....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
वैदिक एवं उसके परवर्ती साहित्य में आधुनिक विज्ञान के बहुत से तथ्य सूत्र रूप में मौजूद हैं , उनमें से कुछ को यहाँ रखा जारहा है....
१- जीवाणु ( बेक्टीरिया )--- महाभारत , शान्ति पर्व १५/२६ ..में कथन है....
"सूक्ष्म्य योनानि भूतानि तर्कागम्यानि कानिचित |
पक्ष्मणो इति निपातेन येषां स्यात स्कंधपर्यय ||" ----अर्थात ..इस जगत में ऐसे सूक्ष्म जंतु हैं जिनका अस्तित्व यद्यपि नेत्रों से दिखाई नहीं पड़ता परन्तु वे तर्कसिद्ध हैं | ये इतने हैं क़ि आँखों की पलक हिलाएं उतने से ही उनका नाश होजाता है |
२- प्राणवायु आक्सीजन --- ऋग्वेद १/३८/४६० में मरुद्गण( वायु देव ) की स्तुति में कहा है---
"यद्यूयं पृश्निमातरो मर्तासिः सयाति | स्तोता यो अमृत स्यात ||"---हे मरुद्गन ! आप यद्यपि मरणशील हैं परन्तु आपकी स्तुति करने वाला अमर हो जाता है |---- वायु ( आक्सीजन के रूप में ) यद्यपि मानव शरीर के अन्दर स्वांस रूप में जाकर स्वयम मृत (कार्बन डाई आक्साइड बन कर अशुद्ध रूप ) हो जाती है परन्तु व्यक्ति को जीवन देकर अमर कर जाती है |
३- मरुभूमि की स्थानीय वर्षा --- ऋग्वेद ४/३८/४६९ में कथन है क़ि....
"सत्य्त्नेणां अभवंतो धन्वंचिद रुद्रियामांण | मिंह क्रिन्वात्या वाताम ||" ---यह सत्य है क़ि रुद्रदेव के पुत्र मरुत मरुभूमि में भी आवात ( वात रहित -वायु रहित ) स्थिति में भी वर्षा करते हैं | निम्न वायु दाब में स्थानीय वर्षा का वर्णन है |
४- विद्युत् गर्जन -नाइट्रोजन-चक्र -- ऋग्वेद १/३८/४६४ में कथन है .....
"वाश्रेव विद्युन्मिमाति वत्सं न माता सिषक्ति | यदेषां वृष्टि रसर्जि ||" ---जब मरुद्गन वर्षा की सृष्टि करते हैं तो विद्युत् रंभाने वाली गाय की भांति शब्द करती है , और गाय द्वारा बछड़े की भांति पृथ्वी का पोषण करती है | --- वायु द्वारा गतिशील मेघों के परस्पर घर्षण से उत्पन्न विद्युत ( आकाशीय -तडित) तीब्र गर्जन करती है और भूमि को उर्वरक प्रदान करके( नाइट्रोजन चक्र द्वारा ) पोषण देती है |
५- जल चक्र --- ऋग्वेद १/१३४/१४८९ के अनुसार---ऋषि कहता है---
"अजनयो मरुतो वक्षणाम्यो दिव आ वक्षणाभ्य: ||" ---इन्हीं अजन्मा हवाओं से नदियों समुद्रों का जल ऊपर आकाश में जाता है और बरसकर पुनः नदियों में आता है |
----क्रमश: .....
वैदिक एवं उसके परवर्ती साहित्य में आधुनिक विज्ञान के बहुत से तथ्य सूत्र रूप में मौजूद हैं , उनमें से कुछ को यहाँ रखा जारहा है....
१- जीवाणु ( बेक्टीरिया )--- महाभारत , शान्ति पर्व १५/२६ ..में कथन है....
"सूक्ष्म्य योनानि भूतानि तर्कागम्यानि कानिचित |
पक्ष्मणो इति निपातेन येषां स्यात स्कंधपर्यय ||" ----अर्थात ..इस जगत में ऐसे सूक्ष्म जंतु हैं जिनका अस्तित्व यद्यपि नेत्रों से दिखाई नहीं पड़ता परन्तु वे तर्कसिद्ध हैं | ये इतने हैं क़ि आँखों की पलक हिलाएं उतने से ही उनका नाश होजाता है |
२- प्राणवायु आक्सीजन --- ऋग्वेद १/३८/४६० में मरुद्गण( वायु देव ) की स्तुति में कहा है---
"यद्यूयं पृश्निमातरो मर्तासिः सयाति | स्तोता यो अमृत स्यात ||"---हे मरुद्गन ! आप यद्यपि मरणशील हैं परन्तु आपकी स्तुति करने वाला अमर हो जाता है |---- वायु ( आक्सीजन के रूप में ) यद्यपि मानव शरीर के अन्दर स्वांस रूप में जाकर स्वयम मृत (कार्बन डाई आक्साइड बन कर अशुद्ध रूप ) हो जाती है परन्तु व्यक्ति को जीवन देकर अमर कर जाती है |
३- मरुभूमि की स्थानीय वर्षा --- ऋग्वेद ४/३८/४६९ में कथन है क़ि....
"सत्य्त्नेणां अभवंतो धन्वंचिद रुद्रियामांण | मिंह क्रिन्वात्या वाताम ||" ---यह सत्य है क़ि रुद्रदेव के पुत्र मरुत मरुभूमि में भी आवात ( वात रहित -वायु रहित ) स्थिति में भी वर्षा करते हैं | निम्न वायु दाब में स्थानीय वर्षा का वर्णन है |
४- विद्युत् गर्जन -नाइट्रोजन-चक्र -- ऋग्वेद १/३८/४६४ में कथन है .....
"वाश्रेव विद्युन्मिमाति वत्सं न माता सिषक्ति | यदेषां वृष्टि रसर्जि ||" ---जब मरुद्गन वर्षा की सृष्टि करते हैं तो विद्युत् रंभाने वाली गाय की भांति शब्द करती है , और गाय द्वारा बछड़े की भांति पृथ्वी का पोषण करती है | --- वायु द्वारा गतिशील मेघों के परस्पर घर्षण से उत्पन्न विद्युत ( आकाशीय -तडित) तीब्र गर्जन करती है और भूमि को उर्वरक प्रदान करके( नाइट्रोजन चक्र द्वारा ) पोषण देती है |
५- जल चक्र --- ऋग्वेद १/१३४/१४८९ के अनुसार---ऋषि कहता है---
"अजनयो मरुतो वक्षणाम्यो दिव आ वक्षणाभ्य: ||" ---इन्हीं अजन्मा हवाओं से नदियों समुद्रों का जल ऊपर आकाश में जाता है और बरसकर पुनः नदियों में आता है |
----क्रमश: .....