....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
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शराव बंदी-----सामाजिक सरोकार एवं तकनीकी तथ्य .....
अभी हाल में ही शरावबंदी के प्रकरण में पटना हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णय देखने को मिले | मुझे लगता है कि निर्णय केवल तकनीकी आधार पर दिए गए हैं, सामाजिक सरोकार पर विवेचित नहीं |
१. पटना हाईकोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए निम्न निर्णय दिया--- चित्र १.
अभी हाल में ही शरावबंदी के प्रकरण में पटना हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णय देखने को मिले | मुझे लगता है कि निर्णय केवल तकनीकी आधार पर दिए गए हैं, सामाजिक सरोकार पर विवेचित नहीं |
१. पटना हाईकोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए निम्न निर्णय दिया--- चित्र १.

----कोइ भी कम्पनी अपना व्यापार मुनाफे के लिए लगाती है परोपकार के लिए नहीं ....
------आश्चर्य में तो हम हैं, क्या हम आज भी पुरा युग में जी रहे हैं ? प्राचीनकाल में व्यापारियों को पणि अर्थात पैसे लेकर व्यापार –विनिमय करने वाले कहा जाता था | इन्हें असम्माननीय दस्यु वर्ग में जाना जाता था | जिसका कालान्तर में वणिक या बनिया शब्द बना |
------कोइ भी कम्पनी अपना व्यापार मुनाफे के लिए लगाती है परोपकार के लिए नहीं ....यह तथ्य या कथ्य सामान्यजन के लिए या व्यापार जगत के स्वयं कथ्य के लिए सही (?..) होसकता है परन्तु किसी भी दायित्व के पद से टिप्पणी के लिए नहीं | प्रत्येक व्यापार व व्यापारी का मूल कर्तव्य स्वयं की जीविका हेतु उचित मुनाफे के अतिरिक्त सामाजिक परोपकार भी एक कर्तव्य होता है जिससे वह अतिरिक्त व अधिक मुनाफे की प्रवृत्ति से नियमित रहता है | शासन द्वारा अधिक मुनाफ़ा लेने को नियमित करना भी महंगाई नियमित करने का एक इंस्ट्रूमेंट है मूलतः सामाजिक दुष्प्रवृत्तियों की रोक थाम हेतु|
२. सुप्रीम कोर्ट के निम्न कथ्यों में -----
चित्र २..
------द्वितीय कथ्य तो उचित है ही---निश्चय ही किसी भी कोर्ट को नीतिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए | परन्तु प्रथम टिप्पणी – मेरे विचार से शराव पीने के सम्बन्ध में यह तथ्य देश में प्रचलित व मान्य सभी चिकित्सा प्रणालियों से प्रमाणित नहीं है अतः यह चिकित्सा-नीतिगत तथ्य भी टिप्पणी में नहीं होना चाहिए | यह न्यायाधीशों का व्यक्तिगत मान्यता व विचार होसकता है परन्तु कोर्ट द्वारा टिप्पणी हेतु नहीं |
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------आश्चर्य में तो हम हैं, क्या हम आज भी पुरा युग में जी रहे हैं ? प्राचीनकाल में व्यापारियों को पणि अर्थात पैसे लेकर व्यापार –विनिमय करने वाले कहा जाता था | इन्हें असम्माननीय दस्यु वर्ग में जाना जाता था | जिसका कालान्तर में वणिक या बनिया शब्द बना |
------कोइ भी कम्पनी अपना व्यापार मुनाफे के लिए लगाती है परोपकार के लिए नहीं ....यह तथ्य या कथ्य सामान्यजन के लिए या व्यापार जगत के स्वयं कथ्य के लिए सही (?..) होसकता है परन्तु किसी भी दायित्व के पद से टिप्पणी के लिए नहीं | प्रत्येक व्यापार व व्यापारी का मूल कर्तव्य स्वयं की जीविका हेतु उचित मुनाफे के अतिरिक्त सामाजिक परोपकार भी एक कर्तव्य होता है जिससे वह अतिरिक्त व अधिक मुनाफे की प्रवृत्ति से नियमित रहता है | शासन द्वारा अधिक मुनाफ़ा लेने को नियमित करना भी महंगाई नियमित करने का एक इंस्ट्रूमेंट है मूलतः सामाजिक दुष्प्रवृत्तियों की रोक थाम हेतु|
२. सुप्रीम कोर्ट के निम्न कथ्यों में -----
चित्र २..
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------द्वितीय कथ्य तो उचित है ही---निश्चय ही किसी भी कोर्ट को नीतिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए | परन्तु प्रथम टिप्पणी – मेरे विचार से शराव पीने के सम्बन्ध में यह तथ्य देश में प्रचलित व मान्य सभी चिकित्सा प्रणालियों से प्रमाणित नहीं है अतः यह चिकित्सा-नीतिगत तथ्य भी टिप्पणी में नहीं होना चाहिए | यह न्यायाधीशों का व्यक्तिगत मान्यता व विचार होसकता है परन्तु कोर्ट द्वारा टिप्पणी हेतु नहीं |
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