बालू से सागर के तट पर ,
खूब घरोंदे गए उकेरे ।
वक्त की ऊंची लहर उठी जब ,
सब कुछ आकर बहा ले गयी ।
छोड़ गयी कुछ घोंघे -सीपी ,
सजा लिए हमने दामन मैं। ----प्रेम काव्य (प्रेम अगीत ) से लयबद्ध अगीत
सभी जीव मैं वही ब्रह्म है ,
मुझमें तुझमें वही ब्रह्म है।
उसी एक को समझ के सब मैं,
मान उसी को हर कण- कण मैं ।
तिनके का भी दिल न दुखाये ,
सो प्रभु को ,परब्रह्म को पाये। ----श्रृष्टि ,अगीत विधा महा काव्य से -शटपदीअगीत
शूर्प सुरुचिकर लंबे नख थे ,
रूपवती विदुषी नारी थी ।
साज श्रृंगार वेश भूषा से -
निपुण, विविध रूपसज्जा मैं ।
नित नवीन रूप सजने मैं ,
उसको अति प्रसन्नता होती । --शूर्पनखा काव्य उपन्यास से (छह पदी अगीत )
भ्रमर !
तुम कली- कली का ,
रस चूसते हो ,
क्यों ?
बगिया की गली -गली घूमते हो ,
क्यों ? ---अगीत। (भ्रमर गीत से )
और एक छह पदी सवैया --
प्रीति मिले सुखरीति मिले, धन- मीत मिले सब माया अजानी ।
कर्म की,धर्म की,भक्तिकीसिद्धि-प्रसिद्धि मिले सब नीति सुजानी ।
ज्ञानकीकर्मकी अर्थकी रीति ,प्रतीति सरस्वती-लक्ष्मी की जानी ।
रिद्धि मिली सब सिद्धि मिलीं, बहुभांति मिलीं निधि वेद बखानीं ।
सब आनंद -प्रतीति मिलीं , जग प्रीति मिली बहु भांतिसुहानी ।
जीवन गति सुफल -सुगीत बनी मन जानी , जग पहचानी ।। ---प्रेम काव्य से।
खूब घरोंदे गए उकेरे ।
वक्त की ऊंची लहर उठी जब ,
सब कुछ आकर बहा ले गयी ।
छोड़ गयी कुछ घोंघे -सीपी ,
सजा लिए हमने दामन मैं। ----प्रेम काव्य (प्रेम अगीत ) से लयबद्ध अगीत
सभी जीव मैं वही ब्रह्म है ,
मुझमें तुझमें वही ब्रह्म है।
उसी एक को समझ के सब मैं,
मान उसी को हर कण- कण मैं ।
तिनके का भी दिल न दुखाये ,
सो प्रभु को ,परब्रह्म को पाये। ----श्रृष्टि ,अगीत विधा महा काव्य से -शटपदीअगीत
शूर्प सुरुचिकर लंबे नख थे ,
रूपवती विदुषी नारी थी ।
साज श्रृंगार वेश भूषा से -
निपुण, विविध रूपसज्जा मैं ।
नित नवीन रूप सजने मैं ,
उसको अति प्रसन्नता होती । --शूर्पनखा काव्य उपन्यास से (छह पदी अगीत )
भ्रमर !
तुम कली- कली का ,
रस चूसते हो ,
क्यों ?
बगिया की गली -गली घूमते हो ,
क्यों ? ---अगीत। (भ्रमर गीत से )
और एक छह पदी सवैया --
प्रीति मिले सुखरीति मिले, धन- मीत मिले सब माया अजानी ।
कर्म की,धर्म की,भक्तिकीसिद्धि-प्रसिद्धि मिले सब नीति सुजानी ।
ज्ञानकीकर्मकी अर्थकी रीति ,प्रतीति सरस्वती-लक्ष्मी की जानी ।
रिद्धि मिली सब सिद्धि मिलीं, बहुभांति मिलीं निधि वेद बखानीं ।
सब आनंद -प्रतीति मिलीं , जग प्रीति मिली बहु भांतिसुहानी ।
जीवन गति सुफल -सुगीत बनी मन जानी , जग पहचानी ।। ---प्रेम काव्य से।
2 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर व बढिया प्रस्तुति।अच्छी लगी।बहुत बहुत बधाई।
dhanyvaad paramjeet ,
aage ageet ke vividh chandon va itihaas ke baare main likhoongaa. avashy paden.
एक टिप्पणी भेजें