....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
धन्यवाद है शासन का,
इस
कितना अच्छा होगा जब,
बिजली पानी न आयेगा |
ऐसी
कूलर नहीं चलेंगे,
पंखा नाच नचाएगा ||
छत की शीतल मंद पवन
में,
सोने का आनन्द रहेगा
|
जंगल-झाडे के ही
बहाने,
प्रातः सैर का वक्त
मिलेगा |
नदी कुआं औ ताल नहर फिर,
जल क्रीडा का सेतु
बनेंगे |
शाम समय छत पर,
क्रीडाओं-
चर्चाओं के दौर
चलेंगे |
नहीं चलेगें फ्रिज टीवी,
डिश, केबुल न आयेगा ||
मिलना जुलना फिर से
होगा,
नाते –रिश्तेदारों
में |
उठना बैठना घूमना
होगा,
पास पडौसी यारों में
|
घड़े सुराही के ठन्डे
जल की,
सौंधी सी गंध मिलेगी |
फालसा खिरनी शर्वत
कांजी,
लस्सी औ ठंडाई
घुटेगी |
घर कमरों में बैठे रहना,
शाम-सुबह न भाएगा ||
भोर में मंदिर के
घंटों की,
ध्वनि का सुख-आनंद
मिलेगा|
चौपालों पर ज्ञान-वार्ता,
छंदों का संसार
सजेगा |
अकर्मण्यता का वंदन
है |
धन्य-धन्य हम भारत वासी,
साधुवाद है अभिनन्दन
है |
लगता है यह अब तो यारो!,
सतयुग जल्दी आजायेगा ||