....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ.
युवा रचनाकारों के संस्था ..'सृजन' साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था लखनऊ के तृतीय वार्षिकोत्सव पर, समारोह एवं अखिल भारतीय अगीत परिषद् के संयोजक श्री पार्थो सेन द्वारा पढ़ा गया आलेख....
महाकवि डा श्याम गुप्त : मेरी नज़र में ...
सृजन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था अपने तृतीय वार्षिकोत्सव पर सुप्रसिद्ध शल्य चिकित्सक एवं समान्तर रूप से साहित्य जगत के वरिष्ठ कवि, लेखक, कहानीकार , उपन्यासकार एवं समीक्षक डॉ श्याम गुप्त जी को 'सृजन साधना ' वरिष्ठ रचनाकार सम्मान से विभूषित करके गौरवान्वित है | यहाँ हम उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा करेंगे |
व्यक्तित् व कृतित्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | यहाँ यह कहना समीचीन होगा की कृतित्व ही व्यक्तित्व को ऊंचा करने में सहायक होता है | आज हम जिन्हें महापुरुष कहकर सम्मान करते हैं, उनके कर्मों ने ही उन्हें महान बनाया जो उनका व्यक्तित्व होगया |
डॉ श्याम बाबू गुप्ता ....डा श्याम गुप्त जी.... ने साहित्य जगत में विधिवत पदार्पण २००४ में अपनी प्रथम कृति ' काव्य दूत ' से किया | अब तक उनकी छः पुस्तकें प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुकी हैं | आपका जन्म १० नवम्बर, १९४४ ई को, ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा में हुआ | आपके पिता श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता श्रीमती रामभेजी देवी, दोनों संस्कारित व धर्मपारायण थे, जिसका प्रभाव उनके जीवन एवं साहित्य में स्पष्ट रूप से झलकता है | आप चार भाई व बहन के मध्य पले व बढ़े |
साहित्य क्षेत्र में पदार्पण का भी कोइ कारण व संयोग हुआ करता है जहाँ से व्यक्ति शनै : शनै : उस क्षेत्र में अग्रसर होता है | एसा ही कुछ डॉ श्याम गुप्त के साथ हुआ, कक्षा आठ में विद्यार्थी के रूप में इनके सहपाठी श्री राम कुमार अग्रवाल कवितायें लिखते थे व इन्हें दिखाते थे |यहीं से आपके ह्रदय में परिवर्तन आया और आप कलम के साधक बन गए | यह सत्य ही है की आप पहले साहित्य के क्षेत्र में आये, तत्पश्चात चिकित्सा जगत में | चूंकि शल्य-चिकित्सा आपकी आजीविका रही अतः आवश्यक था की वे उसका निर्वाह करते | अतः सन २००४ में सेवा निवृत्त होते ही उन्होंने अपनी प्रथम कृति 'काव्य दूत' को हम सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया | जो तुकांत व अतुकांत रचनाओं की विविधता लिए हुए काव्य संग्रह है जिसमें कवि मन के अंतर्द्वंद्व सामने आये हैं और इसे उन्होंने अपनी जीवन संगिनी को समर्पित किया है | एक अंश देखिये....
"मन के अंतर्द्वंद्व से ,
यह विचार उभर कर आया |
चेतना ने,
जीवन की कविता
लिखने को सुझाया ||"
दूसरी कृति 'काव्य निर्झरिणी ' २००५ में गेय गीतों का संग्रह है | जिसमें नीति, शिक्षा,विज्ञान, धर्म, दर्शन,संस्कृति आदि सभी निहित हैं | सरल भाषा में रचित यह कृति माता-पिता को समर्पित है |....दो पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं....
" कविता वह है जो रहे , सुन्दर सरल सुबोध |
जन मानस को कर सके, हर्षित प्रखर प्रबोध ||"
तृतीय कृति 'काव्यमुक्तामृत ' २००५ में ही अतुकांत गीतों का संग्रह है | मूल रूप से रचनायें मर्यादा, नैतिकता व आचरण-शुचिता पर आधारित हैं , जिसे अपने अग्रज डा राम बाबू गुप्त को समर्पण किया गया है | कवि स्वयं कविता की समीक्षा करते हुए कहता है....
" कवि को भरना होता है ,
गागर में सागर,
तब कविता होजाती है मुक्त ,
छंद से, छंद भाव जाल से , और-
बन जाती है , मुक्त छंद कविता ||"
आपकी चतुर्थ कृति एक नवीनता लिए हुए २००६ में ' सृष्टि महाकाव्य -ईशत इच्छा या बिग बेंग " के शीर्षक से प्रकाशित हुई | जिसमें प्रथम बार एक अमूर्त नायक सृष्टि व ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्म या ईश्वर को नायकत्व का रूप देकर महाकाव्य की रचना हिन्दी साहित्य जगत को अगीत विधा में प्रस्तुत करना सराहनीय कार्य रहा | कृति अपनी पुत्री व दामाद को समर्पित है | एक उदाहरण देखें ...
" निज को जग को जानेंगे,
समता भाव तभी मानेंगे;
तब नर नर से करे समन्वय,
आपस के भावों का अन्वय ..|"
२००७ में आपकी पांचवी कृति गीति विधा महाकाव्य ' प्रेम काव्य' प्रकाशित हुई जो, अमूर्त भाव 'प्रेम' को नायक व नायिका बनाकर गीतों व छंदों में रचित है | कृति प्रेम की प्रेरणादायी राधाजी को समर्पित है | यह कृति बहुत चर्चित रही | एक उदाहरण देखें ---
" प्रेम के आधार हे मन!
मन तुम्हारा करूँ वंदन |"
आपकी छटी पुस्तक . 'शूर्पणखा' अगीत विधा पर आधारित खंड काव्य है , जिसे कवि ने 'काव्य-उपन्यास' की संज्ञा देकर साहित्य जगत को एक नवीन सन्देश दिया है | इसमें मानवीय अनाचार, आचरण, शुचिता, पुरुष व नारी समाज के साथ में धर्म पर भी चर्चा की गयी है | यह कृति कवि ने अपने पिता एवं राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी को समर्पित की है | एक उदाहरण प्रस्तुत है....
" विदुषी शिक्षित और साक्षर ,
नारी ही आधार है सदा ,
हर समाज की नर जीवन की ..|"
इन सभी कृतियों की समीक्षाए कई प्रमुख दैनिक तथा साप्ताहिक समाचार पत्रों विशेष रूप से ,दैनिक जागरण' व 'अगीतायन' में प्रकाशित हुईं | कृतियों के शीर्षक, सामग्री, विषय-वस्तु एक आदर्श स्थापित करते हैं | नि:संदेह डा श्याम गुप्त एक सिद्धहस्त कवि व महाकवि हैं |
इन कृतियों के साथ साथ वे इंटरनेट पर ब्लॉग लेखन से भी जुड़ गए | और ' प्रेम महाभारत '२०११प्रथम ..में ..निर्णायक के रूप में एवं महाभारत द्वितीय ' भ्रष्टाचार -वास्तविक दोषी कौन ' के प्रथम विजेता घोषित हुए | परिमार्जित हिन्दी के अतिरिक्त आपने बृज-भाषा व अंग्रेज़ी भाषाओं में भी कवितायें लिखी हैं -- नीचे उदाहरण प्रस्तुत हैं---
"साँचु न्याय ब्रत नेमु धरम
अब काहू कों न सुहावै |
कारे धन की खूब कमाई ,
पाछे सब जग धावै ||" तथा----
"There were darkness in the life,
And life was a great strife.
Someone brought the ray of hope,
And filled the heart with light . "
कविता के अध्याय के पश्चात, संतुलित कहानीकार के रूप में भी आपका परिचय आवश्यक है |
मूलतः आप संतुलित व लघु कहानियां लिखते हैं | 'खरगोश के जोड़े की कहानी'- जो पर्यावरण पर आधारित है , 'विकृति की जड़'-जो माँ-बाप व बच्चों के संस्कार पर आधारित है , 'भव-चक्र' जो वृद्धावस्था से सम्बंधित है ; आदि सराहनीय हैं | आपसे साहित्य का कोइ अंग छूटा नहीं है | स्नेह प्रभा जी की रचना 'कर्मवीर ", श्रीमती मधु त्रिपाठी की रचना 'मधु माधुरी ' एवं डा उषा गुप्ता जी की प्रसिद्ध कृति " अमेरिकी प्रवासी भारतीय कवि ' की समीक्षाएं व संघात्मक समीक्षाएं प्रशंसित हैं जो अन्य समीक्षकों को दिशा प्रदान करती हैं | समय समय पर आप अन्य लेखकों, रचनाकारों की पुस्तकों में शुभाशंसायें भी देते है जिसमें श्री अजित कुमार वर्मा की व्यंग्य लेखों का संग्रह ' मैं गधा हूँ ' उल्लेखनीय हैं |
डा श्याम गुप्त अब तक २२ छोटी- बड़ी कहानियां , ५० के लगभग आलेख व ६ प्रकाशित कृतियों के अतिरिक्त लगभग ८ अप्रकाशित कृतियाँ आपकी उपलब्धि के अंग हैं | आपको लखनऊ व देश के विभिन्न नगरों के साहित्यिक मंचों से सम्मान भी मिले हैं | मासिक कवि-गोष्ठियों के माध्यम से आपकी लेखनी और प्रखर हुई है | आपकी साहित्यिक यात्रा इसी प्रकार गतिमान रहे इसी मंगलकामना के साथ मैं डा श्याम गुप्त जी को नमन करता हूँ |
---पार्थो सेन, सी ,३०८७, राजाजी पुरम ,लखनऊ-17
मो. .९३३५७३१३६७
प्रस्तुति--- श्रीमती सुषमा गुप्ता...
युवा रचनाकारों के संस्था ..'सृजन' साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था लखनऊ के तृतीय वार्षिकोत्सव पर, समारोह एवं अखिल भारतीय अगीत परिषद् के संयोजक श्री पार्थो सेन द्वारा पढ़ा गया आलेख....
महाकवि डा श्याम गुप्त : मेरी नज़र में ...
सृजन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था अपने तृतीय वार्षिकोत्सव पर सुप्रसिद्ध शल्य चिकित्सक एवं समान्तर रूप से साहित्य जगत के वरिष्ठ कवि, लेखक, कहानीकार , उपन्यासकार एवं समीक्षक डॉ श्याम गुप्त जी को 'सृजन साधना ' वरिष्ठ रचनाकार सम्मान से विभूषित करके गौरवान्वित है | यहाँ हम उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा करेंगे |
व्यक्तित् व कृतित्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | यहाँ यह कहना समीचीन होगा की कृतित्व ही व्यक्तित्व को ऊंचा करने में सहायक होता है | आज हम जिन्हें महापुरुष कहकर सम्मान करते हैं, उनके कर्मों ने ही उन्हें महान बनाया जो उनका व्यक्तित्व होगया |
डॉ श्याम बाबू गुप्ता ....डा श्याम गुप्त जी.... ने साहित्य जगत में विधिवत पदार्पण २००४ में अपनी प्रथम कृति ' काव्य दूत ' से किया | अब तक उनकी छः पुस्तकें प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुकी हैं | आपका जन्म १० नवम्बर, १९४४ ई को, ग्राम मिढाकुर, जिला आगरा में हुआ | आपके पिता श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्त व माता श्रीमती रामभेजी देवी, दोनों संस्कारित व धर्मपारायण थे, जिसका प्रभाव उनके जीवन एवं साहित्य में स्पष्ट रूप से झलकता है | आप चार भाई व बहन के मध्य पले व बढ़े |
साहित्य क्षेत्र में पदार्पण का भी कोइ कारण व संयोग हुआ करता है जहाँ से व्यक्ति शनै : शनै : उस क्षेत्र में अग्रसर होता है | एसा ही कुछ डॉ श्याम गुप्त के साथ हुआ, कक्षा आठ में विद्यार्थी के रूप में इनके सहपाठी श्री राम कुमार अग्रवाल कवितायें लिखते थे व इन्हें दिखाते थे |यहीं से आपके ह्रदय में परिवर्तन आया और आप कलम के साधक बन गए | यह सत्य ही है की आप पहले साहित्य के क्षेत्र में आये, तत्पश्चात चिकित्सा जगत में | चूंकि शल्य-चिकित्सा आपकी आजीविका रही अतः आवश्यक था की वे उसका निर्वाह करते | अतः सन २००४ में सेवा निवृत्त होते ही उन्होंने अपनी प्रथम कृति 'काव्य दूत' को हम सबके समक्ष प्रस्तुत कर दिया | जो तुकांत व अतुकांत रचनाओं की विविधता लिए हुए काव्य संग्रह है जिसमें कवि मन के अंतर्द्वंद्व सामने आये हैं और इसे उन्होंने अपनी जीवन संगिनी को समर्पित किया है | एक अंश देखिये....
"मन के अंतर्द्वंद्व से ,
यह विचार उभर कर आया |
चेतना ने,
जीवन की कविता
लिखने को सुझाया ||"
दूसरी कृति 'काव्य निर्झरिणी ' २००५ में गेय गीतों का संग्रह है | जिसमें नीति, शिक्षा,विज्ञान, धर्म, दर्शन,संस्कृति आदि सभी निहित हैं | सरल भाषा में रचित यह कृति माता-पिता को समर्पित है |....दो पंक्तियाँ यहाँ प्रस्तुत हैं....
" कविता वह है जो रहे , सुन्दर सरल सुबोध |
जन मानस को कर सके, हर्षित प्रखर प्रबोध ||"
तृतीय कृति 'काव्यमुक्तामृत ' २००५ में ही अतुकांत गीतों का संग्रह है | मूल रूप से रचनायें मर्यादा, नैतिकता व आचरण-शुचिता पर आधारित हैं , जिसे अपने अग्रज डा राम बाबू गुप्त को समर्पण किया गया है | कवि स्वयं कविता की समीक्षा करते हुए कहता है....
" कवि को भरना होता है ,
गागर में सागर,
तब कविता होजाती है मुक्त ,
छंद से, छंद भाव जाल से , और-
बन जाती है , मुक्त छंद कविता ||"
आपकी चतुर्थ कृति एक नवीनता लिए हुए २००६ में ' सृष्टि महाकाव्य -ईशत इच्छा या बिग बेंग " के शीर्षक से प्रकाशित हुई | जिसमें प्रथम बार एक अमूर्त नायक सृष्टि व ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्म या ईश्वर को नायकत्व का रूप देकर महाकाव्य की रचना हिन्दी साहित्य जगत को अगीत विधा में प्रस्तुत करना सराहनीय कार्य रहा | कृति अपनी पुत्री व दामाद को समर्पित है | एक उदाहरण देखें ...
" निज को जग को जानेंगे,
समता भाव तभी मानेंगे;
तब नर नर से करे समन्वय,
आपस के भावों का अन्वय ..|"
२००७ में आपकी पांचवी कृति गीति विधा महाकाव्य ' प्रेम काव्य' प्रकाशित हुई जो, अमूर्त भाव 'प्रेम' को नायक व नायिका बनाकर गीतों व छंदों में रचित है | कृति प्रेम की प्रेरणादायी राधाजी को समर्पित है | यह कृति बहुत चर्चित रही | एक उदाहरण देखें ---
" प्रेम के आधार हे मन!
मन तुम्हारा करूँ वंदन |"
आपकी छटी पुस्तक . 'शूर्पणखा' अगीत विधा पर आधारित खंड काव्य है , जिसे कवि ने 'काव्य-उपन्यास' की संज्ञा देकर साहित्य जगत को एक नवीन सन्देश दिया है | इसमें मानवीय अनाचार, आचरण, शुचिता, पुरुष व नारी समाज के साथ में धर्म पर भी चर्चा की गयी है | यह कृति कवि ने अपने पिता एवं राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी को समर्पित की है | एक उदाहरण प्रस्तुत है....
" विदुषी शिक्षित और साक्षर ,
नारी ही आधार है सदा ,
हर समाज की नर जीवन की ..|"
इन सभी कृतियों की समीक्षाए कई प्रमुख दैनिक तथा साप्ताहिक समाचार पत्रों विशेष रूप से ,दैनिक जागरण' व 'अगीतायन' में प्रकाशित हुईं | कृतियों के शीर्षक, सामग्री, विषय-वस्तु एक आदर्श स्थापित करते हैं | नि:संदेह डा श्याम गुप्त एक सिद्धहस्त कवि व महाकवि हैं |
इन कृतियों के साथ साथ वे इंटरनेट पर ब्लॉग लेखन से भी जुड़ गए | और ' प्रेम महाभारत '२०११प्रथम ..में ..निर्णायक के रूप में एवं महाभारत द्वितीय ' भ्रष्टाचार -वास्तविक दोषी कौन ' के प्रथम विजेता घोषित हुए | परिमार्जित हिन्दी के अतिरिक्त आपने बृज-भाषा व अंग्रेज़ी भाषाओं में भी कवितायें लिखी हैं -- नीचे उदाहरण प्रस्तुत हैं---
"साँचु न्याय ब्रत नेमु धरम
अब काहू कों न सुहावै |
कारे धन की खूब कमाई ,
पाछे सब जग धावै ||" तथा----
"There were darkness in the life,
And life was a great strife.
Someone brought the ray of hope,
And filled the heart with light . "
कविता के अध्याय के पश्चात, संतुलित कहानीकार के रूप में भी आपका परिचय आवश्यक है |
मूलतः आप संतुलित व लघु कहानियां लिखते हैं | 'खरगोश के जोड़े की कहानी'- जो पर्यावरण पर आधारित है , 'विकृति की जड़'-जो माँ-बाप व बच्चों के संस्कार पर आधारित है , 'भव-चक्र' जो वृद्धावस्था से सम्बंधित है ; आदि सराहनीय हैं | आपसे साहित्य का कोइ अंग छूटा नहीं है | स्नेह प्रभा जी की रचना 'कर्मवीर ", श्रीमती मधु त्रिपाठी की रचना 'मधु माधुरी ' एवं डा उषा गुप्ता जी की प्रसिद्ध कृति " अमेरिकी प्रवासी भारतीय कवि ' की समीक्षाएं व संघात्मक समीक्षाएं प्रशंसित हैं जो अन्य समीक्षकों को दिशा प्रदान करती हैं | समय समय पर आप अन्य लेखकों, रचनाकारों की पुस्तकों में शुभाशंसायें भी देते है जिसमें श्री अजित कुमार वर्मा की व्यंग्य लेखों का संग्रह ' मैं गधा हूँ ' उल्लेखनीय हैं |
डा श्याम गुप्त अब तक २२ छोटी- बड़ी कहानियां , ५० के लगभग आलेख व ६ प्रकाशित कृतियों के अतिरिक्त लगभग ८ अप्रकाशित कृतियाँ आपकी उपलब्धि के अंग हैं | आपको लखनऊ व देश के विभिन्न नगरों के साहित्यिक मंचों से सम्मान भी मिले हैं | मासिक कवि-गोष्ठियों के माध्यम से आपकी लेखनी और प्रखर हुई है | आपकी साहित्यिक यात्रा इसी प्रकार गतिमान रहे इसी मंगलकामना के साथ मैं डा श्याम गुप्त जी को नमन करता हूँ |
---पार्थो सेन, सी ,३०८७, राजाजी पुरम ,लखनऊ-17
मो. .९३३५७३१३६७
प्रस्तुति--- श्रीमती सुषमा गुप्ता...