....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सखी री नव बसन्त आये ।।
जन जन में,
जन जन, मन मन में,
यौवन यौवन छाये ।
सखी री नव बसंत आये ।।
पुलकि पुलकि सब अंग सखी री ,
हियरा उठे उमंग ।
आये ऋतुपति पुष्प-बान ले,
आये रतिपति काम-बान ले ,
मनमथ छायो अंग ।
होय कुसुम-शर घायल जियरा ,
अंग अंग रस भर लाये ।
सखी री नव बसंत आये ।।
तन मन में बिजुरी की थिरकन,
बाजे ताल-मृदंग ।
अंचरा खोले रे भेद जिया के ,
यौवन उठे तरंग ।
गलियन गलियन झांझर बाजे ,
अंग अंग हरषाए ।
प्रेम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
काम शास्त्र का पाठ पढ़ाने,
ऋषि अनंग आये ।
सखी री नव बसंत आये ।।
----- चित्र गूगल साभार