आयोजन व उनकी हार , उपदेश , बुधत्व प्राप्ति , बोध-बृक्ष , विविध बुद्ध  आदि के शानदार गोल्डन पेंटेड भित्ति-चित्र समस्त भित्तियों व छतों पर निर्मित हैं  एवं  भयानक आंधी से बचाते हुए नागराजा मुकलिंद द्वारा छत्रछाया ( शायद नाग राजाओं ने ही -- नागराजा टिस्सा के समय बौध धर्म श्रीलंका में फैला-- बौद्ध धर्म को प्रश्रय दिया ) आदि मूर्तियाँ हैं |  इसके साथ ही  ध्यानस्थ बुद्ध के साथ आनंद ( उनके पट्ट-शिष्य जो उनके बाद धम्म के संचालक बने ), गौड सामन [श्री लंका के आदिवासियों --यक्का-वेददा कबीले के आदि-देव जो एडम्स-पर्वत (त्रिकूट पर्वत) पर निबास करता हैव गॉड विष्णु  व गॉड उपुलवन ( शायद उपेन्द्र --विष्णु का प्राचीन  नाम )की साथ-साथ मूर्तियाँ , बंद गुफा के सामने मंदिर पर गरुड़ पर आरूढ़ विष्णु के चित्र , मकर तोरण के दरवाजे  आदि हिन्दू -कालीन प्रभाव को दर्शाते हैं|

वो चंद पल..डा श्याम गुप्त की ग़ज़ल....

                                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

          

वो चंद पल  जो  तेरे साथ  गुजारे हमने |
ज़िंदगी के  देख लिए  सारे नज़ारे  हमने |

अब कोई  और समां भाता नहीं दिल को,
कर लिए पल वोही दिल के सहारे हमने |

क्या कहैं कैसे कहैं हाले-दिल किस से कहैं ,
खो दिए जो थे सनम जान से प्यारे हमने |

उनकी काज़ल से भरी आँखों में खोये लेकिन,
क्यों नहीं समझे निगाहों  के  इशारे हमने |

आवाज़ तो दो, कोई  इलजाम ही दो  चाहे,
आज लो जानो-जिगर तुम पे ही वारे हमने |

अब कहाँ ढूंढें तुम्हें दिल को सुकूँ-चैन मिले,
श्याम' आजाओ कि ढूंढ लिए जग के किनारे हमने ||