....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आल्हा छंद मात्रिक-सवैया छंद है जिसमें ३१ मात्राएँ व १६-१५ पर यति होती है और अंत में गुरु-लघु आना चाहिए | यह मूलतः बीर-रस (अनिवार्यतः ?) का छंद है, जिसमें प्रायः अतिशयोक्ति-अलंकार की भी छटा होती है |
यह मूल छन्द कहरवा ताल में निबद्ध होता है। प्रारम्भ में आल्हा गायन विलम्बित लय में होता है। धीरे-धीरे लय तेज होती जाती है। यह मध्य-भारत, बुंदेलखंड व ब्रज क्षेत्र की परम्परागत लोक-गायकी -- आल्हा-गायकी | महोवा के दो प्रसिद्द वीर नायक...आल्हा व ऊदल के चरित्र वर्णन से प्रसिद्द यह छंद आल्हा-छंद के नाम से प्रसिद्द हुआ |--एक लोकगायक के शब्दों में ....
आल्हा छंद मात्रिक-सवैया छंद है जिसमें ३१ मात्राएँ व १६-१५ पर यति होती है और अंत में गुरु-लघु आना चाहिए | यह मूलतः बीर-रस (अनिवार्यतः ?) का छंद है, जिसमें प्रायः अतिशयोक्ति-अलंकार की भी छटा होती है |
यह मूल छन्द कहरवा ताल में निबद्ध होता है। प्रारम्भ में आल्हा गायन विलम्बित लय में होता है। धीरे-धीरे लय तेज होती जाती है। यह मध्य-भारत, बुंदेलखंड व ब्रज क्षेत्र की परम्परागत लोक-गायकी -- आल्हा-गायकी | महोवा के दो प्रसिद्द वीर नायक...आल्हा व ऊदल के चरित्र वर्णन से प्रसिद्द यह छंद आल्हा-छंद के नाम से प्रसिद्द हुआ |--एक लोकगायक के शब्दों में ....
आल्हा मात्रिक छन्द, सवैया, सोलह-पन्द्रह यति अनिवार्य।
गुरु-लघु चरण अन्त में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य।
अलंकार अतिशयताकारक, राई को कर तुरत पहाड़।
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़।| ---
गुरु-लघु चरण अन्त में रखिये, सिर्फ वीरता हो स्वीकार्य।
अलंकार अतिशयताकारक, राई को कर तुरत पहाड़।
ज्यों मिमयाती बकरी सोचे, गुँजा रही वन लगा दहाड़।| ---
-----आइये आपको सुनाते हैं आल्हा छंद में अन्ना की ललकार ......
फिर ललकार दई अन्ना नै,
दिग्गी सुनिलो कान लगाय |
चाहे जितने हमले करलो,
चाहे जेल देउ भिजवाय ||
चाहे कुटिल-नीति जो खेलो ,
चाहे जितना लो इतराय |
लोकपाल बिल अवश बनेगा ,
चाहे जान भले ही जाय ||
भरे -जोश केज़रीवाल ने ,
सिब्बल-मोहन दए ललकार |
या तो लोकपाल बिल लाओ,
अथवा छोड देउ सरकार ||
किरन सी चमकि बेदी बोलीं ,
बीजेपी, बसपा सुनि जांय |
सपा , बामपंथी सब सुनिलें ,
हमारौ राजनीति दल नायं ||
अब तौ चेति गयो है भारत ,
जनता अब मानेगी नायं |
अपना मत स्पष्ट करें सब,
लोकपाल बिल लाया जाय ||