काली, दुर्गा, शिव ,देवी, देवता , रजा- महाराजा -- कब शराव का पान करते थे? कहाँ लिखा है? राम- सीता आदि के उदाहरण भी असत्य व प्रक्षिप्त है.यह एक बहुत बड़ी बहस का मुद्दा है।
फिलहाल हम यह मान भी लें की राम ने सीता को मैरेयतथा कथित सुरा , पिलाई ; तो वह उनका व्यक्तिगत मामला था, क्योंकि वह अपने घर मै व बेडरूम की बात है। सभी जानते हैं की अपने कपडों के अन्दर सब नंगे होते है। सभी अपनी पत्नी या प्रेमिका के साथ सोते हें उसकी इच्छा से , पर अपने कमरे मै , बाहर पब, होटल, सड़क आदि सार्वजनिक जगह पर नहीं। यह समाज व क़ानून के ख़िलाफ़ है।
सुरा , शराब नहीं है । फ़िर सुरा की दुकानें होने से ,सुरा पान अच्छाई थोड़े ही बन जायेगा ,कब?, कहाँ?, किसने? शराव को अच्छा कहा है? कब व किस युग व काल व समाज मैं शराब को मान्यता मिली है?
कौटिल्य के अर्थशास्त्र मैं ८४ तरह की सुरा का वर्णन -- वह सब आज भी चिकित्सशास्त्रों , व होटलों की बुक्स मैं मिल जायेगा , इससे क्या? क्या शराव पीना अच्छा होजायेगा? बुराइयां, बुरे लोग, बुरी बस्तुएं समाज व संसार मैं सदा ही रहतीं हैं, इससे वे अच्छी व अपनाने योग्य थोड़े ही बन जातीं हैं।
यह एक व्यर्थ का आलेख है , जो सिर्फ़ लिखने ,छपने व धंधे के लिए है। या भारतीय, व हिन्दू विरोधी प्रचार का भाग , न की कोई सार्थक तत्त्व के लिए। सम्पादकों , समाचार पत्रों को ऐसे सतही ज्ञान के आलेखों से बचना चाहिए।
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 15 फ़रवरी 2009
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