....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मन में एक बार तो हरि के, एसा भी कुछ आया होगा।
गीता ज्ञान दिया गोविन्द ने, मन कुछ भाव समाया होगा |
नटवर ने कुछ सोचा होगा, मन कुछ भाव बसाया होगा।।
युग युग तक ये कर्म कथाएँ ,जन मानस में पलती रहें।
तथा कर्म, कर्मों की गति पर,संतति युग युग चलती रहें ।
कर्म भाव को धर्म मानकर ,जनहित कर्म ध्वजा फहरे ।
परहित भाव सजे जन जन में,मन यह भाव सुहाया होगा ।।
सुख समृद्धि पले यह अंचल, युग युग यह युग-धर्म रहे।
दुःख दारिद्र्य दूर हों सारे, मन श्रम -ज्ञान का मर्म रहे ।
भक्ति, ज्ञान ,विज्ञान, साधना, में रत रहें सभी प्रियजन ।
सत्-आराधन की महिमा का, मन में भाव सजाया होगा।।
रूढि, अंध श्रृद्धा को छोड़कर, गोवर्धन पूजन अपनाया ।
गर्व चूर करने सुरपति का,गोवर्धन कान्हा ने बसाया।
चाहे जितना कुपित इंद्र हो, चाहे जितनी वर्षा आये।
नहीं तबाही अब आयेगी,मन दृढ भाव बनाया होगा।।
कान्हा,राधा, सखी-सखा मिल,कार्य असंभव करके दिखाया।
सात दिवस में सभी ग्राम को, गोवर्धन अंचल में बसाया।
कुशल संगठन दृढ संकल्प,श्रमदान का एसा खेल रचा।
कहते कान्हा ने उंगली पर गोवर्धन को उठाया होगा ।।
वही देश वासी कान्हाके,भूल गए हैं श्रम-आराधन।
भक्ति व श्रृद्धा का भक्तों की,करते रहते केवल दोहन।
ताल, सरोवर, नदी, गली सब, कूड़े-करकट भरे पड़े हैं।
जिन्हें कृष्ण-राधा ने मिलकर,निज हाथों से सजाया होगा।।
कर्म भावना ही न रही जब, धर्म भाव कैसे रह पाए।
दुहते धेनु अंध-श्रृद्धा की,पत्थर पर घृत -दुग्ध बहाए।
रूढि, अन्ध श्रृद्धा में जीते, दुःख-दारिद्र्य हर जगह छाया।
जिसे मिटाने कभी 'श्याम' ने ,जन अभियान चलाया होगा।।
आज जो गिरिधारी आजायें, कर्मभूमि की करें समीक्षा।
निज कान्हा की कर्मभूमि की, राधारानी करें परीक्षा।
अश्रु नयन में भर आयेंगे, वंशी नहीं बजा पायेंगे।
कर्म साधना भूलेंगे सब, कभी न मन में आया होगा ॥
नटवर ने कुछ सोचा होगा, मन कुछ भाव बसाया होगा।।
युग युग तक ये कर्म कथाएँ ,जन मानस में पलती रहें।
तथा कर्म, कर्मों की गति पर,संतति युग युग चलती रहें ।
कर्म भाव को धर्म मानकर ,जनहित कर्म ध्वजा फहरे ।
परहित भाव सजे जन जन में,मन यह भाव सुहाया होगा ।।
सुख समृद्धि पले यह अंचल, युग युग यह युग-धर्म रहे।
दुःख दारिद्र्य दूर हों सारे, मन श्रम -ज्ञान का मर्म रहे ।
भक्ति, ज्ञान ,विज्ञान, साधना, में रत रहें सभी प्रियजन ।
सत्-आराधन की महिमा का, मन में भाव सजाया होगा।।
रूढि, अंध श्रृद्धा को छोड़कर, गोवर्धन पूजन अपनाया ।
गर्व चूर करने सुरपति का,गोवर्धन कान्हा ने बसाया।
चाहे जितना कुपित इंद्र हो, चाहे जितनी वर्षा आये।
नहीं तबाही अब आयेगी,मन दृढ भाव बनाया होगा।।
कान्हा,राधा, सखी-सखा मिल,कार्य असंभव करके दिखाया।
सात दिवस में सभी ग्राम को, गोवर्धन अंचल में बसाया।
कुशल संगठन दृढ संकल्प,श्रमदान का एसा खेल रचा।
कहते कान्हा ने उंगली पर गोवर्धन को उठाया होगा ।।
वही देश वासी कान्हाके,भूल गए हैं श्रम-आराधन।
भक्ति व श्रृद्धा का भक्तों की,करते रहते केवल दोहन।
ताल, सरोवर, नदी, गली सब, कूड़े-करकट भरे पड़े हैं।
जिन्हें कृष्ण-राधा ने मिलकर,निज हाथों से सजाया होगा।।
कर्म भावना ही न रही जब, धर्म भाव कैसे रह पाए।
दुहते धेनु अंध-श्रृद्धा की,पत्थर पर घृत -दुग्ध बहाए।
रूढि, अन्ध श्रृद्धा में जीते, दुःख-दारिद्र्य हर जगह छाया।
जिसे मिटाने कभी 'श्याम' ने ,जन अभियान चलाया होगा।।
आज जो गिरिधारी आजायें, कर्मभूमि की करें समीक्षा।
निज कान्हा की कर्मभूमि की, राधारानी करें परीक्षा।
अश्रु नयन में भर आयेंगे, वंशी नहीं बजा पायेंगे।
कर्म साधना भूलेंगे सब, कभी न मन में आया होगा ॥
----चित्र साभार ..