धर्म ,नेतिकता,व्यवहार ,कर्म का वास्तविक रूप क्या है ? जब अनिश्चयात्मकता , अनिर्णयता ,द्वंद्व ,-मन को घेरते हैं तो किस प्रकार निर्णय हो , अर्जुन की भांति कृष्ण आपके साथ न हों तब ?
इस बारे में भारतीय वांग्मय में बार-बार एक सूत्र आता है--""
सत्यम ,शिवम् सुन्दरम "" , वस्तुत प्रत्येक कर्म ,वस्तु ,व्यवहार ,भाव के लिए यह एक महासूत्र है । प्रत्येक को इसीकी कसौटी पर रख कर देखना चाहिए। उदाहरण स्वरुप --
१.-
कविता के लिए ---
सत्य =ज्ञान का अनुशासन,संचय व वर्धन
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शिव =जीवन मूल्य ,युग निर्माण ,सामाजिक सरोकार
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सुंदर =जन रंज़न ,सुखानंद से ब्रह्मानंद -----अन्यथा कविता व्यर्थ ही होगी।
२.-
मज़दूर के लिए ---
सत्य =धन प्राप्ति
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शिव =ईमानदारी से ,श्रम से प्राप्त धन ही लेना चाहिए
----सुंदर =शरीर ,मन ,बल व आवश्यकता के अनुरूप जिसमें सुख प्राप्त हो वह कार्य करना । ३.-
मकान बनाना या खरीदारी के लिये ---
सत्य =आपके पास कितना धन है
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शिव = कितना स्थान ,कमरे या खरीद की आवश्यकता है ,स्थान ,पास-पड़ोस अच्छा है ,हवा,धूप, पानी की व्यवस्था ,ख़रीदी बस्तु प्रयोग होगी ्भी या सिर्फ़ कलेक्सन है।
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सुंदर =एलीवेशन ,सामने से देखने में सुंदर ,आलिशान ,,बस्तु वास्तव में देखने में ,प्रयोग कराने में भी सुंदर है।
जीवन के पत्येक निर्णय में यही क्रम होना चाहिए।
--------------यहाँ यह भी महत्त्व पूर्ण है की --सत्य पहले है ,सुंदर अंत में , यदि किसी चयन की स्थिति हो तो उसी क्रम में चयन हो ।