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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2008

समाज मैं विश्रिन्खलता

समाज मैं जब कभी भी विश्रीन्ख्लता उत्पन्न होती है ,तो उसका मूल कारण सदैव मानव मन की नैतिक -बल की कमी होता है। भौतिकता के अति -प्रवाह मैं -शौर्य ,नेतिकता ,सामाजिकता, धर्म, अध्यात्म, व्यवहारगत शुचिता, धैर्य ,समता ,संतोष, अनुशासन आदि उदात्त भावों की कमी होने से असंयमतापनपती है। अपने इतिहास ,शास्त्र ,पुराण , गाथाएँ ,भाषा व ज्ञान को जाने वगैर , भागमभाग मैं नवीन अनजाने मार्ग पर -विना अपने देश, कालधर्मिता व तर्क की शास्त्रीय कसोटी पर कसे , चल देना अंधकूप की ओरचल देना ही है । आज की विश्रिन्खलता का यही कारण है। हमें इतिहास मैं जाना ही होगा। परन्तु प्रारंभ कहाँ से हो? साहित्य व शिक्षा जगत किसी भी समाज के प्रगति व सुधार के प्रचेता होते हैं। नेटिक, आध्यात्मिक, व धार्मिक शिक्षा को तथा इतिहास के श्रेष्ठ चरित्रों के उदाहरण व वर्त्तमान के शुची आचरण वाले प्रसिद्द चरित्रों के कार्य -कलापों का समावेश ,प्राथमिक कक्षाओं से ही होना चाहिए जो स्वभाषा व लोक भाषा मैं हों बुराई का परिणाम बुरा व अच्छाई का अंत अच्छा , वाली भारतीय शेली की कथाओं का यही उद्देश्य है , जिन्हें आज हम भूलते जा रहे हैं।
शूर्पनखा काव्य- उपन्यास से

शनिवार, 18 अक्टूबर 2008

इन्द्रधनुष

इन्द्रधनुष यद्यपि सदैव आपकी आंखों के सम्मुख , आपके आस -पास , चहुँ ओर रहता है। बरसात मैं आसमान मैं बर्षा की सुखद फुहारों मैं ,तुहिन कणोंमैं ,फुब्बारों की जलधाराओं मैं ,झूमरों मैं ,खिड़की के पार शीशे मैं ,सुन्दरी की नथके हीरे मैं, कान के कर्णफूल व कंगनों मैं, .....मन को ललचाता , महकाता, तरसाता, हरषाता रहता है, परन्तु दूर से , आप उसे छू नहीं सकते । ऐसा ही एक इन्द्रधनुष तरंगित होता है ,डॉ श्याम गुप्ता के नए उपन्यास ' ;इन्द्रधनुष' मैं ,स्त्री -विमर्श के परिप्रेछ्यमैं , एक नवीन भाव मैं , स्त्री -पुरूष मैत्री - संबंधों को नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित करता है।

rainbow

A Rainbow is always in front of your eyes, in around you. During rains in the pleasent raindrops, in the dripping drops of fog, in the springs and fountains, in the hanging shendaliars, on the window pans glasses, scattering from the dimonds of the nose-ornament of a beutiful lady's, and from the ear rings and the breslet ......attrecting your mind and thoughts vindicatively...but from distances only,you cannot touch it. Like such , one Rainbow is scattered in the novel 'INDRADHANUSH', th e rainbow--by Dr. shyam gupta, in a new colour of analysing and describing the women- man friedship and relationship.

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

siddhant, belief and rules and hero worship

People usually say that indians usually beieve in hero pooja on -religious, and philosophic ideas etc. As also stated by J. krishnamurthy--we should develope such a system (shailly) which should have not based on principles,beliefs and rules.
In view of this one should also not believe on J. murthy's also. IN fact till we are not having shriddha, and belief on already existing knowledge, thoughts , principles--we are not able to understand those fully and deeply, and we are not able to analyse them and toadjust in accordence to our own thoughts and the new advances required for sanscrati and culture---
"JIN KHOJA TIN PAIYA GAHRE PANEE PETH. and
BHAWANI SHANKARO BANDE SHRIDDHA BISHVAS RUPINON'
what is imporant --to enter the unknown darkness of fast advancement on his own and try again and again OR to steady advancement on correct path with help of already existing dharmik and sanskarit (verified by time and exhistance) learnings.
WE must think.

सोमवार, 13 अक्टूबर 2008

sant ki upadhi and bharat ko salah. ( making of saints )

what a nice thing to do ? sant ki upadhi too is beeing distributed like administrative laurets and presants to players or laufter jokers etc ,worldly immateril gifts. Servent of god, do god maintain his household or a buiseness and require servents. Blessed, who blessed or who has seen God blessing him/her.
I have always since childhood have learnt that 'a saint' is one to whome all the people, good or bad, poor or rich, learned or illiterate ones --call SAINT. Also saints do not like to be called saint and they do not accept any upaadi or gifts or laurets.
And so Bharat do not requre any advise on religion or dharm or what should be and what not in this cou ntry from any outsider to interfere in internal matters.

गुरुवार, 9 अक्टूबर 2008

durga devi rahasy -the secrate of DURGA goddesh and the defeat of tenheaded evil Ravan.

THE mahadevi durga is said to be , the incarnation of three basic forces -Maha kali, the goddesh of power; Maha laxmi, the goddesh of wealth; Mahasarasvati, the goddesh of learning and wisdom The maha shakti durga mata is supposed to destroy the all demons i.e. all evils.
the real meaning of the fact is that whenever a force in society is required to destroy the evils ,the persons in power,persons with wealth and persons of great learninga and wisdom
should combine to fight with evils ,to drag them away from society. Lord Ram also worshipped this SHAKTI before his expidition to concur the Ravan. It means that even most powerful person can not win without joining hands with these three natural powers existing in society.

बुधवार, 8 अक्टूबर 2008

the negative thinking , is right thinking.

In fact every thing should be first judged by its negative aspects. the so called only positive thinkers ,in fact are afraid of facing bad aspects of life, so they donot want to even look into the negative aspects of the things. The positive aspects of the things are aiways open and they are very attrective often, more so far in this todays deceptive world of advertisements.
Since the MANAV MAN( mind) is developed from VAYU Tatva, it is very fluiditive in nature and immediately run after an easy ways of life, so by only seeing positive aspects there are chances of mistakes. Therefore every thing must be first seen by its negative side . Very importent is this NEGATIVE THINKING. Even in practical life every one aiways fisrt of all see the dark aspects . for example- whenever you click for a file on your computer , a caption is seen for safe and unsafe, and unwanted courupt masseges. So contradictory to, the most discussed example by so called positive thinkers of half ful glass of water, before acceptig any thing one must think , why the glass is half empty?--and so on...

ताकि खंडित न हो आस्था .हिन्दी हिन्दुस्तान -एक समाचार.

ताकि खंडित न हो आस्था - ग्रामीणों ने स्वयं हटाया मन्दिर जो रमाबाई मैदान के बीच मैं आरहा था। ---वाह इसे कहते हैं , हिंदू- उदारतावाद व हिन्दू धर्म -निर्पेछिता --सीखें अन्य श्रृद्धा केन्द्र वाले । यह है सच्ची वैज्ञानिक -उदार प्रगतिवाद धार्मिकता । धर्म ,आस्थाएं ,नीति- नियम , पूजा , श्रृद्धा , पूजा- स्थान आदि मनुष्य की सुविधा -सुलभता के लिए हैं , न की मनुष्य इन के लिए ।

लेखको का महोत्सव -मसूरी मैं

लेककों का अंतर्राष्ट्रीय महोत्सव मसूरी मैं शुरू ।फ्रीडम स -चिल्ड्स पुस्तक का विमोचन ।
क्या बात है? छोटे राज्यों को व्यापक पहिचान मिलेगी --सौभाग्य की बात है? -वुड- स्टोक स्कूल के प्रिन्सिपल डेविड लयूरेंसन व स्टीफन आल्टर ने -----वाह क्या बात है ? सिर्फ़ अंग्रेजी के लेखकों से ही यह सब होगा ?हिन्दी के लेखकों का तो एइसा मेला वहाँ कभी नहीं लगाया गया , सोंचे समझें - उद्देश्य । वेचारी हिन्दी और हिन्दी लेखक -हमारे अपने देश हिन्दुस्तान मैं , और हिन्दी पुस्तकें ? संभल जाओ हिन्दुस्तानियों ।

शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2008

देश का क्या हाल कर दिया , भाइयो ,हिन्दुस्तान समाचार

आपकी राय ,
महोदय, हिंदुत्व की आत्मा पहचानो ,सुदर्शन तथा अडवानी जी बांटो मत ,जोडो, ---एसा लगता है की सुरेन्द्र मोहन एवं सच्चर जी का भ्रम वश यह मानना है किदेश के बटवारे ,के लिए तथा सारे दंगों के लिए सिर्फ़ हिन्दू ही जिम्मेदार हैं, वे व हिन्दू संगठन ही दंगों की पहल करते हैं, जवकि yathaarth इसके vipreet है। आप ही hindee ,हिंदुत्व ,हिन्दुस्तान की आत्मा को pahichaane सुरेन्द्र व सच्चर जी ,gaharaaee से shaatraadik तथा geetaa paden .